त्रेता युग में उस अवतार का जन्म हुआ जिसका नाम भारत और हिंदु समाज से एकाकार हो गया है। देश में सहज अभिवादन ‘सीताराम’, ‘जय रामजी की’ या ‘जय श्रीराम’ बने।
पुत्र का जन्म हुआ तो कहा, ‘हमारे घर राम आए हैं।‘ विवाह के अवसर पर लोकगीतबने-‘आज राम-सीता का विवाह है।‘ मानव जीवन की चरम आकांक्षाओं का केंद्र – राम। हिंदु जीवन में क्षण-क्षण के साथी बने-राम।
रामराज्य आदर्श बना और ‘राम' का नामोच्चारण सब संकटों से त्राण करने वाला। हिंदुओं के लिए सृष्टि राममय बनी।
राम की यशोगाथा भारत एवं दक्षिण- पूर्व एशिया की सभी भाषाओं ने गाई है। वह धीरे-धीरे संसार में फैली। आदि कवि वाल्मीकि की वाणी में मर्यादा पुरूषोत्तम राम की छंदबद्ध कथा फूट निकली।
यही मर्यादा पुरूषोत्तम राम कंबन की तमिल भाषा में लिखी ‘कंब रामायण’ से लेकर गोस्वामी तुलसीदास की अवधी बोली की ‘रामचरितमानस’ तक के भगवान् राम बने।
यह ‘रामचरितमानस’ संसार के साहित्य में एक अद्वितीय और अनुपम ग्रंथ है। जिस समय भारत के भाग्याकाश में घोर निराशा के बादल छाए थे और यह धरा आक्रमणकारियों से पद्दलित थी, तब इसने राम का स्मरण दिलाकर समाज को जीवंत बनाया। यह कहानी दंतकथा के रूप में बड़े-बूढ़ों द्वारा घर-घर में कही गई।
नव दुर्गा के त्यौहार के समय ग्राम-नगर राम की लीला खेलते। इसकी परिणति विजयादशमी के रावण वध में अथवा दीपावली के दिन राम के राजतिलक में होती है।
बृहत्तर भारत में मंचित ये गीतनृत्य-नाटिकायें भारत के अतिरिक्त दक्षिण- पूर्व एशिया के अनेक देशों में देखी जा सकती हैं। भारत में पूर्वी हिंद द्वीप समूह (इंडोनेशिया) (जो मुस्लिम बहुल देश है) के प्रथम राजदूत अपनी दोनों पुत्रियों ‘जावित्री’ और ‘सावित्री’ के साथ दिल्ली की रामलीला देखने आए।
तब बताया कि दोनों पुत्रियाँ किस प्रकार जावा (यव द्वीप) की रामलीला में ऩत्य- अभिनय करती थीं। स्याम (आधुनिक थाईलैंड) के राजाओं की पदवी सदा से ‘राम’ चली आई है। कंबोज (आधुनिक कंबोडिया) के राजघराने यह पदवी धारण करते थे।
दक्षिण-पश्चिम एशिया (middle east) की सभ्यताओं में भी कभी-कभी यह नाम (राम) दिखता है; किंवदंतियों में इस कहानी की छाया और संसार के अनेक रीति-रिवाजों में इसकी अभिव्यक्ति है।
No comments:
Post a Comment