आगे अमृत-मंथन की कथा को समझने के लिए देवासुर संग्राम की भूमिका जानना आवश्यक है। आर्यों के मूल धर्म में सर्वशक्तिमान् भगवान के अंशस्वरूप प्राकृतिक शक्तियों की उपासना होती थी। ऋग्वेद में सूर्य, वायु, अग्नि, आकाश, और इंद्र से ऋद्धि-सिद्धियाँ माँगी हैं।
यही देवता हैं। बाद में अमूर्त देवताओं की कल्पना हुई जिन्हें ‘असुर’ कहा। ‘देव’ तथा ‘असुर’ ये दोनों शब्द पहले देवताओं के अर्थ में प्रयोग होते थे। ऋग्वेद के प्राचीनतम अंशों में ‘असुर’ इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
वेदों में ‘वरूण’ को ‘असुर’ कहा गया और सबके जीवनदाता ‘सूर्य’ की गणना ‘सुर’ तथा ‘असुर’ दोनों में है। बाद में देवों के उपासक ‘देव’ शब्द को देवता के लिए प्रयुक्त करने लगे और ‘असुर’ का अर्थ ‘राक्षस’ करने लगे।
पुराणों में सर्वत्र ‘असुर’ राक्षस के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इसी प्रकार ईरानी आर्य ‘असुर’ (जो वहाँ ‘अहुर’ बना) से देवता समझते तथा ‘देव’ शब्द से राक्षस। फारसी से आया यह शब्द आज तक इसी अर्थ में प्रयोग होता है।
‘देव’ से अर्थ उर्दू में भयानक, बड़े डील-डौल के राक्षस से लेते हैं। जरथ्रुष्ट के पंथ में इंद्र ‘देव’ (राक्षस) है, जो शैतार ‘अग्रमैन्यु’ की सहायता करता है।
इन दोनों संप्रदायों-देवों के उपासक तथा असुरों के उपासक-के बीच इस प्रकार एक सांस्कृतिक विषमता खड़ी हुई। पुराणों में असुरों को देवों के अग्रज कहा गया है।
असुरों के उपासकों ने लौकिक उन्नति की ओर ध्यान दिया और भौतिक समृद्धि प्राप्त की। कहा जाता है कि भौतिकता में पलकर उन्होंने दूसरे संप्रदाय के ईश्वर के विश्वासों को चुनौती दी। इसलिये उन्हें रजोगुण एवं तमोगुण-प्रधान कहा गया।
देवों के उपासक इस भौतिक समृद्धि को आश्चर्य तथा संदेह की दृष्टि से देखते थे। वे मानते थे कि असुरों के उपासकों ने इसे माया से प्राप्त किया है।
मय नामक असुर देवताओं का अभियंता (engineer) कहा जाता है। देव संस्कृति सत्व गुण पर आधारित थी। उसकी प्रेरणा आध्यात्मिक थी और दृष्टिकोण भौतिकवादी न था।
इस प्रकार कालांतर में देवों और असुरों के उपासकों में धार्मिक एवं सांस्कृतिक मतभेद उत्पन्न हुए। इसने संघर्ष का रूप धारण किया। असुर संप्रदाय के कुछ लोग प्रमुखतया ईरान में बसे।
संभवतया इस कारण से भी आर्य आपने आदि देश भारत को छोड़कर ईरान और यूरोप में फैले हों। वैसे यह आर्यों के साहसिक उत्साही जीवन की कहानी है।
इतिहास में अनेक संप्रदाय अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक विचारों के कारण स्वदेश छोड़ नए देशों में बसे। इंग्लैंड से बैपटिस्ट आदि ने अपनी धार्मिक स्वतंत्रता बचाने के लिए अमेरिका की शरण ली।
पर भारत में असुरों के उपासक इन मतांतरों के बाद भी चक्रवर्ती सम्राट हुए। अमृत-मंथन की गाथा इन दो संप्रदायों में समन्वय की कहानी है।
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