एक बार कई देवता मिलकर प्रजापति ब्रह्मा जी के समीप जाकर बोले-” भगवान् हम वह विद्या जानना चाहते हैं, जिसके जान लेने से ‘ अनुष्टुप् सिद्धि होती हो। किसी के मन की बात जान ले, कितनी ही दूर बैठे हुये अपने किसी प्रियजन के दर्शन कर लें, बातचीत कर लें, एक पल में कहीं भी जाकर वहाँ का सब कुछ देखकर लौट आने की विद्या सीखने के लिये आपके समीप हम देवगण उपस्थित हुये है।”
ब्रह्मा जी वह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और बोले- “आज मैं तुम्हें 6 नारसिंह चक्र का वर्णन करता हूँ, उसे जान लेने वाला ऐसी सिद्धियों का स्वामी हो जाता है।”
चार ‘अर’ (रथ आदि पहियों में जो गोलाकार डंडे लगे रहते हैं उन्हें ‘अर’ कहते हैं) वाला आचक्र, दूसरी भी चार अर वाला सूचक,तीसरा आठ अरों वाला महाचक्र, पाँच-पाँच अरों वाले चौथे और पाँचवें सकललोक रक्षण और द्यूतचक्र और अन्तिम आठ अरों वाला असुरान्त चक्र और इनके आन्तर, माध्यम एवं वाह् तीन लय हैं, इनको जानने वाले को सभी लोक सिद्ध हो जाते सो है देवगणों क्रमशः हृदय, शिर, शिखा, शेष सभी शरीर के सब अंगों में रहने वाले इन चक्रों को जानने का प्रयत्न कीजिये।
इन सूत्रों में विज्ञान के वह सिद्धान्त और रहस्य छिपे हुये हैं, जिन्हें यदि जान लिया जाय तो सचमुच मनुष्य ऐसी सिद्धि -सम्पदा को प्राप्त कर सकता है, जिसका संकेत प्रजापति ब्रह्मा ने उपरोक्त पंक्तियों में किया है किन्तु इस युग का शिक्षित और विज्ञान मुखापेक्षी व्यक्ति इसे केवल गरिमा कहकर टाल जाते हैं या उसका उपहास उड़ाते है और कहते हैं कि ऐसा भी कहीं सम्भव है कि मनुष्य किसी व्यक्ति के मन की बात जान ले, दूरवर्ती लोगों से बातचीत कर ले, वस्तुओं का स्थानान्तरण और दूरवर्ती सन्देश जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचे क्या कभी सम्भव हो सकते है?
टेलीफोन, रेडियो, बेतार का तार (वायरलैस) आदि की बात जाने दीजिये इनकी शक्ति और सीमा बहुत थोड़ी है। टेलीविजन भी अभी बड़ा महँगा और यांत्रिक है एक ऐसे आविष्कार की ओर ध्यान आकृष्ट कर रहे है जिससे उपरोक्त पौराणिक आख्यान को शब्दशः सत्य सिद्ध करने करने में अब थोड़ा ही समय और शेष रहा है। जब इस यंत्र का पूर्ण विकास हो जायेगा तो यह संसार इतना समीप आ जायेगा कि भारत और अमेरिका की दूरी ही नहीं विश्व ब्रह्माण्ड ही सिमट कर एक बिन्दू पर आ जायेगा।
ऐसी सम्भावना के प्रथम यंत्र का नाम है ‘टेल स्टार’ इसमें न तो कोई विध्वंसक है और न ही कोई ऐसे कारण जो अन्तरिक्ष यात्रा के काम आयें। इन सबसे कर एक नया ही प्रयोग हुआ है, उसे विश्व-शांति कल्याण के लिये अणु सत्ता का उपयोग की संज्ञा दी जा सकती है। उसमें ऐसी संचार और ग्रहण व्यवस्था की गई है, जिसकी सहायता से दुनियाँ के किसी भी डडडड बैठे मनुष्य को देखना, बातचीत करना आदि सम्भव हो जायेगा। अभी विशेष प्रग्रहण केन्द्रों (रिसीविंग स्टेशन्स) के माध्यम से ही यह व्यवस्था सम्भव होगी पर टेल-स्टार का विस्तृत अध्ययन एक दिन मनुष्य-मनुष्य के बीच बेतार-के-तार की तरह का सम्बन्ध सूत्र बन जायेगा, ऐसी सम्भावना उसके निर्माता डॉ. पियर्स ने स्वयं ही व्यक्त की है।
