Thursday, 4 February 2016

गुणनिधि पर भगवान शिव की कृपा


पूर्वकाल में यज्ञदत्त नामक एक ब्राह्मण थे । समस्त वेद शास्त्रादि का ज्ञाता होने से उन्होंने अतुल धन एवं कीर्ति अर्जित की थी । उनकी पत्नी सर्वगुणसंपन्न थी । कुछ दिनों के बाद उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गुणनिधि रखा गया । बाल्यावस्था में इस बालक के कुछ दिन तो धर्मशास्त्रादि समस्त विद्याओं का अध्ययन किया, परंतु बाद में वह कुसंगति में पड़ गया । कुसंगति के प्रभाव से वह धर्मविरुद्ध कार्य करने लगा । वह अपनी माता से द्रव्य लेकर जूआ खेलने लगा और धीरे - धीरे अपने पिताद्वारा अर्जित धन तथा कीर्ति को नष्ट करने लगा । कुसंगति प्रभाव से उसने स्नान - संध्या आदि कार्य ही नहीं छोड़ा, अपितु शास्त्रनिंदको के साथ रहकर वह चोरी, परस्त्रीगमन, मद्यपानादि कुकर्म भी करने लगा, परंतु उसकी माता पुत्र - स्नेहवश न तो उसे कुछ कहती थी और न उसके पिता को ही कुछ बताती । इसलिए यज्ञदत्त को कुछ भी पता नहीं चला । जब उनका पुत्र सोलह वर्ष का हो गया तब उन्होंने बहुत धन खर्च करके एक शीलवती कन्या से गुणनिधि का विवाह कर दिया, परंतु फिर भी उसने कुसंगति को न छोड़ा । उसकी माता उसे बहुत समझाती थी कि तुम कुसंगति को त्याग दो, नहीं तो यदि तुम्हारे पिता को पता लग गया तो अनिष्ट हो जायेगा । तुम अच्छी संगति करो तथा अपनी पत्नी में मन लगाओ । यदि तुम्हारे कुकर्मों का राजा को पता लग गयो तो वह हमें धन देना बंद कर देगा और हमारे कुल का यश भी नष्ट हो जाएगा, परंतु बहुत समझाने पर भी वह नहीं सुधरा, अपितु उसके अपराध और बढ़ते ही गये ।
उसने वेश्यागमन तथा द्यूतक्रीड़ा में घर की समस्त संपत्ति नष्ट कर दी । एक दिन वह अपनी सोती हुई मां के हाथ से अंगूठी निकाल ले गया और उसे जुए में हार गया । अकस्मात् एक दिन गुणनिधि के पिता यज्ञदत्त ने उस अंगूठी को एक जुआरी के हाथ में देखा, तब उन्होंने उससे डांटकर पूछा - ‘तुमने यह अंगूठी कहां से ली ?’ जुआरी डर गया और उसने गुणनिधि के संबंध में सब कुछ सत्य - सत्य बता दिया । जुआरी से अपने पुत्र के विषय में सुनकर यज्ञदत्त को बड़ा आश्चर्य हुआ । वे लज्जा से व्याकुल होत हुए घऱ आए और उन्होंने अंगूठी के संबंध में प्राप्त हुई गुणनिधि के विषय की सारी बातें अपनी पत्नी से कहीं । माता ने गुणनिधि को बचाने का प्रयास किया, किंतु यज्ञदत्त क्रोध से भर उठे और बोले कि ‘मेरे साथ तुम भी अपने पुत्र से नाता तोड़ लो तभी मैं भोजन करूंगा ।’ पति की बात सुनकर वह उनके चरणों पर गिर पड़ी और गुणनिधि को एक बार क्षमा कर देने की प्रार्थना की, जिससे यज्ञदत्त का क्रोध कुछ कम हो गया ।
जब गुणनिधि को इस घटना का पता चला तब उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई । वह अपनी माता के उपदेशों का स्मरण कर शोक करने लगा तथा अपने कुकर्मों के कारण अपने को धिक्कारने लगा और पिता के भय से घर छोड़कर भाग गया, परंतु जीविका का कोई भी साधन न होने से जंगल में जाकर रुदन करने लगा । इसी समय एक शिवभक्त विविध प्रकार की पूजन - सामग्रियों से युक्त हो अपने साथ अनेक शिवभक्तों को लेकर जा रहा था । उस दिन सभी व्रतों में उत्तम तथी सभी वेदों एवं शास्त्रों द्वारा वर्णित शिवरात्रि - व्रत का दिन था । उसी के निमित्त वे भक्तगण शिवालय में जा रहे थे । उनके साथ ले जाएं गये विविध पक्वान्नों की सुगंध से गुणनिधि की भूख बढ़ गयी । वह उनके पीछे - पीछे इस उद्देश्य से शिवालय में चला गया कि जब ये लोग भोजन को शिव जी के निमित्त अर्पण कर सो जाएंगे तब मैं उसे ले लूंगा । उन भक्तों ने शिवजी का षोडशोपचार पूजन किया तथा नैवेद्य अर्पित करके वे शिवजी की स्तुति करने लगे । कुछ देर बाद उन भक्तों को नींद आ गयी, तब छिपकर बैठे हुए गुणनिधि भोजन उठा लिया, परंतु लौटते समय उसका पैर लगने से एक शिवभक्त जाग गया और वह चोर - चोर कहकर चिल्लाने लगा । गुणनिधि जान बचाकर भागा, परंतु एक नगरक्षक ने उसे अपने तीर से मार गिराया ।
तदुपरांत उसे लेने के लिए बड़े भयंकर यमदूत आये और उसे ले जाने लगे । तभी भगवान शिव ने अपने गणों से कहा कि इसने मेरा परमप्रिय शिवरात्रि का व्रत तथा रात्रि - जागरण किया है, अत: इसे यमगणों से छुड़ा लाओ । यमगणों के विरोध करने पर शिवगणों ने उन्हें शिव जी का संदेश सुनाया और उसे छुड़ाकर शिव जी के पास ले गये । शिव जी के अनुग्रह से वह महान शिवभक्त कलिंगदेश का राजा हुआ । वहीं अगले जन्म में भगवान शंकर तथा मां पार्वति के कृपाप्रसाद से यक्षों का अधिपति कुबेर हुआ ।

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