Thursday, 23 June 2016

श्रीरामजी शांत स्वभाव

भगवान श्रीरामजी बड़े ही लजीले, सरल, संकोची व शांत स्वभाव के हैं।
यदि कोई उन्हें प्रेमपूर्वक (छल-कपट रहित होकर)
प्रणाम भी कर ले तो सकुचा जाते हैं, रीझ जाते हैं।
वनवास की लीला में रामजी और मुनि लोग परस्पर अनुनय-विनय करते हुए देखे जाते हैं।
गोस्वामी जी के शब्दों में जब मुनि लोग उनके सहज
स्वरूप (परमात्म स्वरूप ) का निरूपण करने लगते हैं तो श्रीरामजी लज्जा- संकोच के मारे सिर झुका लेते हैं।
लेकिन जब केवट और बंदर-भालू रामजी को मित्र एवं भाई कहते हैं, तो अपनी बड़ाई मानते हैं।
जिसको कहीं भी किसी के द्वारा कोई आदर-सत्कार नहीं मिलता, श्रीराम जी उसका भी आदर- सत्कार करते हैं।
जिसको लोग पास फटकने तक नहीं देते, उसकी बाँह पकड़ कर पास बिठाते हैं और गले से लगा लेते हैं।
जिसकी कोई एक बात भी नहीं सुनता, श्रीरामजी बड़े प्रेम से उसकी पूरी गाथा सुन डालते हैं।
श्रीराम जी के अलावा और कोई दूसरा नहीं है जो बानर और भालुओं को भी अपना मित्र बनाया हो।
आमिष भोगी गिद्ध का पिता के समान श्राद्ध किया हो और भिलनी को माता का सम्मान दिया हो, ऐसा करने वाले एकमात्र श्रीराम जी ही हैं।
केवट को लोग छूते नहीं थे लेकिन श्रीरामजी ने उसे अपने ह्रदय से लगाया।
इसी तरह अन्य कोलों, किरातों और भीलों आदि को भी ह्रदय से लगाया।
और तो और चाहे राम-राम कहो या ‘मरा-मरा’ राम जी प्रसन्न हो जाते हैं, कहने का मतलब उल्टा-सीधा जैसे भी नाम लेने से खुश हो जाते हैं।
दरअसल मेरे राम जी मान-अमान से परे हैं, लेकिन
दूसरों को सदा मान और बड़ाई देते हैं।

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