Tuesday, 2 February 2016

भव - भगवान शिव के अवतार


भगवान रुद्र के स्वरूप का नाम भव है । इसी रूप में वे संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त हैं तथा जगद्गुरु के रूप में वेदांत और योग का उपदेश देकर आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं । भगवान रुद्र का यह स्वरूप जगद्गुरु के रूप में वंदनीय है । भव - रुद्र की कृपा के बिना विद्या, योग, ज्ञान, भक्ति आदि के वास्तविक रहस्य से परिचित होना असंभव है । वे अपने क्रिया - कलाप, संयम - नियम आदि के द्वारा जीवन्मुक्त योगियों के परम आदर्श हैं । लिंगपुराण के सातवें अध्याय और शिवपुराण के पूर्ण भाग के अध्याय में भगवान भव रुद्र के योगाचार्यस्वरूप और उनके शिष्य - प्रशिष्यों का विशेष वर्णन है । प्रत्येक युग में भगवान भव रुद्र योगाचार्य के रूप में अवतीर्ण होकर अपने शिष्यों को योगमार्ग का उपदेश प्रदान करते हैं । इन्होंने सर्वप्रथम अपने चार बड़े शिष्यों को योगशास्त्र का उपदेश दिया । उनके नाम रुरु, दधीचि, अगस्त्य और उपमन्यु हैं । ये सभी पशुपति - उपासना और पशुपति संहिता के प्रवर्तक हुए । इस प्रकार भगवान भव - रुद्र ही योगशास्त्र के आदि गुरु हैं ।
भगवान भव - रुद्र ही सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशानरूप में पांच कल्पों में अवतार लेकर ब्रह्मा एवं चार शिष्यों को आदि गुरु के रूप में योगशास्त्र का उपदेश देते हैं । विभिन्न कल्पों के प्रत्येक द्वापर में भी भगवान रुद्र प्रकट होकर अपने चार शिष्यों को योगमार्ग का प्रवर्तक बनाते हैं । श्वेत - लोहित नाम के कल्प में जब ब्रह्मा जी परब्रह्म का ध्यान कर रहे थे उसी समय श्वेत और लोहित वर्णवाला शिखाधारी कुमार उत्पन्न हुआ । ब्रह्मा जी ने उसे परब्रह्म रुद्र समझकर उसकी वंदना की । वह समझ गए कि यह सद्योजात कुमार रुद्र हैं । उसी समय वहां श्वेत वर्णवाले चार और कुमार प्रकट हुए । उनके नाम सुनंदन, नंदन, विश्वनंद और उपनंद थे । सद्योजात भगवान भव रुद्र ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा को ज्ञान के साथ सृष्टि रचना की शक्ति प्रदान की । फिर ब्रह्मा जी के द्वारा उन चारों कुमारों को योग - ज्ञान का उपदेश मिला । वे सब योगनिष्ठा महात्मा हो गए और बाद में योगमार्ग के प्रवर्तक हुए । रक्त नामक कल्प में ब्रह्मा जी का रक्त वर्णन का शरीर हुआ । उस समय पुत्र कामना से ध्यान करते हुए ब्रह्मा जी के समक्ष रक्त वर्णधारी वामदेव नाम से रुद्र का प्राकट्य हुआ ।
तत्पश्चात विरजा, विवाह, विशोक और विश्वभावन नाम के चार कुमार प्रकट हुए । उस अवतार में भव रुद्र का नाम वामदेव था । उन्होंने ब्रह्मा को ज्ञान और सृष्टि रचना की शक्ति प्रदान करने के साथ चारों कुमारों कोयोगमार्ग का प्रवर्तक बनाया । इसके बाद पीतवासा नामक कल्प में पुत्र कामना से ध्यानावस्थित ब्रह्मा जी के समक्ष पीतांबरधारी तत्पुरुष नाम से अवतरित होकर ‘भव’ रुद्र ने उन्हें ज्ञानोपदेश किया । भगवान तत्पुरुष के साथ उनके पार्श्वभाग से पीतवसनधारी चार कुमार प्रकट हुए । वे सब योगमार्ग के आचार्य हुए । शिव कल्प में ध्यानस्थ ब्रह्मा के सामने भव रुद्र का काले वर्ण में अघोर नाम से प्राकट्य हुआ और उनके पार्श्वभाग से उन्हीं की तरह चार तेजस्वी काले वर्ण वाले कुमार प्रकट हुए । वे सभी अघोर नामक योग के प्रवर्तक हुए । इसी प्रकार विश्वरूप कल्प में ध्यानस्थ ब्रह्मा के समक्ष ईशान नाम से प्रकट होकर ब्रह्मा को ज्ञानोपदेश के साथ अपने साथ प्रकट हुए चारों कुमारों को भव रुद्र ने योगाचार्य बनाया । इस प्रकार प्रत्येक कल्प में प्रकट होकर भगवान रुद्र त्रान और योग की स्थापना करते हैं ।

No comments:

Post a Comment