Sunday 12 June 2016

हिंगलाज शक्तिपीठ-



हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सिंध राज्य की राजधानी कराची से 120 कि.मी. उत्तर-पश्चिम में हिंगोलनदी के तट पर ल्यारी तहसील के मकराना के तटीय
क्षेत्र में हिंगलाज में स्थित एक हिन्दू मंदिर है।
यह इक्यावन शक्तिपीठ में से एक माना जाता है । और कहते हैं कि यहां सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था। पुराणों में हिंगलाज पीठ की अतिशय महिमा है।'श्रीमद्भागवत' के अनुसार यह हिंगुला देवी का प्रिय महास्थान है, 'हिंगुलाया महास्थानम्'।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि हिंगुला देवी के दर्शन से पुनर्जन्म कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। यहाँ पर शक्ति 'हिंगुला' तथा शिव 'भीमलोचन' हैं ।
इस शक्तिपीठ में शक्तिरूप ज्योति के दर्शन होते है । गुफ़ा में हाथ व पैरों के बल जाना होता है। मुसलमान हिंगुला देवी को 'नानी' तथा वहाँ की यात्रा को नानी की यात्रा को 'नानी का हज' कहते हैं। पूरे- बलूचिस्तान के मुसलमान भी इनकी उपासना व पूजा करते है । हिंगलाज की यात्रा कराची से प्रारंभ होती है। कराची से लगभग 10 किलोमीटर दूर हॉव नदी है। वस्तुतः मुख्य यात्रा वही से होती है। हिंगलाज जाने के पहले लासबेला में माता की मूर्ति का दर्शन करना होता है।
यह दर्शन 'छड़ीदार' (पुरोहित) कराते हैं। वहाँ से शिवकुण्ड (चंद्रकूप) जाते हैं, जहाँ अपने पाप की घोषणा कर नारियल चढ़ाते हैं। जिनकी पाप मुक्ति हो गई और दरबार की आज्ञा मिल गई, उनका नारियल तथा भेंट स्वीकार हो जाती है वरना नारियल वापस लौट आता है।
हिंगुलाज को 'आग्नेय शक्तिपीठ तीर्थ' भी कहते है। देवी के शक्तिपीठों में कामाख्या, काँची, त्रिपुर, हिंगुला प्रमुख शक्तिपीठ हैं।
'हिंगुला'- का अर्थ सिन्दूर है। हिंगलाज खत्री समाज की कुल देवी है । कहते हैं, जब 21 बार क्षत्रियों का संहार कर परशुराम आए, तब बचे राजागण माता हिंगुला की शरण में गए और अपनी रक्षा की याचना की। तब माँ ने उन्हें 'ब्रह्मक्षत्रिय' कहकर
अभयदान दिया।
माँ के मंदिर के नीचे अघोर नदी है। कहते हैं कि रावण के वध के पश्चात् ऋषियों ने राम से ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति हेतु हिंगलाज मे यझ करके कबूतरों को दाना चुगाने को कहा ।
श्रीराम ने वैसे ही किया। उन्होंने ग्वार के दाने हिंगोस नदी में डाले। वे दाने ठूमरा बनकर उभरे, तब उन्हें ब्रह्महत्यादोष से मुक्ति मिली। वे दाने आज भी यात्री वहाँ से जमा करके ले जाते हैं।
गुफ़ा के पास ही अतिमानवीय शिल्प-कौशल का नमूना माता हिंगलाज का महल है, जो यज्ञों द्वारा निर्मित माना जाता है। एक नितांत रहस्यमय नगर प्रतीत होता है, मानों पहाड़ को पिघलाकर बनाया गया हो।

माँ की गुफ़ा के बाहर विशाल शिलाखण्ड पर, सूर्य-चन्द्रमा की आकृतियाँ अंकित हैं। कहते हैं - कि ये आकृतियाँ राम ने यहाँ यज्ञ के पश्चात ने स्वयं अंकित किया था।
ऐसी मान्यता है कि- वहाँ आसाम की कामाख्या, तमिलनाडु की
कन्याकुमारी, काँची की कामाक्षी, गुजरात मे अम्बाजी प्रयाग की ललिता, विन्ध्याचल की विन्ध्यवासिनी, काँगड़ा की
ज्वालामुखी, वाराणसी की विशालाक्षी, गया की मंगलादेवी, बंगाल की सुंदरी, नेपाल की गुह्येश्वरी और मालवा की कालिका इन द्वादश रूपों में आद्याशक्ति ही हिंगला देवी के रूप में सुशोभित हो रही हैं।
पौराणिक मान्यतानुसार पारद भगवान शिव का वीर्य है, जिसे वैद्यगण हिंगुल (हींग) से निकालते हैं तथा गंधक पार्वती का रज है। ये दोनों ही खनिज हैं। जिससे पारद् शिवलिंग बनता है ।

।। जय हिंगलाज मैया की ।।

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