Saturday, 23 July 2016

आतम देव आराधिये, विरोधिये नहिं कोइ । आराधे सुख पाइये, विरोधे दुःख होइ ॥


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एक मारबाड़ी सेठ बरसाने गया, उसको कुछ दिन बरसाना रुकना था। उसका एक नियम था। भोजन करने से पहले किसी संत को भोजन करता था फिर खुद करता था। एक दिन भोजन का समय था, सेठ ने नौकर भेजे जाओ संत बुला कर लाओ।
उस दिन श्री जी ऐसी इच्छा हुई कहीं बहुत बड़ा भंडारा था सारे संत भंडारे में चले गये। बरसाने में कोई संत नहीं मिला। श्री जी मंदिर कि सीढ़ी पर एक पागल सा बीड़ी फूंक रहा था। नौकरों ने सोचा ना संत मिलेगा ना सेठ भोजन करेगा ना हमको करने देगा।
एक दो लाल पीले कपडे बाजार लिए और एक उस पागल के उसके गले में उड़ा दिया एक सर पे पहना दिया और उसका तिलक कर दिया और उसको कहा के तू संत है। हमारे सेठ जी अच्छी दक्षिणा देते है। सेठ जी के सामने कुछ मत बोलना हम कह देंगे के मोनी बाबा है।
उसको सेठ जी के पास ले गए। सेठ जी ने उसको बैठया चरण धोये थाल सजाया अभी गरम हलुआ परोसा ही था, वो बेचारा था मांगने वाला भिखारी जैसे ही हलुआ देखा उठा के खाने लगा सेठ ने कहा तू खड़ा हो जा तू नकली है तू संत नहीं है, संत जब भोजन करते है पहले प्रार्थना करते हैं उसके बाद भोजन पाते है। उसको भगा दिया वो भूखा रोता रहा।
सेठ जी ने प्रार्थना की श्री जी मैंने अपनी पूरी कोशिश कर ली, उसके बाद सेठ जी ने भोजन कर लिया। भिखारी भूखा रोता रहा। रात को सेठ के सपने में किशोरी जू आयी, किशोरी जू ने कहा, ''उसको भूखा उठा दिया बहुत बड़ा दानवीर बनता है.......
सेठ ने कहा,'' महारानी वो संत नहीं था वो पाखंडी था, किशोरी जु ने कहा, ''सेठ एक दिन खिलाना पड़ गया तो संत का संत तत्व देख रहा है। में उस पाखंडी को चालीस साल से खिला रही हूँ, वो आज तक भूखा नहीं सोया मैंने तो आज तक पूछा नहीं के वो संत है या पाखंडी है ...."
सेठ पानी पानी हो गया व अखंड भंडारे कि जिम्मेदारि ले ली उसने उम्र भर अलबेली सरकार की जय।
बोलो राधे राधे...

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