Monday, 8 February 2016

रंगों का जीवन पर प्रभाव

रंगों का जीवन पर प्रभाव- जब प्रकाश पूरी तरह से वस्तु में समाहित नहीं हो पाता है तो परावर्तित प्रकाश वस्तु को रंगीन बना देता है अर्थात् प्रकाश द्वारा त्यागा गया प्रकाश ही रंग है क्योंकि रंग केवल प्रकाश में ही होते हैं आकाश,पानी, वायु और पूरा ब्रह्मांड रंगहीन है जब तक उस पर प्रकाश पड़ कर परावर्तित न हो।
लाल, नीला व हरा तीन प्रमुख रंग हैं। इन तीनों रंगों से ही बाकी अन्य सभी रंग बने हैं। इन प्रमुख रंगों का प्रभाव न केवल मनुष्यों पर अपितु सृष्टि के सभी जीव जंतुओं पर पड़ता है। 
लाल रंग चेतना में ऊष्मा व अधिक कंपन पैदा कर जीव को स्फूर्ति व मन को गति देता है। इसीलिये इसे उल्लास व हर्ष का रंग भी कहते हैं। उगते हुए सूर्य की लाली हम सब को जोश से भर देती है। अगर कोई व्यक्ति आलसी है या शारीरिक तोर पर क्षीण है तो उसे लाल रंग का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिये। देवी को शक्ति का रूप माना जाता है, इसीलिये देवी पूजा में लाल रंग का बहुत प्रयोग होता है।
नीला रंग विशालता का प्रतीक है। वह सभी वस्तुऐं जिनमें अनेक सजीव-निर्जीव सामाहित होते हैं हमें नीली दिखाई पड़ती हैं, जैसे आकाश, समुद्र या नदी आदी। कृष्ण के शरीर का रंग नीला माना जाता है। इस नीलेपन का मतलब जरूरी नहीं है कि उनकी त्वचा का रंग नीला था। हो सकता है, वे श्याम रंग के हों, लेकिन जो लोग जागरूक थे, उन्होंने उनकी ऊर्जा के नीलेपन को देखा और उनका वर्णन नीले वर्ण वाले के तौर पर किया। कृष्ण की प्रकृति के बारे में की गई सभी व्याख्‍याओं में नीला रंग आम है, क्योंकि सभी को साथ लेकर चलना उनका एक ऐसा गुण था, जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता। वह कौन थे, वह क्या थे, इस बात को लेकर तमाम विवाद हैं, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि उनका स्वभाव सभी को साथ लेकर चलने वाला था। अगर कोई व्यक्ति गुस्सैल स्वभाव वाला है या कोई ऐकाकी अंतर्मुखि स्वभाव वाला है तो उसे अपने नीले रंग का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिये।
हरा रंग सजीव-निर्जीव के बीच संतुलन का प्रतीक है। हरे रंग में ऑक्सीजन, एल्यूमीनियम, क्रोमियम, सोडियम, कैल्शियम, निकिल आदि गैसें उपस्थित होती हैं, जो तनाव कम कर सकून देती हैं । डिप्रेशन से आजकल लगभग हर दूसरा व्यक्ति प्रभावित हो रहा है। हरा रंग उसका एक बेहद उम्दा उपाय है।
मित्रों रंगहीन या पारदर्शी वस्तुओं में प्रकाश पूर्णता को प्राप्त होता है। और यही पारदर्शिता वैराग्य का रंग राग है। वैराग्य का मतलब है कि आप न तो कुछ रखते हैं और न ही कुछ परावर्तित करते हैं, यानी आप पारदर्शी हो गए हैं। अगर आप पारदर्शी हो गए हैं तो आपके पीछे की कोई चीज अगर लाल है, तो आप भी लाल हो जाते हैं। अगर आपके पीछे मौजूद कोई चीज नीली है, तो आप भी नीले हो जाते हैं। आपके भीतर कोई पूर्वाग्रह होता ही नहीं। आप जहां भी होते हैं, उसी का हिस्सा हो जाते हैं, लेकिन किसी भी चीज में फंसते नहीं हैं। अगर आप लाल रंग के लोगों के बीच हैं, तो आप पूरी तरह से लाल हो सकते हैं, क्योंकि आप पारदर्शी हैं लेकिन वह रंग एक पल के लिए भी आपसे चिपकता नहीं। इसीलिए अध्यात्म में वैराग्य पर इतना जोर दिया जाता है।
दुनिया के रंगमंच पर शानदार अभिनय के लिए इंसान को खुद को उच्चतर आयामों में विकसित करना होगा। हम जीवन की संपूर्णता को, जीवन के असली आनंद को तब तक नहीं जान पाएंगे जब तक हम उस आयाम तक न पहुंच जाएं जो राग व रंगों से परे है।

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