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शिव की मूर्ति के सामने या उनके मंदिर के बाहर शिव के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित होती है। नंदी बैल को पुराणों में भी विशेष स्थान दिया गया है। नंदी भगवान शिव का केवल एक वाहन ही नहीं बल्कि उनके परम भक्त होने के साथ-साथ उनके साथी, उनके गणों में सबसे ऊपर और उनके मित्र भी हैं।
पुराणों के अनुसार एक बार ब्रह्मचारी व्रत का पालन करते हुए शिलाद ऋषि को यह भय सताने लगा कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनका पूरा वंश समाप्त हो जाएगा, इसलिए उन्होंने एक बच्चा गोद लेने का निर्णय किया।
इस के लिए शिलाद ऋषि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना शुरू की। शिलाद ऋषि की कठोर तपस्या की वजह से भगवान शिव स्वयं उनके सामने प्रस्तुत हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा।
शिलाद ऋषि ने उनसे कहा कि वह एक पुत्र की कामना रखते हैं। भगवान शिव ने उनसे कहा कि जल्द ही उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होगी।
अगले ही दिन खेती करने के लिए वह खेत पर पहुंचे, जहां उन्हें एक खूबसूरत नवजात शिशु मिला। वह शिशु बेहद आकर्षक तो था ही, उसके चेहरे पर एक अजीब सा तेज भी था।
इतने में ही उन्हें एक आवाज सुनाई दी, “यही तुम्हारी संतान है, इसका अच्छी तरह पालन-पोषण करना।“
कुछ समय बाद कुछ संत ऋषि के यहाँ पधारे .
शिलाद ऋषि ने उन साधुओं को प्रणाम किया तब उन दोनों ने उन्हें लंबे और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया। लेकिन जब नंदी ने साधुओं के चरण स्पर्श किए तो संतों ने यह आशीर्वाद नहीं दिया।
शिलाद ने इसका कारण पूछा तब संतों ने कहा की नंदी अल्पायु है। नंदी ने जैसे ही सुना कि वो अल्पायु है, वह हंसने लगा। उसने अपने पिता से कहा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है, इसलिए मेरी उम्र की रक्षा भी वही करेंगे।
नंदी का कहना था कि जो लोग भगवान शिव की आराधना करते हैं, उन्हें कोई तकलीफ छू भी नहीं सकती।यह कह कर अपने पिता का आशीर्वाद प्राप्त कर नंदी भुवन नदी के किनारे तप करने चले गए।
नंदी का तप इतना कठोर, आस्था इतनी प्रबल और ध्यान इतना मजबूत था कि शिव को प्रकट होने में ज्यादा समय नहीं लगा। नंदी ने उनसे प्रार्थना की कि वह हर समय उनके साथ रहना चाहते हैं।
नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला, तब शिवजी ने उसे पीकर संसार की रक्षा की | इस बीच विष की कुछ बूंदे भूमि पर गिर गयी जिन्हें नंदी ने चाट लिया | देवता और असुर दोनों ही नंदी को देखकर हैरान रह गए कि नंदी ने जान-बूझकर इस विष को क्यों ग्रहण किया।
नंदी ने जवाब दिया कि जब उनके स्वामी ने इस विष को ग्रहण किया है तो उन्हें तो करना ही था। नंदी का यह समर्पण देखकर शिव भी प्रसन्न हुए और कहा कि नंदी मेरे सबसे बड़े भक्त हैं इसलिए मेरी सभी ताकतें नंदी की भी हैं।
शिव और नंदी के बीच इसी संबंध की वजह से शिव की मूर्ति के साथ नंदी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। ऐसा माना जाता है कि शिव तो हमेशा ध्यान में लीन होते हैं, वह हमेशा समाधि में रहते हैं इसलिए उनके भक्तों की आवाज उन तक नंदी ही पहुंचाते हैं।नंदी के कान में की गई प्रार्थना नंदी की अपने स्वामी से प्रार्थना बन जाती है और वह शिव को इसे पूरा करने के लिए कहते हैं।
नंदी की प्रार्थना शिव कभी अनसुनी नहीं करते इसलिए वह जल्दी पूरी हो जाती है।
