एक दिन की बात है। यशोदा मैया गोपिओं के साथ कान्हा की बाल-सुलभ लीलाओं की चर्चा कर रही थीं। खेलते-खेलते अचानक कन्हैया की दृष्टि चन्द्रमा पर पड़ी। उन्होंने पीछे से आकर यशोदा मैया का घूंघट उतार लिया। अपने कोमल करों से उनकी चोटी पकड़ कर खींचने लगे और बार-बार पीठ थपथपाने लगे। श्रीकृष्ण बोले मां! मैं लूंगा। जब मैया के समझ में बात नहीं आयी तो श्रीकृष्ण को गोद में ले लिया और पूछा- लाला तुम्हे क्या चाहिये, साफ-साफ बताओ। तुम्हें दूध, दही, मक्खन, मिसरी जो चाहोगे सब मिलेगा। अब मान भी जाओ, रुठो मत। श्रीकृष्ण ने कहा- घर की वस्तु नहीं चाहिये उन्होंने अंगुली दिखाकर चन्द्रमा की ओर संकेत किया और कहा – वो चाहिये। गोपियां बोली ये कोई माखन थोड़े ही ना है। यह हम कैसे देंगी? यह तो प्यारा-प्यारा हंस है, जो आकाश सरोवर में तैर रहा है। श्रीकृष्ण ने कहा- मैं भी तो खेलने के लिये उस हंस को ही माँग रहा हूँ। मुझे वो ला कर दो। यशोदाजी ने कन्हैया को गोद में उठा लिया और कहा- कान्हा यह ना तो राजहंस है, ना ही चन्द्रमा। यह माखन हीं है, किन्तु तुम्हें देने योग्य नहीं है। देखो न, इसमें काला-काला विष लगा हुआ है। इसलिये इसे कोई नहीं खाता। श्रीकृष्ण ने कहा मैया! मैया! इसमें विष कैसे लग गया। यशोदाजी ने कान्हा को गोद में लेकर कथा सुनाना प्रारम्भ कर दिया।
यशोदा ने कहा- लाला! एक क्षीरसागर है।
श्रीकृष्ण- वह कैसा है, मैया?
यशोदा- बेटा! यह तुम जो दूध देख रहे हो ना, इसी का एक समुद्र हैं।
श्रीकृष्ण- मैया! कितनी गायों ने दूध दिया होगा तब समुद्र बना होगा।
यशोदा- यह गाय का दूध नहीं है।
श्रीकृष्ण- मैया! तू मुझे बहला रही है। भला बिना गाय के भी दूध कहीं होता हैं।
यशोदा- जिस भगवान ने गायों को बनाया, वे बिना गाय के भी दूध बना सकते हैं।
श्रीकृष्ण- अच्छा ठीक है, आगे कहो।
यशोदा- एक बार देवता और दैत्यों में युद्ध हुआ। दैत्य बलवान थे। वे बार-बार देवताओं को हरा देते थे। भगवान ने देवताओं को अमर बनाने के लिये श्रीरसागर को मथा। मन्दराचल की मथानी बनी और बासु की नाग की रस्सी बनायी गयी। एक तरफ देवता लगे और दूसरी तरफ दैत्य।
श्रीकृष्ण- जैसे गोपियाँ दही मथती हैं।
यशोदा- हां बेटा! उसी से कालकूट नामक विष पैदा हुआ।
श्रीकृष्ण- मां! विष तो सांपो में होता है दूध में कैसे निकला।
यशोदा- बेटा! वही विष भगवान शंकर ने पी लिया। उससे जो धरती पर फुहियाँ पड़ी, उसे पीकर सांप विषधर हो गये। यशोदा ने कन्हैया को चन्द्रमा की ओर दिखाकर कहा- यह मक्खन भी उसी से निकला हैं, इसलिये थोड़ा-सा विष इसमें भी लग गया। इसी को कलंक कहा जाता है। इसलिये तुम घर का मक्खन खाओ। इस मक्खन को पाने के लिये भूलकर भी मत सोचना। कथा सुनते-सुनते कन्हैया को नींद आ गयी और चांद- खिलौना की बात जहां-की-तहां रह गयी।
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