Wednesday, 15 June 2016

🌿मीरा चरित (14)

जय गौर हरि ॥


क्रमशः से आगे.............

मीरा ने जब इतनी दैन्यता और क्रन्दन करते हुए रैदास जी से उसे शिष्या स्वीकार करने की प्रार्थना की तो वे भी भावुक हो उठे । सन्त ने मीरा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा," बेटी ! तुम्हें कुछ अधिक कहने- सुनने की आवश्यकता नहीं है ।नाम ही निसेनी (सीढ़ी ) है और लगन ही प्रयास , अगर दोनों ही बढ़ते जायें तो अगम अटारी घट में प्रकाशित हो जायेगी ।इन्हीं के सहारे उसमें पहुँच अमृतपान कर लोगी ।समय जैसा भी आये, पाँव पीछे न हटे , फिर तो बेड़ा पार है ।" इतना कह वह स्नेह से मुस्कुरा दिये ।

" मुझे कुछ प्रसाद देने की कृपा करें ।" मीरा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की ।

सन्त ने एक क्षण सोचा ।फिर गले से अपनी जप- माला और इकतारा मीरा के फैले हाथों पर रख दिये ।मीरा ने उन्हें सिर से लगाया , माला गले में पहन ली और इकतारे के तार पर पर उँगली रखकर उसने रैदास जी की ओर देखा ।उसके मन की बात समझ कर उन्होंने इकतारा मीरा के हाथ से लिया और बजाते हुये गाने लगे..........

🌿प्रभुजी ,तुम चन्दन हम पानी ।
जाकी अँग अँग बास समानी ॥

🌿प्रभुजी ,तुम घन बन हम मोरा ।
जैसे चितवत चन्द्र चकोरा ॥

🌿प्रभुजी , तुम दीपक हम बाती ।
जाकी जोत बरे दिन राती ॥

🌿प्रभुजी , तुम मोती हम धागा ।
जैसे सोनहि मिलत सुहागा ॥

🌿प्रभुजी ,तुम स्वामी हम दासा ।
ऐसी भगति करे रैदासा ॥

रैदास जी ने भजन पूरा कर अपना इकतारा पुनः मीरा को पकड़ा दिया, जो उसने जीवन पर्यन्त गुरु के आशीर्वाद की तरह अपने साथ सहेज कर रखा ।गुरु जी के इंगित करने पर मीरा ने उसे बजाते हुए गायन प्रारम्भ किया .....

🌿 कोई कछु कहे मन लागा ।
ऐसी प्रीत लगी मनमोहन ,
ज्युँ सोने में सुहागा ।

🌿 जनम जनम का सोया मनुवा ,
सतगुरू सबद सुन जागा ।

🌿मात- पिता सुत कुटुम्ब कबीला,
टूट गया ज्यूँ तागा ।

🌿मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
भाग हमारा जागा ।
कोई कुछ कहे मन लागा ॥

चारों ओर दिव्य आनन्द सा छा गया ।उपस्थित सब जन एक निर्मल आनन्द धारा में अवगाहन कर रहे थे ।मीरा ने पुनः आलाप की तान ली......

🌿पायो जी मैंने राम रत्न धन पायो ।
🌿वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरू ,
किरपा कर अपनायो ॥

🌿जनम जनम की पूँजी पाई ,
जग में सभी खुवायो (खो दिया)॥

🌿खरच न खूटे , चोर न लूटे ,
दिन दिन बढ़त सवायो ॥

🌿सत की नाव खेवटिया सतगुरू,
भवसागर तैरायो ॥

🌿मीरा के प्रभु गिरधर नागर ,
हरख हरख जस गायो ॥
🌿पायो जी मैंने राम रत्न धन पायो ॥

रैदास जी मीरा का भजन सुनकर अत्यंत भावविभोर हो उठे ।वे मीरा सी शिष्या पाकर स्वयं को धन्य मान रहे थे ।उन्होंने उसे कोटिश आशीर्वाद दिया ।दूदाजी भी संत की कृपा पाकर कृत कृत्य हुये ।

संत रैदास जी दो दिन मेड़ता में रहे ।उनके जाने से मीरा को सूना सूना लगा ।वह सोचने लगी कि," दो दिन सत्संग का कैसा आनन्द रहा ? सत्संग में बीतने वाला समय ही सार्थक है ।"

क्रमशः ...............
॥श्री राधारमणाय समर्पणं ॥

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