✨ जगन्नाथ रथयात्रा भारत में मनाए जाने वाले धार्मिक महामहोत्सवों में सबसे प्रमुख तथा महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह रथयात्रा न केवल भारत बल्कि विदेशों से आने वाले पर्यटकों के लिए भी ख़ासी दिलचस्पी और आकर्षण का केंद्र बनती है। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है। सागर तट पर बसे पुरी शहर में होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव के समय आस्था का जो विराट वैभव देखने को मिलता है वह और कहीं दुर्लभ है। इस रथयात्रा के दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुँचने का बहुत ही सुनहरा अवसर प्राप्त होता है। जगन्नाथ रथयात्रा दस दिवसीय महोत्सव होता है। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। देश-विदेश से लाखों लोग इस पर्व के साक्षी बनने हर वर्ष यहाँ आते हैं। भारत के चार पवित्र धामों में से एक पुरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं साथ ही यहाँ बलभद्र एवं सुभद्रा भी हैं। ✨
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण अपने परम भक्त राज इन्द्रद्युम्न के सपने में आये और उन्हे आदेश दिया कि पुरी के दरिया किनारे पर पड़े एक पेड़ के तने में से वे श्री कृष्ण का विग्रह बनायें। राजा ने इस कार्य के लिये काबिल बढ़ई की तलाश शुरु की। कुछ दिनों बाद एक रहस्यमय बूढ़ा ब्राह्मण आया और उसने कहा कि प्रभु का विग्रह बनाने की जिम्मेदारी वो लेना चाहता है। लेकिन उसकी एक शर्त थी - कि वो विग्रह बन्द कमरे में बनायेगा और उसका काम खत्म होने तक कोई भी कमरे का दरवाजा नहीं खोलेगा नहीं तो वो काम अधूरा छोड़ कर चला जायेगा। 6-7 दिन बाद काम करने की आवाज़ आनी बन्द हो गयी तो राजा से रहा न गया और ये सोचते हुए कि ब्राह्मण को कुछ हो गया होगा, उसने दरवाजा खोल दिया पर अन्दर तो सिर्फ़ भगवान का अधूरा विग्रह ही मिला और बूढ़ा ब्राह्मण गायब हो चुका था। तब राजा को एहसास हुआ कि ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि देवों का वास्तुकार विश्वकर्मा था। राजा को आघात हो गया क्योंकि विग्रह के हाथ और पैर नहीं थे और वह पछतावा करने लगा कि उसने दरवाजा क्यों खोला पर तभी वहाँ पर ब्राह्मण के रूप में नारद मुनि पधारे और उन्होंने राजा से कहा कि भगवान इसी स्वरूप में अवतरित होना चाहते थे और दरवाजा खोलने का विचार स्वयं श्री कृष्ण ने राजा के दिमाग में डाला था। इसलिये उसे आघात महसूस करने का कोई कारण नहीं है और वह निश्चिन्त हो जाये क्योंकि सब श्री कृष्ण की इच्छा ही है।
पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। वर्तमान मंदिर 800 वर्ष से अधिक प्राचीन है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण, जगन्नाथ रूप में विराजित है। साथ ही यहां उनके बड़े भाई बलराम (बलभद्र या बलदेव) और उनकी बहन देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है।
⭕ पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है।
⭕ बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ' नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।
⭕ भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।
⭕ आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है। ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं। कहते हैं, जिन्हें रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है, वह महाभाग्यवान माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
⭕ वास्तव में रथयात्रा एक सामुदायिक पर्व है। इस अवसर पर घरों में कोई भी पूजा नहीं होती है और न ही किसी प्रकार का उपवास रखा जाता है। एक अहम बात यह कि रथयात्रा के दौरान यहां किसी प्रकार का जातिभेद देखने को नहीं मिलता है।
⭕ समुद्र किनारे बसे पुरी नगर में होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव के समय आस्था और विश्वास का जो भव्य वैभव और विराट प्रदर्शन देखने को मिलता है, वह दुनिया में और कहीं दुर्लभ है
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