शिव की मूर्ति के सामने या उनके मंदिर के बाहर शिव के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित होती है। नंदी बैल को पुराणों में भी विशेष स्थान दिया गया है। नंदी भगवान शिव का केवल एक वाहन ही नहीं बल्कि उनके परम भक्त होने के साथ-साथ उनके साथी, उनके गणों में सबसे ऊपर और उनके मित्र भी हैं।
पुराणों के अनुसार एक बार ब्रह्मचारी व्रत का पालन करते हुए शिलाद ऋषि को यह भय सताने लगा कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनका पूरा वंश समाप्त हो जाएगा, इसलिए उन्होंने एक बच्चा गोद लेने का निर्णय किया।
इस के लिए शिलाद ऋषि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना शुरू की। शिलाद ऋषि की कठोर तपस्या की वजह से भगवान शिव स्वयं उनके सामने प्रस्तुत हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा।
शिलाद ऋषि ने उनसे कहा कि वह एक पुत्र की कामना रखते हैं। भगवान शिव ने उनसे कहा कि जल्द ही उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होगी।
अगले ही दिन खेती करने के लिए वह खेत पर पहुंचे, जहां उन्हें एक खूबसूरत नवजात शिशु मिला। वह शिशु बेहद आकर्षक तो था ही, उसके चेहरे पर एक अजीब सा तेज भी था।
इतने में ही उन्हें एक आवाज सुनाई दी, “यही तुम्हारी संतान है, इसका अच्छी तरह पालन-पोषण करना।“
कुछ समय बाद कुछ संत ऋषि के यहाँ पधारे .
शिलाद ऋषि ने उन साधुओं को प्रणाम किया तब उन दोनों ने उन्हें लंबे और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया। लेकिन जब नंदी ने साधुओं के चरण स्पर्श किए तो संतों ने यह आशीर्वाद नहीं दिया।
शिलाद ने इसका कारण पूछा तब संतों ने कहा की नंदी अल्पायु है। नंदी ने जैसे ही सुना कि वो अल्पायु है, वह हंसने लगा। उसने अपने पिता से कहा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है, इसलिए मेरी उम्र की रक्षा भी वही करेंगे।
नंदी का कहना था कि जो लोग भगवान शिव की आराधना करते हैं, उन्हें कोई तकलीफ छू भी नहीं सकती।यह कह कर अपने पिता का आशीर्वाद प्राप्त कर नंदी भुवन नदी के किनारे तप करने चले गए।
नंदी का तप इतना कठोर, आस्था इतनी प्रबल और ध्यान इतना मजबूत था कि शिव को प्रकट होने में ज्यादा समय नहीं लगा। नंदी ने उनसे प्रार्थना की कि वह हर समय उनके साथ रहना चाहते हैं।
नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला, तब शिवजी ने उसे पीकर संसार की रक्षा की | इस बीच विष की कुछ बूंदे भूमि पर गिर गयी जिन्हें नंदी ने चाट लिया | देवता और असुर दोनों ही नंदी को देखकर हैरान रह गए कि नंदी ने जान-बूझकर इस विष को क्यों ग्रहण किया।
नंदी ने जवाब दिया कि जब उनके स्वामी ने इस विष को ग्रहण किया है तो उन्हें तो करना ही था। नंदी का यह समर्पण देखकर शिव भी प्रसन्न हुए और कहा कि नंदी मेरे सबसे बड़े भक्त हैं इसलिए मेरी सभी ताकतें नंदी की भी हैं।
शिव और नंदी के बीच इसी संबंध की वजह से शिव की मूर्ति के साथ नंदी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। ऐसा माना जाता है कि शिव तो हमेशा ध्यान में लीन होते हैं, वह हमेशा समाधि में रहते हैं इसलिए उनके भक्तों की आवाज उन तक नंदी ही पहुंचाते हैं।नंदी के कान में की गई प्रार्थना नंदी की अपने स्वामी से प्रार्थना बन जाती है और वह शिव को इसे पूरा करने के लिए कहते हैं।
नंदी की प्रार्थना शिव कभी अनसुनी नहीं करते इसलिए वह जल्दी पूरी हो जाती है।
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