टेल-स्टार एक प्रकार का चक्र है, जिसमें भीतर तो वैज्ञानिक उपकरण है और बाहर सन्देश प्रेषित (ट्रांसमीटर) और ग्रहण (रिसीव) करने वाली विचित्र प्रणाली का अंकन किया गया है। इसमें गहरे रंग की 3600 वर्ग और सेल (वह बैटरियाँ जो सूर्य की ऊर्जा से चलती है) और भीतर पट्टियों की तरह की एण्टेना है’ ऊपर वाली पट्टी 6390 मेगासाइकिल्स पर सन्देश ग्रहण करती है, अर्थात् इस फ्रीक्वेंसी पर कहीं से भी प्रेषित समाचार या वृत्तचित्र को वह ग्रहण कर लेगी और निचली पट्टी 4170 मेगासाइकिल से उस सन्देश या चित्र को सारी सृष्टि में फैला देगी। पिछले दिनों अन्तरिक्ष यात्री कूपर की यात्रा की अमेरिका के अतिरिक्त इंग्लैण्ड, फ्राँस, जर्मनी आदि कई देशों में दिखाया गया, वह टेल-स्टार की सहायता से ही था।
टेल-स्टार की तकनीकी (टेक्निकल) रचना मानव शरीर से कम आश्चर्यजनक नहीं है। जिस प्रकार हमारे शरीर में 72 हजार नाड़ियों का जाल बिछा है और वह सब कुछ ऐसे शक्ति केन्द्रों (कोष या चक्रों) उपकेन्द्रों से सम्बद्ध हैं, जहाँ की शक्ति से इन नाड़ियों के माध्यम से बाह्य और अन्तर जगत् से सम्बन्ध और सामंजस्य स्थापित होता है। शरीर के एक स्थान की प्रतिक्रिया दूसरे अंगों पर होती है, वह इन नाड़ियों के माध्यम से होती हैं, उसे विशेष शक्ति कोषों की अस्तर अनुभूति (सेल्फ रियलाइजेशन) कह सकते हैं, उसी प्रकार टेलस्टार में भी हजारों ग्रहण और प्रेषण (रिसीविंग एण्ड ट्रान्समिसिंग) प्रणालियाँ रखी गई है, जिससे उन्हें विश्व के किसी भी भाग में सुना और देखा जा सके।
टेलस्टार का कुल वजन 170 पौण्ड और व्यास केवल 34 इंच है, जिस तरह एक बालक किसी पतंग को मजे से आकाश में उड़ा लेता है, उसी प्रकार टेलस्टार को अन्तरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर दिया जाता है। वहाँ से अपना काम प्रारम्भ कर देता है। अभी इसे केवल अमेरिका की बैल टेलीफोन प्रयोगशाला ने तैयार किया। उसे छोड़ने के लिये एण्डोवर नामक स्थान में एक विशाल एण्टेना निर्मित किया गया है। अभी केवल यूरोप में ही कुछ ऐसे केन्द्र स्थापित हुए है, जो इस संचार व्यवस्था का लाभ उठा रहे हैं पर वह दिन दूर नहीं जब इसकी सहायता से चन्द्रमा और शुक्र आदि ग्रहों में पहुँचे लोगों से भी बातचीत करने में सहायता मिलेगी।
‘टेलस्टार’ की मुख्य भूमिका यह है कि वह धरती के प्राप्त संकेतों को दस अरब गुना शक्ति बढ़ा देता है और फिर उस बढ़ी हुई शक्ति से उस सन्देश को धरती की ओर प्रेषित करता है। उपग्रह से संकेत भेजने की शक्ति ढाई वाट की है, जो पृथ्वी पर आने तक घटकर अरबों हिस्से के बराबर रह जाती हे। इस कारण सामान्य स्तर पर उसे सुना जाना सम्भव नहीं होता, इसलिये एण्डोवर (स्थान का नाम) 177 फूट ऊँचा एण्टीना (उपग्रह संचार-केन्द्र बनाया गया। यह संकेतों की आवाज को फिर बढ़ा देता है, जिससे सामान्य संचार व्यवस्था का कार्यक्रम चलने लगता है, अर्थात् एण्डोवर की फ्रीक्वेंसी पर यूरोप के (अभी) सभी देश अपने रेडियो और टेलीविजन सेटों पर सुन और देख लेते है। बाद में वह व्यवस्था सारे संसार के लिये उपलब्ध हो जायेगी।
