Sunday, 27 September 2015

आप जीवात्मा है ।

जीवात्मा का संबंध केवल एक मात्र भगवान से ""ही ""(भी नहीं) है।
पहले आपलोग संबद्ध का अर्थ समझ लीजिए।
संबंध किसे कहते है
संबंध 2 शब्द मिलकर बना हुआ है
सम + बंध
सम का अर्थ होता है सम्यक (परिपूर्ण, चारो तरफ से), बंध का अर्थ होता है बंधन
सम्यक माने चारो तरफ से बंधन , परिपूर्ण बंधन, नित्या बंधन
संबंध उसे कहते है जिस संबंध मे संबंध का विछेद न हो,
लेकिन शरीर के संबंधी माता, पिता , बेटा, स्त्री , पति, प्रेमी, प्रेमिका , धन आदि से हमारा नित्य संबंध कहा रेहता है
पुत्र जीवित है पिता मर गया, पिता जीवित है, पुत्र मर गया, माता जीवित है पुत्र मर गया, पत्नी 25 वर्ष की थी तभी उसका पति रोड एक्सिडेंट मे मारा गया और वैसे भी शादी के पहले तो ये पति पत्नी बचपन मे एक दूसरे को जानते तो नहीं थे एक दिन साथ चक्कर लगाय और बन गई अर्धांगिनी,और दोनों का य तो तलाक हो जाता है य तो मर जाते है दोनों मे से एक,
और फिर संसारी माता , पिता , पुत्र , पुत्री , मित्र से जो संबंध होता भी है उसका रीज़न केवल एकमात्र स्वार्थ है।
देखिए तुलसीदास ने क्या कहा
जाते कछु निज स्वरथ होई तापे ममता करे सब को
संसारी माता , पिता, पुत्र , प्रेमी, प्रेमिका ये सब एक दूसरे से आपस मे स्वार्थ सिद्ध करते रहते है,
सुर नर मुनि सबकी यह रीति स्वार्थ लागे कराही सब प्रीति।
संसारी माता पिता को छोड़िए, देवता इंद्र भी स्वार्थी होता है।
तुम्हारा अपना शरीर भी तुम्हारा साथ नहीं देगा यह भी तुम्हें छोड़ देगा तो फिर संसारी माता, पिता , पत्नी कितना दिन साथ देंगे।,
और वैसे भी सनातन धर्म मे जीव अनादि है, इस जन्म मे कोई माँ बनी, कोई पिता बना, कोई स्त्री बनी, कोई पुत्र बना फिर मरने के अगले जन्म मे फिर एक नई माँ बनेगी, फिर एक नया पिता बनेगा, फिर नया पुत्र बनेगा.....अरे कहा तक काहू कुत्ते, बिल्ली, गधे, सुवर भी हमारे माता , पिता बन चुके है और अगले जन्म मे भी बनते रहंगे, वर्तमान जन्म के माता , पिता , पुत्र, पत्नी भी अगले 84 प्रकार के शरीर मे घूमेंगे और तुम्हारे साथ नहीं जाएंगे सब अपने कर्म फल भोगने कोई नरक मे जाएगा, कोई स्वर्ग मे जाएगा, कोई मृत्यु लोक मे घूमेगा तो तुम्हारे ये संसारी माता पिता से तो संबंद एक ही जन्म मे विच्छेद हो गया ये काइके संबंधी है।
कोई पति पत्नी संतान पैदा नहीं करती , जब कीसी जोड़े की नई नई शादी है तो वे लोग तो कामआन्ध होकर एक दूसरे के शरीर का विषयभोग(संभोग) करते है, वे दंपति थोड़ी बच्चे पैदा करते है, उन्हे पता ही नहीं पेट मे क्या हो रहा है ये तो भगवान जीव माता के रज और पिता के वीर्य से माता के गर्भ मे जीव का शरीर बनाते है, फिर माँ के गर्भ मे रहकर की अपने पुत्र जीव के शरीर की रक्षा करते है , भगवान अपने जीव के खाने का इंताजाम करते है माता के पेट मे जो माता खाती है वही जीव को भी मिलता है , जो सास माता लेती है जीव को प्राप्त होता ऐसे वैज्ञानिक ढंग से ये काम भगवान चोरी चोरी करते है अपने जीव के लिए कोई संसारी माता क्या करेगी वो तो अल्पज्ञ है उसे पता ही नहीं गर्भ मे इतनी सारी क्रिये हो रही है ,फिर 9 महीने बाद माता के गर्भ से जीव को बाहर निकालते है।
