अंसन्ह सहित मनुज अवतारा । लेहउं दिनकर बंस उदारा ।।
ब्रह्मादि देवताओं की पुकार पर आकाशवाणी में ‘अंसन्ह सहित’ अवतार लेने की ब्रह्मगिरा हुई, उसी प्रकार श्रीस्वायंभुव मनु को भी वचन दिया गया -
अंसन्ह सहित देह धरि ताता । करिहउं चरित भगत सुखदाता ।।
अतएव इस बात की खोज आवश्यक है कि परम प्रभु के वे अंश कौन कौन से हैं, जिनके सहित स्वयं सरकार प्रकट हुए ? एवं प्रभु को उन अंशों के सहित प्रकट होने की क्या आवश्यकता थी ? भगवान विष्णु, ब्रह्मा और शिव ये ही तीन अंशस्वरूप कथित हैं । श्रीरामावतार तीनों अंशों के समेत चतुर्विग्रह में प्रकट भी हुआ, यह प्रमाणित है । श्रीराम जी, श्रीभरत जी, श्रीलक्ष्मण जी तथा श्रीशत्रुघ्न जी चारों विग्रह चारों भ्राताओं के रूप में प्रादुर्भूत हुए । परंतु कौन विग्रह किस अंश से हुआ, इसका स्पष्ट निर्णय नामकरण के समय गुरु श्रीवसिष्ठ जी के द्वारा किया गया है ।
जो आनंदसिंधु और सुख की राशि हैं, जो अपने महिमार्णव के बिंदुकण मात्रा से तीनों लोकों की रक्षा करने वाले हैं, उन परम प्रभु साक्षात् परब्रह्म का नाम सुखधाम राम है, जो राम - नाम संपूर्ण लोकों को विश्राम देने वाला है । जो विश्व - संसार भर का भरण पोषण (पालन) करने वाले श्रीविष्णु भगवान हैं, इनका नाम भरत है । जो वेद का प्रकाश करने वाले ब्रह्मा जी हैं, जिनके स्मरण से शत्रुओं का हनन (नाश) हो जाता है, इऩका नाम शत्रुघ्न है । एवं जो ‘लच्छन’ - शुभ लक्षमों के धाम राम जी के प्रिय शिव जी हैं - एकादश रुद्रों में प्रधान रुद्र और सकल जगत के आधार शेष जी हैं - उन शिवजी के अंशस्वरूप जो यह चौथे हैं, इनका उदार नाम लक्ष्मण है । यहां यह बात समझ लेने की है कि यहां यह बात समझ लेने की है कि शत्रुघ्न जी यद्यपि श्रीलक्ष्मण जी के अनुज छोटे भाई हैं, परंतु ब्रह्मा के अंशावतार होने के कारण उऩका नामकरण लक्ष्मण जी से पहले किया गया है । वास्तव में परमप्रभु श्रीराम जी के पश्चात् सत्त्वगुणी लीलाकारी विष्णु के अंशवाले भरत जी का, तत्पश्चात रजोगुणी लीलाकारी श्रीब्रह्मा जी के अंशवाले शत्रुघ्न जी का और फिर तमोगुणी लीलाकारी श्रीरुद्र के अंशवाले लक्ष्मण जी का नामकरण होना उचित ही था । इस प्रकार परम प्रभु के अवतार श्रीलक्ष्मण जी हैं । अतएव सबके एकमात्र अंशी साक्षात् परम प्रभु ने अपने तीनों अंशों - त्रिदेवों सहित अवतार लेकर यह वाक्य सिद्ध कर दिया कि ‘अंसन्ह सहित मनुज अवतारा । लेहउं दिनकर बंस उदारा ।।’
अब यह विचार करना है कि परब्रह्म परमात्मा ने किस प्रयोजन से अपने अंशों के सहित अवतार लिया ? श्रीरघुनाथ जी ने स्वयं तो मर्यादापुरुषोत्तम रूप में प्रकट होकर अपने भागवतधर्म अर्थात् ईश्वरीय दिव्य गुण - सौशील्य, वात्सल्य, कारुण्य, क्षमा, शरण्यता, दया, सर्वज्ञता, सर्वेश्वरत्व, सर्वान्तर्यामित्व, सर्वदर्शित्व, सर्वनियामकत्व आदि की सुलभता के साथ ही साथ लोकधर्म समस्त मर्यादा का भी आदर्श उदाहरण चरितार्थ कर दिखाया, जिसका पूरा - पूरा निर्वाह किसी जीवनकोटि के सामर्थ्य से आदर्श स्वरूप श्रीप्रभु के तीनों अंशावतार श्रीलक्ष्मण, श्रीभरत और श्रीशत्रुघ्न ही हुए हैं । जो भगवत भागवत सेवाधर्म जीवमात्र के परम कल्याणार्थ अति आवश्यकीय धर्म था, उसके साथ साथ यथासंभव लोकधर्म का भी निर्वाह गौणरूप में होता ही रहा है । अतएव चारों श्रीविग्रह के आदर्श चरित्रों का संक्षिप्त प्रमाणों सहित श्रीरामचरितमानस से पृथक - पृथक दिग्दर्शन कराया जा रहा है ।
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