इस व्यवस्था पर भारी व्यय लगता है। 30 लाख डालर की धनराशि केवल एक बार के प्रयोग में व्यय होती है। इतना व्यय हर बार उपग्रह भेजने पर उठाना पड़ता है। फिर यहाँ पृथ्वी में अनेक एण्टीना स्थापित करने का व्यय भी बहुत अधिक है। अमेरिका में 177 फुट का विशाल एण्टीना बना है, उसका 370 टन भार है और डिग्री के बीसवें भाग तक नियन्त्रण कर सकता है, का निर्माण व्यय कई करोड़ डालर तक बैठा है, इसलिये यह व्यवस्था सब के लिये सम्भव नहीं। इंग्लैण्ड में ‘गूनहिली डाउन्स’, फ्राँस में ब्रिटोनी और पश्चिम जर्मनी में म्यूनिख के बाहर बिल्हेम में ही एण्टीना निर्मित होने की सम्भावनायें है, शेष देश तो अभी उसकी प्रारम्भिक जानकारी जुटाने में ही संलग्न है। सभी देशों में व्यवस्थायें हो जायेंगी तो एक महाद्वीप का दूसरे महाद्वीप से संचार का सीधा सम्बन्ध जुड़ जायेगा और तब अन्तरिक्ष यात्रियों के सन्देश, उनके चित्र आदि भी यहाँ उतने ही साफ देखे और सुने जा सकेंगे।
11 जुलाई 1962 को पहला टेलस्टार आकाश में स्थापित किया गया। जब वह एण्डीवर की एण्टीना से उड़कर अपने नियत स्थान पर चक्कर लगाने लगा। 25 टन वजन और नकली रबर मिले डेक्रोन तन्तुओं से बने एण्डोवर एण्टीना ने आध घण्टे में ही सन्देश अमेरिका के उपराष्ट्रपति टेलीफोन हाथ में लेकर खड़े थे। इधर फ्रैड कैपेल एण्डोवर से बोल-” आप जानते होंगे कि यह आवाज टेलस्टार उपग्रह द्वारा प्रसारित की जा रही है, आपको आवाज कैसी सुनाई दे रही है। उधर से उपराष्ट्रपति ने अभिवादन का उत्तर इन शब्दों में दिया- “मि० कैपेल, आपकी बिल्कुल साफ सुनाई दे रही है।” यह उद्घाटन थ इसके बाद लाखों अमेरिकियों न सारे पेरिस को अपने टेलीविजनों में देखा। वहाँ की प्रत्येक वस्तु साफ ऐसे ही दिखाई दे रही थी, जैसे कोई आकाश में बैठकर विस्तृत भूभाग का दृश्य देख रहा हो। पेरिस का संगीत दृश्य और स्वर बिल्कुल स्पष्ट और साफ सुने गये। फिर इंग्लैण्ड का कार्यक्रम दिखाया गया। टेलस्टार से अन्तरिक्ष की अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिलने के भी समाचार मिले है। अनुमान है कि यह टेलस्टार दो-सौ वर्ष तक काम करता रहेगा।
इस अनुसन्धान से सामान्य जनता को अभी लाभ मिले भले ही न मिला हो पर लोग यह अनुभव कर रहे है कि ऐसी कोई सत्ता, जो टेलस्टार की तरह की सम्भावनाओं से परिपूर्ण हैं, मानव शरीर में हो सकती है क्या? यदि हाँ तो क्या उपनिषद् का वह अंश जो ऊपर प्रजापति ने देवताओं को सुनाया, उसी का संकेत तो नहीं है। यदि हाँ तो मनुष्य इस खर्चीली और जटिल यांत्रिक प्रक्रिया में क्यों पड़े। अपने आन्तरिक ‘टेलस्टारों’ का ही विकास क्यों न किया जाये?