फिर जब जीव संसार मे आता है तो भगवान को यह चिंता होती है की मेरा पुत्र क्या कहेगा अभी तो इसके दात नहीं निकले है तो शिव जी माता के स्तनो मे दूध पैदा कर देते ऑटोमैटिक क्या कोई माता अपने स्तनो मे मशीन लगाकर बिना पुत्र पैदा किए दूध पैदा कर सकती है स्तनो मे।
फिर मेरा पुत्र कब दूध के सहारे जीवित रहगा उसके दात निकाल आए फिर शिव जी पुत्र के लिए अनंत सब्जी पहले से तैयार राखी है, फल खाये, सब्जी खाए,फिर जीव के पाप और पुनयो का फल भी देता है बड़ा होने पर जो उसने पूरव जन्म के कर्म किए होंगे॥
तुम्हारा भगवान शिव से ही नित्या संबंध है। शिवजी से तुम्हारा सम्यक संबंद है परिपूर्ण संबंध है तुम नरह मे जाओगे शिवजी तुम्हारे साथ नरक मे भी जायेंगे बस अंतर यह होगा तुम कर्म फल भोकते हुए रोकर जाओगे , शिवजी मुस्कराते हुए जायेंगे, तुम कुत्ते बनोगे शिवजी तुम्हारे साथ कुत्ते के शरीर मे भी आयंगे, तुम बिल्ली बनोगे , शिवजी बिल्ली के शारीर मे तुम्हारी आत्मा मे बैठे रहंगे तुम्हारे कर्म फल भुगत्वंगे जबर्दस्ती, तुम देवता के शरीर मे जाओगे तो वह भी शिव तुम्हारे हृदय मे बैठे रहंगे...
जिस जिस शरीर मे जाओगे शिवजी तुम्हारे हृदय मे सदा , नित्या बैठे रहंगे, तुम्हारे साथ रहंगे एक क्षण के लिए तुमसे अलग नहीं होंगे, मतलब संबंध विच्छेद नहीं होगा, अनादि काल से शिवजी तुम्हारे हृदय मे बैठे है सदा तुम्हारे हरिदाय मे साथ रहंगे एक पल के साथ नहीं छोड़ते भगवत प्राप्ति के बाद भी तुम्हारे साथ रहंगे।
(वेद :
द्वा सुपर्णा, सयुजा। सखाया, समानम वृक्षस्य स्वजाते svetasvatara उप)
भगवान शिव की कृपा का वर्णन करने चालू तो मेरी मृतु हो जाएगी गिर भी मई नहीं बता पाऊँगा अनंत काल तक भी मई बताता राहू फिर भी नहीं बता सकता
संसारी माता , पिता, पुत्र, पत्नी कितने जन्म मे तुम्हारे साथ रहंगे एक जन्म मे भी साथ नहीं जायेंगे ।
एक रसिक ने कहा है
कति नाम, लालिता, सुतह, कति वा नेह वधुर , भुंजीही,
क्वानुते क्वानुताश्च व वयं भाव संघ खलु पांथ समागमह।
अर्थात
जीव ने अनंत जन्मो मे अनंत माता, अनंत बाप, अनंत पुत्र, अनंत पत्नी बना चुका है सब कहा है , कहा गए है नहीं जी हुमे नहीं याद है की पिछले जन्म मे हमारी माता कौन थी , अगले जन्म कौन है,,,, यह तो पथिकोका संग है जैसे बस और ट्रेन मे यात्री बैठे रहते है और यात्री आपस मे बाते करते है लेकिन जब यात्री का अपना गंतव्य स्थान आता है तो यात्री अपने स्टेशन उतार जाता है इसी तरह यह संसारी माता पिता पुत्र है अपने कर्म पीएचएल भोगेंगे और अपने समय पर मृत्यु के प्राप्त होकर मरने के बाद भी कर्म के अनुसार कोई नरक मे जाएगा, कोई स्वर्ग मे जाएगा, कोई मृत्यु लोक...
इसलिए आपके, माता, पिता, भ्राता सारे संबंध केवल परमात्मा से है।
देखिए वेद क्या कहता है
य आतमनीतिसथती।
जीवात्मा के नित्य संबंधी एकमात्र भगवान शिव है,
अमृतस्य वै पुत्र:।
जीवात्मा भगवान का पुत्र है,अनंत जीवो का संबंध केवल एकमात्र भगवान शिव से है।
गीता
ममेवंशों जीव लोके जीव भूतस्यसनातन:।
भगवान कह रहे है जीव मेरा अंश है,
ब्रहमसूत्र
अंशोनानाव्यापदेशात।
प्रत्येक जीव का केवल एकमात्र भगवान से नाना संबंध है।
तुम दिव्य आत्मा हो।
नैव स्त्री न पुमानेश न चैवअयम नपुंसक:।
यधचछशरीरमादते तेने तेने स यूजयते॥ ( sv up)
