Saturday 16 July 2016

हर सांस के साथ शुभ भीतर जाए__

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हमारी नींद में सबसे बड़ी बाधा हम ही बन जाते हैं। बाहर के शोर व स्थितियों पर हमारा अधिक वश नहीं है, पर हम भीतर की बाधा तो दूर कर ही सकते हैं। दो चरण नींद के पहले के हम पूरे कर चुके हैं।
अब तीसरा चरण समझते हैं। जब भी लेटें, सीधे कभी न लेटें। बाईं करवट लेकर बाएं कंधे से टिकते हुए लेट जाएं और कुछ क्षण ऐसे ही लेटे रहें।
यदि विचार रुक न रहे हों तो फिर विचार कोई शुभ हो। एक शुभ विचार यह लिया जा सकता है कि आज दिनभर में कौन-सा अच्छा काम किया? बस, उसे सोचते हुए करवट बदलकर पीठ के बल लेट जाएं। तीसरे चरण के दूसरे हिस्से में पीठ के बल लेटकर गहरी सांस लेते हुए महसूस करें कि शरीर के एक-एक अंग में सांस पहुंचा रहे हैं।
उस समय सांस के साथ कोई भी मंत्र, कोई भी शुभ वाक्य जरूर लीजिए। श्री हनुमान चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं। कई लोग प्रश्न करते हैं कि क्या शैया पर श्री हनुमान चालीसा पढ़ी जाए? मंत्र तो शुद्धि के साथ ही पढ़ा जाता है।
श्रेष्ठ तो यही है कि वह पूजा स्थल या तप स्थल पर पढ़ी जाए, लेकिन यदि शयन के पूर्व मानसिक स्मरण करें तो भी पाप तो नहीं लगेगा, थोड़ी शुद्धि अवश्य होती रहेगी। ध्यान रखिएगा, यह एक यौगिक क्रिया है।
इसे पूजा-पाठ की तरह न करें तो शुद्धि अपने आप उतरेगी। इस समय संयम की आवश्यकता होती है। शयन के समय यही संयम शुद्धि बन जाएगा और यही शुद्धि आपको ठीक से सुलाएगी। नींद आने तक इस क्रिया को जारी रखिए।
यदि सांस के साथ शुभ शब्द भीतर गए और निद्रा में बदल गए तो यही योग निद्रा हो जाएगी। ये सारी क्रियाएं उन लोगों के लिए हैं, जिनके पास समय कम है और जो योग से गंभीरता से नहीं जुड़ पा रहे हों।
उठने के पहले करें शैया स्नान_____
जिस प्रकार कमीज का पहला बटन गलत लग जाए तो नीचे के सारे बटन गलत ही होंगे और उस वस्त्र का स्वरूप बिगड़ जाएगा। ऐसे ही यदि सुबह ठीक से नहीं उठे तो समझ लीजिए दिन को अस्त-व्यस्त करने की तैयारी कर ली है।
यदि सुबह उठने की क्रिया पर ध्यान दें तो ज्यादातर लोग शर्मिंदगी महसूस करेंगे। स्वयं से स्वस्थ और प्रसन्न होकर उठने वाले लोग धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं। रात को देर से सोने के कारण सुबह जल्दी उठना मुश्किल ही है।
सबसे अच्छा है कि सूर्योदय के एक घंटा पहले उठ जाएं। ऐसा न भी कर सकें तो जब भी उठें मस्ती यानी आंतरिक प्रसन्नता के साथ उठें। कुछ लोग नींद खुलने के बहुत देर बाद तक निर्णय नहीं ले पाते कि उठा जाए। जब भी उठें तो सीधे बिल्कुल न उठें।
