जब हम मानसिक जप करते हैं तो हमारे भीतर घर्षण होता है। यदि हम दोनों हथेलियां रगड़ें तो हम गर्मी महसूस करते हैं। ऐसे ही लगातार भीतर जाती सांस के धक्के से शरीर में रक्त-प्रवाह बनता है।
अब यदि सांस से हम किसी ऐसे नाम को जोड़ लें या मंत्र का संबंध बना दें, जिसमें हमारा विश्वास हो, तो सांस और मंत्र की रगड़ से ऊर्जा पैदा होगी जो रक्त-प्रवाह के जरिये शरीर में उत्तेजना पैदा करेगी।
यह उत्तेजना वैसी नहीं है जैसी बाहरी चीजों को देखकर होती है। इसमें होश होता है।
किसी मंत्र, किसी नाम के साथ एक माला जपें, फिर माला को रोक लें और उसी शब्द को भीतर सुनें। कान जब बाहर से कोई शब्द सुनते हैं तो उसकी सीमा है।
कान से सुने शब्द भीतर जो कंपन पैदा करते हैं, उन्हीं कंपनों के जरिये बाहर के शब्दों को सुनने की जगह भीतर ही भीतर सुनें तो ऊर्जा पैदा होगी।
मैं फिर दोहराती हूं। पहले माला जपेंगे, हमारे भीतर फ्रिक्शन (घर्षण) होगा। फिर हम उसी को स्वयं सुनेंगे तो एक कंपन पैदा होगा। यही घर्षण और कंपन हमारे लिए ऊर्जा बन जाता है।
होशपूर्ण उत्तेजना इसी को कहेंगे। जब होशपूर्ण उत्तेजना आपके भीतर आए तब आप देखेंगे कि आपकी योग्यता क्या परिणाम देती है।
No comments:
Post a Comment