Monday, 6 June 2016

हथियार की तरह हो रहा तारीफ का इस्तेमाल :-


वो जमाना चला गया जब किसी को नेस्तनाबूद करना हो तो अस्त्र-शस्त्र जरूरी हुआ करते थे। अब पूरी दुनिया नए दौर में प्रवेश कर चुकी है, जहाँ आदमी का मानसिक कवच इतना अधिक कोमल और मक्खनिया हो गया है कि मामूली आघात तक को सहन कर पाने की स्थिति में नहीं है।
इसके कई सारे कारण भी हैं। आदमी कम समय में पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर लेना चाहता है, जितना अधिक हो सके अपने नाम करवा लेना चाहता है और चाहता है कि वह रातों रात बहुत बड़ा बादशाह या वैभवशाली बन जाए, चाहे इसके लिए उसे किसी भी तरह का शॉर्ट कट या अवैध मार्ग क्यों न अपनाना पड़े।
और यही कारण है कि नाजायज रास्तों से सब कुछ पा जाने की दौड़ में आगे बढ़ने की जद्दोजहद में आदमी आत्मविश्वासहीन हो गया है, आत्मा की मौलिक ताकत खो चुका है। और इस सबका असर ये हो रहा है कि उसके संकल्पों और सिद्धान्तों का ह्रास होता जा रहा है।
यही कारण है कि आदमी छोटी सी अनचाही पर व्यथित हो जाता है, आपा खो बैठता है और वैसी हरकतें करने लगता है जो आदमी को शोभा नहीं देती।
आदमी की इस कमजोर मनःस्थिति के कारण उसके उन्मूलन और विनाश के लिए अब किसी हथियार की जरूरत नहीं होती। इसके लिए उसके मानसिक धरातल को छिन्न-भिन्न करने के दूसरे सामान्य प्रयास ही काफी है।
अब आधुनिक संचार की तमाम प्रणालियां उपलब्ध हैं जिनका इस्तेमाल कर कुछ भी किया जा सकता है। बढ़ते जा रहे विश्व की तर्ज पर अब लोग भी जबर्दस्त शातिर होते जा रहे हैं।
आजकल लोग सीधे विरोध की बजाय इन-डायरेक्ट गेम खेलने लगे हैं और इसके लिए अब हथियार के तौर पर नवाचारों का प्रयोग हो रहा है। अब किसी को ठिकाने लगाना हो तो उसकी बुराई न करें, बल्कि उसकी तारीफ ही तारीफ करते रहें।
जमाने भर में अधिकांश लोग नकारात्मक सोच वाले बनते जा रहे हैं और इस स्थिति में जब भी किसी की तारीफ होती है, सामने एक ऐसा वर्ग तैयार हो जाता है जो स्वाभाविक रूप से शत्रु हो जाता है।
जैसे-जैसे तारीफ होती है, सार्वजनिक आदर-सम्मान, पुरस्कार, अभिनंदन आदि का क्रम ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता है, स्वतः पैदा हो जाने वाले शत्रुओं की संख्या में भी उत्तरोत्तर बढ़ोतरी होती चली जाती है। इसलिए कई अति बौद्धिक लोग अब इस परंपरा में सिद्ध होते जा रहे हैं।
अब तो किसी अच्छे इंसान को अपनी प्रतिस्पर्धा से हटाना हो या अपना रास्ता साफ करना हो तो उसकी खिलाफत करने की जरूरत नहीं है। जो लोग उसके निर्णायक हों, निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हों उन लोगों की ऐसी तारीफ ऊपर तक पहुंचा दो कि बिना किसी बाधा के आदमी रास्ते से भी हट जाए और हमारा इच्छित लक्ष्य भी हमें प्राप्त हो जाए।
जो लोग तारीफ करते हैं उनके बारे में शाश्वत सत्य यही नहीं है कि तारीफ सच ही है बल्कि आजकल तारीफ का अर्थ बदलता जा रहा है और तारीफ करने वाले की मानसिकता या शुचिता का कोई पैमाना नहीं रहा।
अब जो तारीफ करता है वह सच्चे मन से तारीफ करे, यह जरूरी नहीं है। उसकी तारीफ हथियार का भी काम कर सकती है। अब तो पता ही नहीं चलता कि कौन सही तारीफ कर रहा है और कौन हथियार चला रहा है।
जहाँ जो तारीफ करे, उसके मुगालते में न रहे, बल्कि यथार्थ के धरातल पर आकर सोचें और उस मूल कारण को तलाशें जो तारीफ की वजह है। आजकल तारीफ के पैमाने भी बदलने लगे हैं। जरा बच के रहियो, तारीफ से भी, और तारीफ करने वालों से भी। पता नहीं कौनसी तारीफ कब हो जाए, और अपना कबाड़ा कर डाले।

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