बिस्तर छोड़ने से पहले शरीर को पीठ के बल बिल्कुल सीधा लेटाते हुए शैया स्नान करा दें। यह स्नान होगा सांसों से। गहरी सांस इस तरह से लीजिए जैसे सांस ली और वायु का जल आपके मस्तिष्क, होठ, कंठ, छाती, पेट, जांघ, घुटने से होकर पंजों से बाहर निकल गया। दो-तीन बार ऊपर से नीचे तक और उसके बाद क्रिया को उलटी कर लें। अब जब सांस लें तो नीचे से लें और ऊपर की ओर छोड़ें।
इस वायु को जल की तरह मानकर भीतर ही भीतर प्रत्येक अंग को धो लें। कुछ अलग से नहीं करना है। बस पलंग छोड़ने के पहले यह मानसिक क्रिया करना है।
कुछ ही दिनों में आप एक अलग किस्म की ताज़गी महसूस करेंगे। हो सकता है शुरू में आपको अटपटा लगे, लेकिन करिएगा जरूर। पहला चरण ठीक से करने के बाद बाईं करवट मुड़ जाएं। थोड़ी देर बाएं कंधे पर वजन रखकर शरीर को छोड़ें उसके बाद ही पलंग से उतरें। कैसे उतरें और आगे क्या करें, हमारी चर्चा चलती रहेगी।
जागने पर धरती से ऊर्जा ग्रहण करें____
इस दौर में मनुष्य के पास सबकुछ है, लेकिन एक मामले में आदमी कंगाल होता जा रहा है और वह है वक्त। धनाढ्य से धनाढ्य आदमी भी समय के मामले में दरिद्र हो गया। आप खूब परिश्रम करके सफलता प्राप्त कर लें और यदि अशांत रहें तो समझो इसके पीछे समय का दुरुपयोग काम कर रहा है। योग करने को कहें तो पूछा जाता है कि कैसे करें?
इसीलिए सोचा कि जीवन मेें छोटी-छोटी बातों से योग जोड़ा जाए। सोने के तरीकों और शैया स्नान पर हम चर्चा कर ही चुके हैं। श्रीराम प्रकृति से जोड़कर लक्ष्मण को जीवन का बड़ा सुंदर संदेश देते हैं और वह संदेश आज हमारे उठने की क्रिया के दूसरे चरण पर लागू हो रहा है। ध्यान रखिएगा कभी भी सीधे पीठ के बल न उठें।
जब भी उठना हो या लेटना हो, बाईं करवट लेटें, थोड़ी देर रुकें और फिर दोनों पैर पृथ्वी पर रख दें। तुलसीदासजी ने भूमि को लेकर यहां एक चौपाई कही है।
‘भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ। सदगुर मिलें जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ।।’
वर्षाऋतु के कारण पृथ्वी पर जो जीव भर गए थे, वे शरद ऋतु को पाकर वैसे ही नष्ट हो गए जैसे सद्‌गुरु के मिल जाने पर संदेह और भ्रम के समूह नष्ट हो जाते हैं। इसमें वे कहते हैं गुरु भ्रम और संदेह नष्ट कर देता है।
अब हमेें अपने दिन की शुरुआत करनी है। बिना भ्रम, संदेह के जो लोग दिनभर के काम में उतरेंगे उनके लिए सफलता के मतलब ही बदल जाएंगे। जैसे ही धरती पर पैर रखें, थोड़ी देर ऐसे ही बैठे रहें। अब आपको पृथ्वी से मिलने वाली ऊर्जा प्राप्त करनी है। इस ऊर्जा को कैसे ग्रहण करें, इस पर विचार करेंगे कल और फिर चलेंगे एक नए दिन की शुरुआत के लिए।
सांस के साथ प्राण तत्व ग्रहण करें______
हमारी संस्कृति ने प्रकृति के साथ मनुष्य के संबंधों की बड़ी सुंदर व्याख्या की है। ऋषि-मुनियों ने पंचतत्वों को सुंदर प्रतीक बनाकर हमसे जोड़ा है। पृथ्वी को मां माना गया है। हमारी चर्चा चल रही है उठने के क्रम में। प्रात:काल जब उठें तो इस क्रिया को तीन चरण में पूरी करना है।