जीव जिस जिस शरीर को प्राप्त करता है उस शरीर या देह को अपना मै मान लेता है।
उधारण:स्त्री का शरीर प्राप्त हुआ जीव को तो अपने आपको स्त्री मान लेता है, पुरुष का शरीर प्राप्त हुआ तो जीव अपने आपको पुरुष मान लेता है,नपुंसक का शरीर प्राप्त हुआ तो जीव अपने आपको नपुंसक मान लेता है,कुतिया का शरीर प्राप्त हुआ तो जीव अपने आपको कुतिया मान लेता है, सुवर का शरीर प्राप्त हुआ तो जीव अपने आपको सुवर मान लेता है 84 लाख प्रकार के शरीर मे मे जिस जिस शरीर मे जाता है उस उस शरीर को अपना मान लेता है।
तुम शरीर नहीं आत्मा हो पहले यह ज्ञान सदा याद रखो।
फिर अध्यमिक जगत मे आगे बढ़ सकोगे।
जाके प्रिय न राम-बैदेही.
तजिये ताहि
--------कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही ||१ ||
जिसको भगवान प्यारे नहीं लगते उसको त्याग दीजिए दुश्मन की तरह भले ही आपका परम आत्मीय क्यू न हो।
सो छाँड़िये
तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषन बंधु, भरत महतारी.
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज-बनितन्हि, भये मुद-मंगलकारी ||२ ||
प्रह्लाद ने भगवान के प्रेम के लिए अपने पिता का त्याग कर दिया,
विभीषण ने भगवान के प्रेम के लिए अपने भ्राता रावण का त्याग कर दिया
भरत ने प्रभु राम के अपने सग्गी माता कैकई का त्याग कर दिया।
राजा बलि ने भगवान के प्रेम के लिए अपने गुरु का त्याग कर दिया,
गोपियो ने श्री कृष्ण के प्रेम के लिए अपने पति का त्याग कर दिया,
फिर भी इनको नरक नहीं मिला सब भगवान के धाम गोलोक मे गए भगवान की सेवा प्राप्त की,
प्रभु राम को जब वनवास के लिए कैकई ने भेजा तो भरत जी को पता चला तो उन्होने क्या उत्तर दिया
वाल्मीकि रामायण
हान्यामहमीमाम पापाम कैकाइम दुश्त्चारिनिम
यदि मे धार्मिकों रमो नसयेनमातरघातकम।
अर्थात:
भरत जी कह रहे कोई मुझे विश्वास दिला दे मेरे इस कृत से प्रभु राम मेरा त्याग न करेंगे तो मै अपनी माता की हत्या कर दु।
इसी तरह माता सीता और लक्ष्मण ने भी प्रभु राम की बात नहीं मानी।
भगवान की भक्ति मे जो भक्ति मे जो भी बढ़ा आए आप उसका त्याग कर सकते है डरिए मत।
संसार मे रहकर अपना कर्तव्य निभाये न की मन की आसक्ति करे, मन से प्यार केवल भगवान से करे यह मानव देह एकमात्र भगवत प्राप्त की लिए दिया गया है माता , पिता, पुत्र, पत्नी की सेवा तो आप लोगो ने अनंत जन्म मे की है और जब तक भगवत प्राप्ति नहीं होगी तब तब किसी न किसी की सेवा काओरगे ही चाहे संसारी रिश्ते दार की सेवा करोगे नहीं तो कोई अपने ही शरीर की सेवा करोगे....
नाते नेह रामके मनियत सुहृद सुसेब्य जहाँ लों.
अंजन कहा आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं ||३ ||
तुलसि सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रानते प्यारो.
जासों होय सनेह राम-पद, एतो मतो हमारो ||४ ||
एक शिवजी ही तुम्हारे सर्वस्व है,शिवजी तुम्हारे माता, पिता , भ्राता सारे संबंध एकमात्र शिवजी से ही है.....................

1 comment:

  1. Bhai tum to mujhe ek no ke content chor lagte ho .Bhakti ki baat to chhodo..Warna jis mahapurush ke pravachan se tumne copy paste Kiya hai hai or kuchh Apne paas se milaya hai.pahle unka Naam likho.samjhe

    ReplyDelete