महात्मा पुरुषों की कोई सीमा नहीं होती, जो साधारण महात्मा होते हैं, उनके गुण, प्रभाव, रहस्य कोई नहीं बता सकता और जो भगवान् के भेजे हुए महापुरुष होते हैं उनकी तो बात ही क्या है, वे तो भगवान् के समान होते हैं। यह कह दें तो भी कोई आपत्ति नहीं। भगवान् के दर्शन, भाषण से जो लाभ मिलता है उनके दर्शन भाषण से हमें वही लाभ मिलता है, किन्तु एसे भक्त जो भगवान् के अन्तरंग होते हैं या तो भगवान् के साथ आते हैं या कभी अकेले भी आते हैं। ध्रुव जी के लिये भगवान् अकेले ही आय, कृष्णावतार में भगवान् गोपियों और गोपों को साथ लाये। संसार में भी साधन करके बहुत उच्चकोटि के महात्मा बन जाते हैं।
भगवान् के नाम की, भगवान् की और उनके भक्तों की जितनी महिमा गायी जाय उतनी ही कम है।
भगवान् के भक्तों की भगवान् के समान उपमा दी।
उदराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्।
आस्थितः स हि युक्त्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्।।
वे सभी उदार हैं, परंतु ज्ञानी तो साक्षात् मेरा स्वरुप ही है। क्योंकि वह मद्गत मन-बुद्धिवाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम गति स्वरुप मुझमें ही अच्छी प्रकार स्थित है।
भगवान् के भक्त हमें कई मिलते हैं, किन्तु भगवान् के मिलने पर जो आनन्द हो ऐसा आनन्द नहीं होता। इसका कारण यह है कि प्रभु ने अपना अधिकार देकर भेजा हो ऐसा पुरुष देखने में तो कोई नहीं आता। कोई हो हमें जानकारी न हो तो वह होकर भी अप्राप्त ही है।
जिसके दर्शन, स्पर्श, भाषण से कल्याण हो जाय, जिसको भगवान् ने संसार के कल्याण के लिये भेजा हो, ऐसे पुरुष संसार में नहीं दिखते। ऐसे पुरुष तो मिल सकते हैं जिन्हें परमात्मा की प्राप्ति हो गयी हो। वे दूसरों के साधन बता देते हैं। भगवान् भी सदा ऐसा अधिकार देते भी नहीं हैं।
भगवान् शंकर को अधिकार है, नारद जी को है, हनुमान् जी को है, किन्तु उनका पता नहीं है। ऐसे-ऐसे भक्त भगवान् के भक्त होते हैं जैसे भगवान् के दर्शन करने से शान्ति, आनन्द मिलता है, वही बात उनके दर्शन करने से होती है। जो भगवान् के भेजे हुए होते हैं। जिन्हें देखने से भगवान् की स्मृति को समझना चाहिये कि ये भगवान् के भक्त हैं। ऐसे पुरुष भगवान् की प्राप्ति का मार्ग बता सकते हैं, किन्तु भगवान् से शक्तिशाली नहीं होते। ऐसा तो कोई एक पुरुष ही होता है जो भगवान् भी नहीं कर सकें, ऐसा काम वह कर सकता है। ऐसा पुरुष मिले कैसे? भगवान् से प्रार्थना करने से। प्रार्थना करने से तो भगवान् स्वयं ही मिल जाते हैं। भगवान् के भक्त का मिलना उसके अन्तर्गत नहीं है, किन्तु उनके भक्त से मिलना हो गया तो भगवान् का मिलना उसके अन्तर्गत ही है। इसलिये हमें ऐसे भक्तों से मिलने के लिये भगवान् से प्रार्थना करनी चाहिये। भगवान् कानून में बंधे रहने के कारण सारे संसार का उद्धार नहीं करते, किन्तु ऐसे भक्त संसार का कल्याण कर सकते हैं। उन्हें मौका मिल गया तो संसार का उद्धार करने के लिये कमर कस लेते हैं। ऐसे भक्त नरक में जाते हैं तो नरक की जीवों का भी कल्याण करते हैं। एक कायस्थ की कहानी आती है। उसे किसी कारणवश यमपुरी का अधिकार मिल गया तो जो आता उसको वह वैकुण्ठ भेजता गया। ऐेसे भक्तों से मिलकर वैकुण्ठ का दरवाजा खुलवाना चाहिये। घोर कलिकाल है इसमें छूट तो बहुत है, किन्तु और छूट करवानी चाहिये। इतनी छूट से काम नहीं चलता। भगवान् तो नीति में बंधे रहते हैं—
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वत्र्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।
जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूं, क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।
ऐसा उद्देश्य रखना चाहिये जिस किस प्रकार से संसार का उद्धार हो। भले ही अपने लिये नरक हो, किन्तु संसार का उद्धार होना चाहिये।
सबका उद्धार कर सकने वाले का स्थान खाली है। वह स्थान उसके लिये खाली है जिसका यह भाव हो कि सारे संसार का उद्धार होना चाहिये
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