उठने का पहला चरण था पीठ के बल लेटे हुए शैया स्नान करना। फिर पलंग पर बैठे-बैठे पृथ्वी से दिन का पहला स्पर्श करना। कल्पना करें कि हम मां की गोद में उतर रहे हैं। जैसे बच्चा मांग की गोद में अपने आपको सुरक्षित मानता है, ऐसा ही भाव पृथ्वी के प्रति पैदा कीजिए। इस भाव के साथ सांस खींचते हुए ऐसा महसूस कीजिए कि आपके पंजों से एक ऊर्जा भीतर आ रही है।
गहरी और धीमी सांस के साथ विचार करें कि पृथ्वी से पंजे, घुटने, घुटने से जांघ, पेट, छाती, कंठ, मस्तक और फिर ऊर्जा को ऊपर निकाल दिया। इस क्रिया में बहुत कुछ प्राणतत्व हमारे शरीर में रुक जाएगा। 5-6 बार यह क्रिया कर महसूस करें कि पृथ्वी जो श्रेष्ठ अपने बच्चों को दे रही है वह इस समय आप ले रहे हैं। आपने मां से सबकुछ अच्छा-अच्छा ले लिया।
अब आपके पास पूरी तरह से वह ऊर्जा है जो संसार की सबसे श्रेष्ठ ऊर्जा है। कहा जाता है कि किसी भी बच्चे के लिए ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत उसकी मां, उसका आलिंगन, उसका आंचल होता है। हमने धरती मां का स्पर्श किया। सांस के माध्यम से ऊर्जा को अपने भीतर ले लिया और अब तैयार हैं इस दुनिया में उतरने के लिए। दूसरा चरण पूरा हुआ।
अब हम दैनिक क्रिया के लिए वॉश रूम में जाएंगे। यह होगा तीसरा चरण। अभी आप दो चरणों का आनंद लीजिए। अपने आपको तैयार करिए। अब हम प्रवेश करेंगे तीसरे चरण में। तब तक जरा मुस्कुराइए।
उठते ही शांति के साथ नाता जोड़ लें_____
कोई मनुष्य कितना ही एकांतप्रिय हो, संसार में रहते हुए दूसरों के साथ बोलना पड़ता है। उठना-बैठना पड़ता है। हम योग का एक ऐसा चरण जी रहे हैं, जिसको उठना कहते हैं।
पहले चरण में हमने शैया स्नान किया। फिर धरती से ऊर्जा ले ली।और अब तीसरे चरण में चल रहे हैं वॉशरूम की ओर। इसमें आप दिन की पहली मुलाकात खुद से कीजिए।
फिर तो दिनभर कई लोगों से मिलना है। स्वयं से मुलाकात होगी आईने के माध्यम से। ब्रश करने के पहले या बाद में या ब्रश करते हुए अपनी ही आंख मेें आंख डालकर आईने में देखिए।
अचानक पाएंगे कि देखने वाला कोई और है तथा आप कोई और। बस यह वह अनुभूति है, जो मनुष्य को समाधि में मिलती है, क्योंकि वास्तविकता यही है।
अपनी आंखों में गहराई से देखेंगे तो जो अनुभूति होगी वह प्रात:काल की सबसे पहली दिव्य अनुभूति होगी और आप उस ऊर्जा से भर जाएंगे कि आप कोई और हैं।
फिर जो भी घटनाएं, जो भी स्थितियां दिनभर आपके साथ घटेंगी, आप उन्हें दूर खड़े होकर देख सकेंगे। यह साक्षीभाव आपके भीतर शांति लाएगा।
अब दिनभर जो भी काम करना है उसमें अशांति के कई झोंके आएंगे। आप अपने आप को दर्पण देखकर तैयार कर लीजिए और जब दर्पण से हटें तो एक बार मुस्कुराइएगा जरूर।
