मनुष्य जब रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श
इन्द्रियों के इन पाँच विषयों में से किसी एक में
भी आसक्त हो जाता है, तब उसे राग-देष के पंजे
मे फँस जाना पडता है । फिर वह जिसमे राग
होता है उसको पाना और जिसमे देष होता है
उसका नाश करना चाहता है । यो करते-करते
वह बड़े-बड़े भयानक काम कर बैठता है और
निरंतर इन्द्रियों के भोगो में ही लगा रहता है
। इसमें उसके ह्रदय में लोभ-मोह, राग-देष छा
जाते है । इसके प्रभाव से उसकी धर्म-बुधि, जो
समय-समय पर उसे चेतावनी देकर पाप से
बचाया करती थी, नष्ट हो जाती है । तब वह
छल-कपट और अन्याय से धन कमाने में लगता है ।
जब दूसरो को धोखा देकर, अन्याय और अधर्म से
कुछ कमा लेता है, तब फिर इसी रीती से धन
कमाने में उसे रस आने लगता है । उसके सुहृद और
बुद्धिमान लोग उसके इस काम को बुरा बतलाते
और उसे रोकते है, तब वह भांति-भांति की
बहाने बाजियाँ करने लगता है । इस प्रकार
उसका मन सदा पाप में ही लगा रहता है, उसके
शरीर और वाणी से भी पाप होते है । वह पापी
जीवन होकर फिर पापीयों के साथ ही
मित्रता करता है और इसके फलस्वरूप न तो इस
लोक में सुख पाता है और न परलोक में ही उसे
सुख-शांति की प्राप्ति होती है ।
इन्द्रियों के इन पाँच विषयों में से किसी एक में
भी आसक्त हो जाता है, तब उसे राग-देष के पंजे
मे फँस जाना पडता है । फिर वह जिसमे राग
होता है उसको पाना और जिसमे देष होता है
उसका नाश करना चाहता है । यो करते-करते
वह बड़े-बड़े भयानक काम कर बैठता है और
निरंतर इन्द्रियों के भोगो में ही लगा रहता है
। इसमें उसके ह्रदय में लोभ-मोह, राग-देष छा
जाते है । इसके प्रभाव से उसकी धर्म-बुधि, जो
समय-समय पर उसे चेतावनी देकर पाप से
बचाया करती थी, नष्ट हो जाती है । तब वह
छल-कपट और अन्याय से धन कमाने में लगता है ।
जब दूसरो को धोखा देकर, अन्याय और अधर्म से
कुछ कमा लेता है, तब फिर इसी रीती से धन
कमाने में उसे रस आने लगता है । उसके सुहृद और
बुद्धिमान लोग उसके इस काम को बुरा बतलाते
और उसे रोकते है, तब वह भांति-भांति की
बहाने बाजियाँ करने लगता है । इस प्रकार
उसका मन सदा पाप में ही लगा रहता है, उसके
शरीर और वाणी से भी पाप होते है । वह पापी
जीवन होकर फिर पापीयों के साथ ही
मित्रता करता है और इसके फलस्वरूप न तो इस
लोक में सुख पाता है और न परलोक में ही उसे
सुख-शांति की प्राप्ति होती है ।
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