जिज्ञासु एवं जिज्ञापयिषु में भेद
जिज्ञासु एवं जिज्ञापयिषु में यह भेद है कि जिज्ञासु जानने का इच्छुक होता है जबकि जिज्ञापयिषु जताने का।
अनेक बार देखने को मिलता है कि वास्तव में जिज्ञापयिषु ही जिज्ञासु के रूप में वार्ता में प्रवेश कर निज ज्ञान को जताने का उपक्रम करता है।
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भयंकर से भिड़ने से पूर्व कोई बहादुर
नहीं कहलाता।
त्रुटियों से सीखने से पूर्व कोई विद्वान
नहीं कहलाता।
प्रयासों के करने से पूर्व कोई सफल
नहीं कहलाता।
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मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा।
क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः।।
मूर्खों के पाँच लक्षण हैं - गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर॥
जिज्ञासु एवं जिज्ञापयिषु में यह भेद है कि जिज्ञासु जानने का इच्छुक होता है जबकि जिज्ञापयिषु जताने का।
अनेक बार देखने को मिलता है कि वास्तव में जिज्ञापयिषु ही जिज्ञासु के रूप में वार्ता में प्रवेश कर निज ज्ञान को जताने का उपक्रम करता है।
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भयंकर से भिड़ने से पूर्व कोई बहादुर
नहीं कहलाता।
त्रुटियों से सीखने से पूर्व कोई विद्वान
नहीं कहलाता।
प्रयासों के करने से पूर्व कोई सफल
नहीं कहलाता।
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मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा।
क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः।।
मूर्खों के पाँच लक्षण हैं - गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर॥
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