दूसरों को देखकर मुस्कुराना हमारी व्यावसायिकता है, मजबूरी है, लेकिन जैसे ही खुद को देखकर मुस्कराएंगे, फिर अपने लोगों से मुस्कराने में शर्म खत्म हो जाएगी, हिचकिचाहट मिट जाएगी।
जो दूसरों के साथ-साथ अपनों से मुस्कुराता है, भगवान आशीर्वाद के रूप में उसको अतिरिक्त रूप से शांति देता है। उठने की क्रिया में योग के ये तीन चरण पूरे करने से हमको बड़ी आसानी से शांति मिल जाएगी।
यज्ञ कुंड में आहुति जैसा हो भोजन______
कहावत है जितना गुड़ उतनी मिठास। किंतु संभव है बिना मीठा डाले मिठाई का स्वाद आ जाए। इसे योग कहते हैं। जीवन के जितने हिस्से में योग का समावेश होगा, उतना हिस्सा अवश्य मीठा होगा, स्वादपूर्ण होगा।
हम छह छोटी-छोटी क्रियाओं से योग को जोड़ रहे हैं- सोना, उठना, खाना, पीना, बोलना और सुनना। हमने सोने को समझा, उठने को जाना। इसके बाद तैयार होकर हमें घर छोड़ना होता है।
आप किसी भी धर्म से जुड़े हों, घर से निकलने से पहले एक बार घर के देवस्थान पर जरूर जाएं, फिर वह किसी भी रूप में क्यों न हो। यह ऊर्जा का केंद्र होता है।
अब हम बात करें भोजन की। यह तीन भागों में बंटा है- दोपहर का भोजन यानी लंच, फिर डिनर यानी रात का भोजन और बीच में एक-दो बार नाश्ता। इसे चार भागों में बांट लें। दोपहर का भोजन और उसके पहले का नाश्ता, शाम का नाश्ता और रात का भोजन। एक बार का नाश्ता और भोजन दिन के पहले हिस्से में।
दूसरी बार का नाश्ता और भोजन दिन के दूसरे हिस्से में। अब दिन दो भाग में बंट गया है और चार बार हमें भोजन से गुजरना है। पहली बात, शांत रहना चाहें तो शाकाहारी भोजन अधिक कीजिए।
ऐसा नहीं है कि शाकाहारी लोग अशांत और क्रोधित नहीं होते पर शाकाहार शांत होने और क्रोध मिटाने में मददगार है।
अब जब भी नाश्ता या भोजन करने बैठें, सोचें कि पेट यज्ञ कुंड है और उसमें हमें आहुति देनी है। प्रत्येक ग्रास उतनी ही सजगता से लें, जितनी सजगता कामकाज में एक-एक पैसा कमाने को लेकर रहती है।
पेट में डाला जा रहा अन्न बेशकीमती धन है।
सावधान रहें कि यह गलत तरीके से खर्च न हो जाए। पहले इस मानसिकता से जुड़िए। कल फिर भोजन के साथ योग कैसे हो सकता है, इस पर विचार करेंगे।
भोजन करते समय शांत रहे मन_____
भूल जाना मनुष्य का स्वभाव है, लेकिन यह मत भूलिए कि भूल जब गलती हो जाए और उसके गलत परिणाम जीवन पर पड़ें तो उसे कैसे सुधारा जाए।
किष्किंधा कांड में श्रीराम ने बालि को मारकर सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बना दिया। सुग्रीव ने श्रीराम को वचन दिया था कि मैं सीताजी की खोज में वानर भेजूंगा। राजपाट पाकर सुग्रीव रामजी का काम भूल गए। रामजी को छोटे भाई लक्ष्मण से कहते हैं-
‘सुग्रीवहुं सुधि मोरि बिसारी। पावा राज कोस पुर नारी।’
