Sunday 19 June 2016

अर्धांगिनी का कर्तव्य

विद्योत्तमा अपने समय की असाधारण विदुषी थी। उनने अपने से अधिक विद्वान के साथ विवाह करने की प्रतिज्ञा कर रखी थी। अनेक विद्वान आते और शास्त्रार्थ में परास्त होकर लौट जाते। इन असफल विद्वानों ने ईर्ष्यावश विद्योत्तमा को नीचा दिखाने के लिए एक षडयंत्र किया। एक मूर्ख को मौन व्रतधारी कहकर साथ ले आये और संकेतों से शास्त्रार्थ करने की बात पर दोनों की सहमति प्राप्त कर ली। मूर्ख के समर्थक सभी पंडित बन गये थे। संकेतों को ऐसा अर्थ निकालते जिसका तात्पर्य ऐसा निकलता जिसमें विद्योत्तमा परास्त हो जाती।
अन्तः उस अशिक्षित से विद्योत्तमा का विवाह हो गया। जब वे बोलने लगे तो पता चला कि उन्हें धोखा हुआ। संकेतों के बहाने उसे छला गया। विवाह तो उसने स्वीकार कर लिया पर विवाह के उत्तरदायित्व तय तक न निभाने की बात स्पष्ट कर दी और कहा जब आप मुझ से बढ़ कर विद्वान होंगे तभी दाम्पत्य जीवन की शुरुआत होगी।
उस पुरुष का नाम कालिदास था। उन्हें लाज लगी, तिलमिला गये और उस चुनौती को स्वीकार करके विद्याध्ययन में पूरे परिश्रम और मनोयोग के साथ लग गये। समय आया कि कालिदास भारत के माने हुए विद्वान बने। उनकी प्रतिभा निखारने में विद्योत्तमा ने भी पूरा योगदान दिया ।।


राधे राधे
राधा रानी मनुहार हमारी सुन लेना
तुम्हारी सेवा में ही हमारे सुख का वास
कान्हा संग दरस तुम्हारा,पूरन हो मन की आस
चरण-चाकरी की अभिलाषा
ज्ञात नहीं पूजा-विधान,समर्पित उर-भाष
विधाहीन पूजा को ही अनुनय-विनय मान
प्रार्थना हमारी सुन लेना।
कौन विधि पूजा कीन्हीं,कौन तप ज्ञाता थे?
जो शरण आपकी पा गये,जिन पर कृपालु विधाता थे
मम-उर स्थित गहन आस
टूटती बार-बार, जोड़ कर स्नेह पुनः गाँठ
इक बार तरस खाकर हम पर
दर्शन-ज्योत दिखा देना।
जीवन डोर हाथ तिहारे,बाँधी तुमसे
सुमिरन-स्मरण नादानी भरा,सीखूँ  किससे
खोई नत मस्तक तुम्हारे चरणन में
अश्रु-बिंदु छलकत नयनन में
मन-वीणा के तारों में झँकृत स्मृति तुम्हारी
विस्मृत हमें न कर देना।
भजन भक्ति प्रीत के न मैं गा पाती
न जुगल जोड़ी को रिझा पाती
गहरे डूब-डूब प्रभु चाहत के
खोती सुध-बुध अपनी,दरस नहीं पाती
कोई जतन कर कान्हा के संग
छवि इन नयनन को दिखा देना।

No comments:

Post a Comment