Wednesday, 13 July 2016

विश्वास से शिष्य बच गया और संदेह से गुरु डूब गए

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    एक गुरु और शिष्य थे। गुरु परम ज्ञानी थे और शिष्य परम आज्ञाकारी। सभी स्तरों पर शिष्य अपने गुरु से ज्ञान ग्रहण कर रहा था। गुरु जैसा कहते, शिष्य वैसा ही करता।

    एक दिन शिष्य को गुरु ने बुलाया और अपने किसी काम से पास के गांव जाने को कहा। शिष्य ने तत्काल जाने की तैयारी कर ली। जब वह आश्रम से निकला तो मौसम बिल्कुल साफ था, किंतु नदी किनारे पहुंचते ही जोरों की बारिश शुरू हो गई।

      शिष्य को नदी पार कर गांव पहुंचना था, लेकिन वह डूबने के भय से नाव में नहीं बैठा और वापस लौटकर अपने गुरु को पूरी बात कह सुनाई।

     तब गुरु ने अपने शिष्य को हौसला बंधाते हुए कहा - तुम ईश्वर में विश्वास रखो। वे ही तुम्हारी रक्षा करेंगे और तुम्हें संकटों से बचाएंगे। शिष्य ने सदा की भांति गुरु की बात गांठ बांध ली।

       ईश्वर का नाम लेते हुए वह नदी पार कर गांव पहुंच गया। संयोग से अगले दिन गुरु को भी उसी गांव आना था। जब वे आश्रम से निकलकर नदी किनारे पहुंचे और नाव में बैठकर नदी पार करने लगे तो गहरे पानी को देखकर उनके मन में विचार आया कि कहीं ऐसा न हो कि मैं डूब जाऊं और ईश्वर मुझे न बचाए।

नतीजा यह हुआ कि बीच घाट में पहुंचकर वास्तव में नाव में छेद हो गया और उसमें पानी भर गया। गुरु पानी में डूबकर मृत्यु को प्राप्त हुए।

      सार यह है कि संदेह डुबाता है और विश्वास बचाता है। यदि हम शंका करते हैं तो परिणाम भी विपरीत होते हैं और विश्वास सदैव सकारात्मक फल देता है।



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