Sunday 3 July 2016

धैर्य और विनम्रता

जीवन में जरूरी है

सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी के दामाद जेठाजी अत्यंत विनम्र और सहनशील व्यक्ति थे। वे गुरु अमरदास जी की बहुत सेवा करते थे। एक दिन उन्होंने जेठा जी और दूसरे दामाद रामा को एक चबूतरा बनाने के लिए कहा। दोनों ने चबूतरा बना दिया।
चबूतरे को देखकर गुरुजी बोले, 'यह सही नहीं है। दुबारा से बनाओ।' इस तरह दुबारा बनाने पर भी जब उन्हें पसंद नहीं आया तो उन्होंने इसे बार-बार बनवाया। ऐसा होने पर रामा ने अपना धैर्य खो दिया और उन्हें गुस्सा आ गया।।
रामा ने गुरुजी से कहा, 'आप बूढ़े हो गए हैं। आपको स्वयं ही नहीं मालूम यह कैसे बनाना है।' लेकिन जेठा जी बोले, 'गुरुजी माफ कीजिएगा आप फिर से बताएं यह चबूतरा कैसे बनाना है।
मुझे आपकी बात समझ नहीं आ रही है ऐसे में यह चबूतरा कैसा बनाना है यह तय नहीं कर पा रहे हैं।' गुरुजी जेठा के धैर्य और विनम्रता के कायल हो गए। यही जेठा जी आगे चलकर सिखो के चौथे गुरु रामदास के नाम से प्रसिद्ध हुए।

शिक्षा- धैर्य और विनम्रता के बल पर बड़े से बड़े काम आसान किए जा सकते हैं। इसलिए इन भावों को अपने अंदर आत्मसात करना चाहिए।

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