परमात्मा का जन्म लेना- परमात्मा सामान्य अर्थ में जन्म नहीं लेता,वे सभी प्रक्रियाऐं जो सीमित हों परमात्मा पर लागू नहीं होती। अर्थात् किसी व्यक्ति विशेष को परमात्मा मानना गलत है क्योंकि परमात्मा जन्म-मृत्यु की सीमित प्रक्रिया से मुक्त है। परमात्मा तो अविराम सृजनशीलता व अनवरत कर्म है। जब भी कोई जीव अपनी आत्मा को पूर्णतया जागरित कर परब्रह्म के साथ अपने वास्तविक संबंध को समझ लेता है वह अपने ब्रह्म के साथ प्राप्त इस एकरूपता की घोषणा कर देता है और अन्य जीव उसके द्वारा किये गये अलौकिक कार्यों के कारण उसे परमात्मा मान पूजने लगती है।
गीता में स्पष्ट रूप से लिखा है कि जो भी राग,भय,क्रोध व अह्मं से मुक्त हो परमात्मा की शरण में जाता है वह ज्ञानमय तप द्वारा पवित्र हो परमात्मा का रूप प्राप्त करता है।
इस तरह परमात्मा को समर्पित आत्मा अपने शरीर को शाश्वत की अभिव्यक्ति के लिये वाहन की तरह प्रयुक्त करती है, और उसकी दिव्यता अंधकार में प्रकाश की किरण की भांति सुख देने वाली होती है।
लेकिन केवल कृष्ण का जन्म पूर्ण दिव्यता को दर्शाता है, वह परमात्मा का मानवीय साक्षात् रूप है जिसमें मनुष्य के आध्यात्मिक साधनों और प्रसुप्त दिव्यता का एकसाथ समावेश है। हाँलाकि मनुष्य रूप में कृष्ण, परमात्मा की तरह प्रकृति का सृजन नहीं करते हैं परन्तु वे उन दिव्य ब्रह्म स्वभाव से एकाकार हैं जिनके द्वारा परमात्मा अपने को प्रकट करता है।
कृष्ण का अवतार हमारे अंदर छिपे हुए ब्रह्म के प्रकाशन का एक उदाहरण है। भागवत के अनुसार मध्य रात्री के गहन अंधकार में उज्जवल प्रकाश की भाँति दासत्व के क्षणों में एक उद्धारकर्ता के रूप में वे देवकी में प्रकट हुए। वासुदेव व देवकी के नवजात शिशु की मानवीय चेतना परमात्मा की विशुद्ध चेतना से प्रतिबिम्बत हो इतनी प्रकाशवान हो गई कि कारागार के समस्त द्वार स्वतः खुल गये।
मित्रों कृष्ण कोई ऐसा नायक नहीं जो कभी पृथ्वी पर चलता-फिरता था, लीलायें करता और प्रिय शिष्य को गीता का उपदेश देने व धार्मिक युद्ध के पश्चात दुनिया से चला गया
अपितु वह सब जगह परमात्मा के अस्तित्व को दर्शाता हम सब के भीतर विद्धमान है। वह हमारी आध्यात्मिक चेतना का ऐकमात्र लक्ष्य है। इसीलिये कृष्ण जन्म को परमात्मा का जन्म लेना कहते हैं।
गीता में स्पष्ट रूप से लिखा है कि जो भी राग,भय,क्रोध व अह्मं से मुक्त हो परमात्मा की शरण में जाता है वह ज्ञानमय तप द्वारा पवित्र हो परमात्मा का रूप प्राप्त करता है।
इस तरह परमात्मा को समर्पित आत्मा अपने शरीर को शाश्वत की अभिव्यक्ति के लिये वाहन की तरह प्रयुक्त करती है, और उसकी दिव्यता अंधकार में प्रकाश की किरण की भांति सुख देने वाली होती है।
लेकिन केवल कृष्ण का जन्म पूर्ण दिव्यता को दर्शाता है, वह परमात्मा का मानवीय साक्षात् रूप है जिसमें मनुष्य के आध्यात्मिक साधनों और प्रसुप्त दिव्यता का एकसाथ समावेश है। हाँलाकि मनुष्य रूप में कृष्ण, परमात्मा की तरह प्रकृति का सृजन नहीं करते हैं परन्तु वे उन दिव्य ब्रह्म स्वभाव से एकाकार हैं जिनके द्वारा परमात्मा अपने को प्रकट करता है।
कृष्ण का अवतार हमारे अंदर छिपे हुए ब्रह्म के प्रकाशन का एक उदाहरण है। भागवत के अनुसार मध्य रात्री के गहन अंधकार में उज्जवल प्रकाश की भाँति दासत्व के क्षणों में एक उद्धारकर्ता के रूप में वे देवकी में प्रकट हुए। वासुदेव व देवकी के नवजात शिशु की मानवीय चेतना परमात्मा की विशुद्ध चेतना से प्रतिबिम्बत हो इतनी प्रकाशवान हो गई कि कारागार के समस्त द्वार स्वतः खुल गये।
मित्रों कृष्ण कोई ऐसा नायक नहीं जो कभी पृथ्वी पर चलता-फिरता था, लीलायें करता और प्रिय शिष्य को गीता का उपदेश देने व धार्मिक युद्ध के पश्चात दुनिया से चला गया
अपितु वह सब जगह परमात्मा के अस्तित्व को दर्शाता हम सब के भीतर विद्धमान है। वह हमारी आध्यात्मिक चेतना का ऐकमात्र लक्ष्य है। इसीलिये कृष्ण जन्म को परमात्मा का जन्म लेना कहते हैं।
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