वैज्ञानिक इस बात को मानते हैं कि यांत्रिक संचार और दूरदर्शन (टेलीविजन) प्रणाली शरीर की संचार और दर्शन प्रणाली का नमूना है, वे यह भी मानते ह। कि मनुष्य के मस्तिष्क में उठने वाले विचारों को भी एक नियत फ्रीक्वेंसी पर ग्रहण किया जा सकता ह पर उसके लिये भेजे जाने वाले सन्देशों की शक्ति टेलस्टार की तरह किसी अणु-शक्ति द्वारा बढ़ा दी जाये, उसी प्रकार ग्रहण करने वाला भी अपनी शक्ति को उतना बढ़ाने की वह हवा में तैरते हुये सन्देशों में से अपनी फ्रीक्वेंसी के सन्देश की शक्ति को बढ़ाकर ग्रहण कर लें। ऐसे चक्र ऐसे संस्थान जो 3600 बैटरियों की तरह उन विचारों को शक्ति दे सकें, शरीर में हैं केवल उनके विकास की आवश्यकता है, इसकी पुष्टि वैज्ञानिक संचार-उपग्रह टेलस्टार से कर रहें हैं।
जिस दिन यह अभ्यास मनुष्य पूरा कर लेगा उस दिन मनुष्य-मनुष्य तो क्या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक बिन्दु पर आ जायेगा। तब न कोई कष्ट होगा। न कोई अभाव, न किसी की प्रेम पीड़ा और न कोई अज्ञान। भले ही अभी इस तरह के आध्यात्मिक विकास में कुछ समय लगे।
एक साधु थे, योग साधना करते थे और प्रतिदिन सायंकाल ग्रामवासियों को एकत्रित कर उन्हें ज्ञान दान भी दिया करते थे। साधु का ही प्रभाव था कि गाँव में न कोई चोरी करता था और न छल-कपट ईर्ष्या-द्वेष और बेईमानी। सब लोग प्रेमपूर्वक रहते थे।
एक दिन गाँव के कुछ मनचले लड़कों को शरारत सूझी। कई लड़के इकट्ठा होकर साधु के पास गये और बोले- महात्मन्! अपने गाँव के पास जो गंगा जी का पुल है, नाराज हो गया हे, कहता है, मुझे दस हजार रुपये दो तो रुकूँगा, नहीं कहीं दूर चला जाऊँगा हम लोगों ने बहुत मनाया, मानता ही नहीं। हारकर गाँव वाले चन्दा इकट्ठा कर रहें हैं। खुद आप भी दान दीजिये।
साधु ने ध्यान से सब बात सुनि बच्चों की ओर देखा- थोड़ा मुस्कराए, भीतर कुटी में गये और पाँच रुपये लाकर लड़कों को देते हुये बोले- “लो शीघ्र जाओ और पुल को कहीं बाहर जाने से रोको।”
लड़के तब तो चले गये पर दूसरे दिन आकर उन्होंने भक्तिपूर्वक प्रणाम किया और पूछा- “महाराज! आप तो इतने ज्ञानी हैं, फिर आप इतना भी नहीं समझ सके कि पुल भी कहीं रुकता है?”
साधु हँसे और बोले- “बेटा! वह तो मैं भी समझ गया था पर आप लोगों की परोपकार की भावना की रक्षा तो करनी थी।”
बालक बहुत संतुष्ट हुये ओर उस दिन से सच्चे मन से परोपकार करना प्रारम्भ कर दिया
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