Monday, 1 February 2016

यही कारण है कि रविवार के दिन गुरु यानी सूर्य का ध्यान शिष्य यानी श्री हनुमान को भी प्रसन्न करने वाला माना गया है।

एक बार की बात है माता अंजनि हनुमान जी को सुलाकर अपने कामों में व्यस्त हो गई। कुछ समय बाद उनकी नींद खुली तो वो भुख से परेशान होने लगे। तभी उनकी नजर आकाश में भगवान सूर्य नारायण पर पड़ी। उन्होंने सोचा कि यह जो लाल लाल सा दिखाई दे रहा है यह कोई मीठा फल है। एक ही झटके में वह भगवान सूर्य नारायण पर झपट पड़े। उसने उन्हें जल्दी से पकड़ कर अपने मुंह में डाल लिया। उसी समय तीनों लोकों में अंधेरा छा गया और भयानक त्रासदी हो गई। जीवन खत्म होने लगा। उस समय सूर्य ग्रहण चल रहा था, राहु सूर्य को ग्रसने के लिए उनके समीप आ रहा था। जब हनुमान जी की दृष्टि उस पर पड़ी उन्होंने सोचा कि यह कोई काला फल है। उनकी भूख अभी शांत न हुई थी। इसलिए उसको खाने के लिए उन्होंने उस पर भी झपटा लगाया, लेकिन राहु उनकी पकड़ से बचकर भाग निकले। देवराज इंद्र की शरण में पहुंचे।डर के मारे कांपते स्वर में बोले देवराज यह कैसा अनर्थ कर दिया आज आपने।देवराज इंद्र बोले,क्या हो गया आप इतने भयभीत क्यों लग रहे हैं। राहु बोले, यह कौन सा दूसरा राहु सूर्य को ग्रसने के लिए भेज दिया। यदि आज मैं अपने प्राण बचा कर भागा न होता तो वह मुझे भी खा जाता। राहु की बात सुन कर देवराज इंद्र भी हैरान हो गए। वह अपने सफेद हाथी जिसमें उनका कवच, बड़ा धनुष, बाण और असीम शक्तियां थी पर सवार होकर हाथ में वज्र लेकर स्वर्ग से बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि एक छोटा सा वानर बालक भगवान सूर्य नारायण को अपने मुंह में दबाए आकाश में खेल रहा है। जब हनुमान की दृष्टि सफेद ऐरावत पर सवार इंद्र पर पड़ी तो उन्हें फिर से आभास हुआ कि यह कोई खाने लायक सफेद फल है। वह अपना खेल छोड़कर झटपट उस ओर लपके। हनुमान जी को अपनी तरफ आता देखकर देवराज इंद्र के क्रोध का आवेश बढ़ गया। उन्होंने खुद को सुरक्षित करने और भगवान सूर्य को हनुमान जी की कैद से मुक्त करवाने के लिए अपने वज्र से हनुमान जी पर तेज प्रहार किया। वज्र के तेज प्रहार से हनुमान का मुंह खुल गया और वह बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। सूर्य भगवान शीघ्रता से बाहर आ गए।अपने पुत्र की यह दशा देख हनुमान के धर्म पिता वायुदेव को क्रोध आ गया। उन्होंने उसी समय अपनी गति रोक ली। तीनों लोकों में वायु का संचार रूक गया। वायु के थमने से कोई भी जीव सांस नहीं ले पा रहे थे और पीड़ा से तड़पने लगे। उस समय समस्त सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गए। ब्रह्मा जी उन सभी को अपने साथ लेकर वायुदेव की शरण में गए। वे मूर्छित हनुमान को गोद में लेकर बैठे थे और उन्हें उठाने का हर संभव प्रयास कर रहे थे। ब्रह्मा जी ने उन्हें जीवित कर दिया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सब प्राणियों की पीड़ा दूर की। केसरीनंदन, हनुमान के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे देवताओं से मिले वरदान के कारण अनेक विलक्षण शक्तियों के स्वामी भी बने। बाद में सूर्य ही श्री हनुमान के गुरु बने। यही कारण है कि रविवार के दिन गुरु यानी सूर्य का ध्यान शिष्य यानी श्री हनुमान को भी प्रसन्न करने वाला माना गया है।

No comments:

Post a Comment