Friday 22 July 2016

एकान्त सेवन से लाभ


संसार की बाह्य हलचल और लोगों के निरन्तर आवागमन से प्रायः मन अशान्त रहता है। जीवन व्यर्थ के अस्थिर कार्यों में क्षय होता जाता है। पल-पल का सारा दिन छोटे- छोटे कार्यों में बरबाद होता जाता है। जीवन में ठोस काम बड़े लोगों ने एकान्त में ही रह कर ही किये हैं। उन्नति और प्रगति की सम्पूर्ण योजनाएँ शान्तचित्त से एकान्त में ही बनी और पनपी हैं।
एकान्त सेवन से मन को शान्ति मिलती है। वर्तमान जीवन की कठिनाइयों को अच्छी तरह सोच-विचार कर सुलझाने के लिये एकान्त की बहुत आवश्यकता है। एकान्त में रहने से मौलिक विचार खूब आते हैं। हम समस्या के हर पहलू पर सोच सकते हैं, महत्व पूर्ण अंशों पर मन को एकाग्र कर सकते हैं। हमें विचार करने, भला बूरा सोचने में बाधा नहीं पड़ती और मन पूरी तरह अपने काम में लगा रहता है। एकान्त में मन संसार की हलचलों से दूर रहता है। एकान्त मे पुस्तक निर्माण, काव्य-रचना, विज्ञान के महत्त्वपूर्ण नये-नये आविष्कार, मौलिक चिन्तन, आत्मचिन्तन इत्यादि कार्य अच्छी तरह पूर्ण होते हैं।
परंतु यह ध्यान रखना चाहिये कि एकान्तवास इतना अधिक न होने पाये कि मनुष्यों से मिलने-जुलने मे वैराग्य उत्पन होने लगे। मन का यह स्वभाव है कि वह एक ही समय पर दो जगह नहीं टिक सकता। जब वह संसार की बाहरी हलचल में, माया-जाल, रुपया-पैसा, नौकर या घर बार के चिन्तन में लगा रहता है तो अपने आन्तरिक जगत की शक्तियो को खो बैठता है। दूसरी ओर जब वह आन्तरीक राज्य में प्रवेश पाता है, तब बाहर की सुध-बुध भूल जाता है। इसलिये पूर्णता सिद्ध करने के लिये भीतर और बाहर सावधान रहना चाहिये।
जन समुदाय में रहना जितना लाभदायक और आवश्यक है, उतना ही एकान्त सेवन भी जरुरी है। एकान्तसेवी मनुष्य एक सफल वृक्ष के समान होता है, जिसकी जड़ बहुत गहरी होती है। उसके विचार गूढ़ और दृढ़ होते हैं। जीवन तथा जगत् की सच्ची कुंजी उसी के पास रहती है।
सब महात्माओं ने एकान्तवास किया है। किसी ने पर्वत पर किसी ने कलकल-निनादिनी रम्य सरिता के तट पर रह कर अध्यात्मदर्शन, चिन्तन से परिपूर्ण ग्रन्थ लिखे है। कवियों ने काव्य-रचना की है। चित्रकारों ने सुन्दर चित्रो का निर्माण किया हैं। धर्म के गुढ़ रहस्यों का उद्घाटन एकान्तवास में ही हुआ है। उन्नति के नये-नये विचार हमारे एकान्तवास में आते है।
सच्चा एकान्तवास वह है जब हमारा मन बाह्य वृत्तियों से अलग हो जाय। हम बाह्य जगत में सोये हुए के समान हो जायँ और अन्तर्जगत में पूर्ण चैतन्यता, पूर्ण ज्ञान, पूर्ण जागृती बनी रहे। जो लोग ऐसी अवस्था प्राप्त कर लेते है। उनको पूर्ण श्रद्धा प्राप्त होती हैं। उन्हे अप्राप्त वस्तुओं की प्राप्ति में पूरा विश्वास रहता है। उन्हें सत्य और ज्ञान का अनुभव हो जाता है। कि वे वह कार्य कर सकते हैं। यही कारण है कि उन्हों ने जैसा चाहा वैसा कर डाला।
एकान्त में अच्छी तरह चिन्तन-मनन करके आप भी जो चाहें कर सकते हैं। उन्नतिशील विचारधारएँ रख सकते है। और चाहें, तो बिगाड़ भी सकते हैं। जिस वस्तु की आप इच्छा करें उसे अन्तः करण से चाहें, उसके लिये अधीर हो जायँ और ऐसी कल्पना और अनुभव करें कि उस वस्तु की प्राप्ति में दृढ़ विश्वास करें, तो वह अवश्य प्राप्त होगी।
विचार शक्ति के विषय मे बहुत-सी पुस्तकें लिखी जा चुकी है। और लिखी जा रही है; परंतु यह मालूम होता है कि अभी तक कुछ भी नहीं लिखा गया है। हम देखते हैं कि यह शक्ति सबके पास है, परंतु कोई भी इस शक्ति का पूरी तरह उपयोग नहीं कर रहा है।
अपने स्वप्नों और विचारों को दृढ़ता से, मजबूती से, पूरी- पूरी रफ्तार से मन में लिखिये। अपने आदर्श को कभी मत बदलिये। यदि आप सुन्दर विचारों पर दृढ़ रहेंगे तो उन्हीं के अनुसार आपकी दुनिया बन जायगी। स्वस्थ और उन्नतिशील मन ही आपकी उन्नति का आधार हैं।

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