श्रीराम ने आपत्ति ली कि सुग्रीव मेरा काम भूल गया है। सही बात जब आप भूल जाएं तो ईश्वर नाराज होता है। इन दिनों एक भूल हम कर रहे हैं, और वह है भोजन की भूल। भोजन आरंभ करें तो एक-एक ग्रास को मंत्र की तरह भीतर उतारें।
मस्तिष्क का काम है विचारों से आकृति बनाना। कोई विचार आया तो मस्तिष्क उसको डिजाइन कर देता है। इधर अन्न व उधर से आकृतियां भीतर आ रही हैं।
आंतों को अन्न पचाना है और मस्तिष्क आकृतियों में उलझा है, तो तालमेल बिगड़ेगा ही। भोजन के रूप में आप विष भर रहे हैं।
ऋषि-मुनियों ने कहा है अन्न से मन बनता है। यहां मन का मतलब व्यक्तित्व से है। व्यक्तित्व बनने की जगह भीतर एक घालमेल शुरू हो गया। यदि प्रत्येक ग्रास के साथ शांत नहीं हैं, एकाग्र नहीं हैं तो फिर आप आकृतियां यानी संसार खा रहे हैं और अन्न का जो शुभ परिणाम शांति में होना चाहिए, वह नहीं होता।
भोजन वह अवसर हो सकता है जब आप मेडिटेशन कर शांति उपलब्ध कर सकते हैं और हम उस अवसर को गंवा देते हैं। हमारा सारा जोर है हर हालत में शांत रहना। खूब काम कीजिए पर शांत रहिए और भोजन का ऐसा ही उपयोग करना है। चलिए, कल फिर बात करेंगे कि भोजन से शांति कैसे प्राप्त की जाए।
अन्न को योग का माध्यम बनाएं____
अनुशासन अपनाया तो परिणाम में शांति मिलकर रहेगी। भोजन को लेकर हम चर्चा कर चुके हैं कि यह शाकाहारी हो। यह भी महत्वपूर्ण है कि किसके हाथ का बना हुआ है? कहां किया जा रहा है?
और चौथी बात भारतीय संस्कृति में भोजन कैसे भोग बन जाता है। परमात्मा को अर्पित होने के बाद भोजन भोग बनता है। यह बहुत सुंदर फिलॉसाफी है। सही है कि आपने भगवान की किसी मूर्ति को खाते नहीं देखा होगा, लेकिन यह मनोवैज्ञानिक कृत्य है कि आप भोजन परमात्मा को अर्पित करके भोग मान लेते हैं, प्रसाद मान लेते हैं और फिर ग्रहण करते हैं।
इसका सीधा मतलब है कि अब संसार की आकृतियां भोजन के साथ समाप्त हुईं और परमात्मा की आकृति अन्न के साथ उतरना आरंभ हो गई। इसे ही भोग कहेंगे। जब भोजन करने बैठें तो सिर्फ दो काम कीजिए।
पहला, वर्तमान में टिक जाइए यानी भोजन की थाली से बिल्कुल बाहर न जाएं। दूसरा, जब अन्न अंदर जा रहा हो तब शून्य हों। शून्यता को भरने के लिए कोई मंत्र, भगवान का कोई नाम जपते रहें। अन्न का प्रत्येक कण मंत्र से जुड़ गया।
भोजन की इस क्रिया को जितनी देर करेंगे, धीरे-धीरे आपको परिणाम में शांति मिलने लगेगी। इसके लिए अलग से कुछ नहीं करना है। बस, जो किया जा रहा है उसे व्यवस्थित करना है। इसे अन्न योग कहेंगे।
खूब व्यस्तता हो तो भी बस पांच-दस मिनट ऐसे ही भोजन कीजिए। आप अन्न के साथ-साथ अपने शरीर का भी मान बढ़ाएंगे। अन्न का हर कण योग का माध्यम बन जाएगा।

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