Thursday, 23 June 2016

नारद ने दिया था ब्रह्मा को श्राप


सबसे पहले ब्रह्मा ने सनकादि ऋषियों की सृष्टि की लेकिन वो तपस्वी हो गए। फिर ब्रह्मा ने नारद को उत्पन्न किया और उनसे विवाह करने का और प्रजा उत्पन्न करने का अनुरोध किया, लेकिन नारद ने कहा,"पिताजी, पहले आप अपने ज्येष्ठ पुत्रों को बुलाकर उनका विवाह कीजिये और फिर मेरा विवाह करना। आप जगतगुरु हैं, आपको मुझे भक्तिकर्म में लगाना चाहिए और कृष्ण को प्राप्त करने का मार्ग बताना चाहिए, लेकिन आप क्यों मुझे संसार रुपी दलदल में बाँधना चाहते हैं? हर पिता और गुरु को अपने पुत्र को कृष्ण का मार्ग बताना चाहिए।"
जब ब्रह्मा ने नारद के वचन सुने तो उन्हें क्रोध हो आया। उनके सारे पुत्र संसार की रचना में उनकी सहायता करने की जगह तपस्या का मार्ग ग्रहण करने लगे थे जिससे ब्रह्मा आहत थे। क्रोधित होकर ब्रह्मा ने नारद को श्राप दिया की तू व्यभिचारी बन जा, तू हमेशा असंख्य स्रियों से घिरा रहेगा और तुझे न थमने वाला योवन प्राप्त होगा जिससे तू सभी गंधर्वों में श्रेष्ठ गन्धर्व बनेगा। फिर सालों तक वन में अपनी कई पत्नियों के साथ बिहार करके अगले जन्म में तू दासी का पुत्र बनेगा।
जब #ब्रह्मा ने #नारद को श्राप दिया तो नारद को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने भी ब्रह्मा से कहा,"आपने मुझे व्यर्थ ही गिरने का श्राप दिया है जबकि मैं #कृष्ण का मार्ग पूँछ रहा था। ऐसे बिना कारण मुझे श्राप देकर आपने अपराध किया है। मैं भी आपको श्राप देता हूँ की अब आप पूजनीय नहीं होंगे। आपके द्वारा रचे हुए देवता और गन्धर्व, नाग आदि भी पूजनीय होंगे लेकिन आपको तीन कल्पों तक तीनों लोकों में कोई नहीं पूजेगा। आपके सारे मन्त्र, कवच और यंत्र लोप हो जायेंगे।"

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