Sunday, 3 July 2016

मां काली भयंकर रूप



पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दारुक नाम के असुर ने ब्रह्मा को प्रसन्न किया। उनके द्वारा दिए गए वरदान से वह देवों और ब्राह्मणों को प्रलय की अग्नि के समान दुःख देने लगा। उसने सभी धर्मिक अनुष्ठान बंद करा दिए और स्वर्गलोक में अपना राज्य स्थापित कर लिया। सभी देवता, ब्रह्मा और विष्णु के धाम पहुंचे। ब्रह्मा जी ने बताया की यह दुष्ट केवल स्त्री दवारा मारा जायेगा। तब ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देव स्त्री रूप धर दुष्ट दारुक से लड़ने गए। परतु वह दैत्य अत्यंत बलशाली था, उसने उन सभी को परास्त कर भगा दिया।
ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देव भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंचे तथा उन्हें दैत्य दारुक के विषय में बताया। भगवान शिव ने उनकी बात सुन मां पार्वती की ओर देखा और कहा हे कल्याणी जगत के हित के लिए और दुष्ट दारुक के वध के लिए में तुमसे प्रार्थना करता हूं। यह सुन मां पार्वती मुस्कराई और अपने एक अंश को भगवान शिव में प्रवेश कराया। जिसे मां भगवती के माया से इन्द्र आदि देवता और ब्रह्मा नहीं देख पाए उन्होंने देवी को शिव के पास बैठे देखा।
मां भगवती का वह अंश भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर उनके कंठ में स्थित विष से अपना आकार धारण करने लगा। विष के प्रभाव से वह काले वर्ण में परिवर्तित हुआ। भगवान शिव ने उस अंश को अपने भीतर महसूस कर अपना तीसरा नेत्र खोला। उनके नेत्र द्वारा भयंकर-विकराल रूपी काले वर्ण वाली मां काली उत्तपन हुई। मां काली के लालट में तीसरा नेत्र और चन्द्र रेखा थी। कंठ में कराल विष का चिन्ह था और हाथ में त्रिशूल व नाना प्रकार के आभूषण व वस्त्रों से वह सुशोभित थी। मां काली के भयंकर व विशाल रूप को देख देवता व सिद्ध लोग भागने लगे।
मां काली के केवल हुंकार मात्र से दारुक समेत, सभी असुर सेना जल कर भस्म हो गई। मां के क्रोध की ज्वाला से सम्पूर्ण लोक जलने लगा। उनके क्रोध से संसार को जलते देख भगवान शिव ने एक बालक का रूप धारण किया। शिव श्मशान में पहुंचे और वहां लेट कर रोने लगे। जब मां काली ने शिवरूपी उस बालक को देखा तो वह उनके उस रूप से मोहित हो गई। वातसल्य भाव से उन्होंने शिव को अपने हृदय से लगा लिया तथा अपने स्तनों से उन्हें दूध पिलाने लगी। भगवान शिव ने दूध के साथ ही उनके क्रोध का भी पान कर लिया। उनके उस क्रोध से आठ मूर्ति हुई जो क्षेत्रपाल कहलाई।
शिवजी द्वारा मां काली का क्रोध पी जाने के कारण वह मूर्छित हो गई। देवी को होश में लाने के लिए शिवजी ने शिव तांडव किया। होश में आने पर मां काली ने जब शिव को नृत्य करते देखा तो वे भी नाचने लगी जिस कारण उन्हें योगिनी भी कहा गया।

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