Sunday, 6 March 2016

भगवान श्रीकृष्ण और भावी संसार


भरतखण्ड का इतिहास महाभारत की ही शाखा है । महाभारत का अर्थ है महान भारतवर्ष । हमलोग भारतवर्ष को महान देखना चाहते हैं । महाभारत के समय से ही धर्मराज्य की स्थापना के लिये संग्राम जारी है । भगवान श्रीकृष्ण का जिस समय अवतार हुआ, उस समय यह संग्राम जोरों पर था । भगवान श्रीकृष्ण का अवतार एक विशेष उद्देश्य को लेकर हुआ था, जो उनकी गीता के श्लोकों से स्पष्ट है ।
श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत का मुकुट है । गीता से अलग हम महाभारत की कल्पना भी नहीं कर सकते । हम महाभारत के अन्यान्य भागों को भले ही भूल जाएं, गीता को कदापि नहीं भूल सकते । कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि में धर्मराज्य की स्थापना हुई थी । उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दिव्यज्ञान के उत्कर्ष से अपने सखा, सहचर एवं प्रिय शिष्य अर्जुन को निमित्त बनाकर सारी मानवजाति को गीता को उपदेश दिया । गीता का उपदेश देते समय ही उन्होंने इस बात को प्रमाणित किया कि वे संसार के सबसे बड़े उपदेशक और ईश्वर के अवतार हैं । हमारा धर्म है कि हम उनके गीतारूप उपदेश को जो सारी मानवजाति का धर्मग्रंथ है - स्वीकार करें ।
गीता के आधार पर भारतीय जाति यता का नये ढंग से सुदृढ़ता के साथ निर्माण हो रहा है और सौभाग्य से इस समय हमें महात्मा गांधी के रूप में एक चतुर शिल्पी मिल गया है जो इस भवन के निर्माण का कार्य सुचारूरूप से संपन्न कर रहा है । हमारे जातीय विकास की वर्तमान अवस्था में यह आवश्यक है कि हमारे नवयुवक यह जाने कि भारत वर्ष की पहले क्या दशा थी और अब क्या हो गयी है । यदि विज्ञान और उद्योग धंधों का कार्य नहीं रुक सकता तो इतिहास और राजनीति शास्त्र के अध्ययन को स्थगित करने में भी हमारी जातियता की बड़ी क्षति हो सकती है । हमारे बालक और बालिकाएं स्कूलों में जब उनकी अत्यंत सुकुमार अवस्था होती है, अच्छे और बुरे संस्कारों को बड़ी जल्दी ग्रहण करते हैं, उनको इस प्रकार का साहित्य पढ़ाना चाहिये जिससे उनके अंदर अपने अतीतकाल के गौरव का ज्ञान हो और हमारे अंदर जातीय आत्मगौरव के भाव जागृत हों । यह तबतक नहीं हो सकता जबतक हमें अपने जातीय पूर्व पुरुषों के आध्यात्मिक, मानसिक एवं आधिभौतिक उन्नति का यथार्थ एवं दृढ़ ज्ञान न हो जाएं । जिस प्रकार अर्जुन श्रीकृष्ण को अपना सारथी और पथप्रदर्शक बनाकर कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों से जूझा था, ठीक इसी प्रकार भरतखण्ड में उसी के लालों के द्वारा धर्म राज्य की पुन: स्थापना होगी ।

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