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अमेरिका में एक छोटा-सा परिवार रहता था। माता-पिता और दो बच्चे। चारों प्रेम से रहते थे।सर्दियों के मौसम की बात है। दोनों बच्चे घर में अकेले थे। ठंड की अधिकता ने दोनों की अंगीठी सुलगाकर तापने के लिए प्रेरित किया।
दोनों छोटे थे। इसलिए एक गलती कर बैठे। अंगीठी सुलगाने के प्रयास में मिट्टी के तेल के स्थान पर पेट्रोल डाल दिया। पेट्रोल की आग एकदम भड़क उठी। जिसमें एक बच्चा तो तत्काल मर गया और दूसरा बहुत अधिक जल गया। उसे अस्पताल पहुंचाया गया।
वह लंबे समय तक अस्पताल में रहा और ठीक भी हो गया, लेकिन अब वह पूर्व की तरह सामान्य दिखाई देने वाला बच्चा नहीं रह गया था। वह बेहद कुरूप और अपंग हो गया था। उसके दोनों पैर लकड़ी की तरह सूख चुके थे। पहिएदार कूर्सी पर बैठकर जब वह घर लौटा तो उसकी मां फफक-फफककर रो पड़ी। पिता भी निराशा के गहन अंधकार में डूबे थे।
किसी को आशा नहीं थी कि वह फिर चल सकेगा, किंतु उस बच्चे ने हिम्मत नहीं छोड़ी। वह अपने वर्तमान से अधिक बेहतर स्थिति पाने के लिए निरंतर प्रयास करता रहा। खिन्न होने के स्थान पर उसने प्रतिकूलताओं को चुनौती के रूप में लिया और उसे अनुकूलता में बदलने के लिए अपनी बुद्धि, पौरुष और कौशल को दांव पर लगा दिया।
उसने बैसाखी के सहारे न केवल चलने में बल्कि दौडऩे में भी सफलता पाई और अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किए। अपना अध्ययन जारी रखते हुए एम.ए. और पी.एच.डी. उत्तीर्ण की और विश्वविद्यालय के निदेशक पद पर आसीन हुआ। साहस की अद्भूत बानगी पेश करते हुए द्वितीय विश्वयुद्ध में मोर्चे पर भी गया।
जब वह निदेशक पद से निवृत्त हुआ, तो अपनी जमापूंजी से अपंगों को स्वावलंबन देने वाली एक संस्था खोली, जिसमें हजारों अपंगों के रहने, पढऩे और कमाने का सुव्यवस्थित प्रबंध था।
ऐसे दृढ़ संकल्पवान पुरुष का नाम था- ग्रेट कनिंघम, जिन्हें अमेरिका में देवता की भांति पूजा जाता है।कथा संदेश देती है कि व्यक्ति की सभी मुश्किलों का हल एक मात्र आत्मबल होता है। कितनी भी विकट परिस्थिति हो, किंतु आत्मबल दृढ़ होने पर उस पर आसानी से विजय प्राप्त कर लक्ष्य की उपलब्धि की जा सकती है।
अमेरिका में एक छोटा-सा परिवार रहता था। माता-पिता और दो बच्चे। चारों प्रेम से रहते थे।सर्दियों के मौसम की बात है। दोनों बच्चे घर में अकेले थे। ठंड की अधिकता ने दोनों की अंगीठी सुलगाकर तापने के लिए प्रेरित किया।
दोनों छोटे थे। इसलिए एक गलती कर बैठे। अंगीठी सुलगाने के प्रयास में मिट्टी के तेल के स्थान पर पेट्रोल डाल दिया। पेट्रोल की आग एकदम भड़क उठी। जिसमें एक बच्चा तो तत्काल मर गया और दूसरा बहुत अधिक जल गया। उसे अस्पताल पहुंचाया गया।
वह लंबे समय तक अस्पताल में रहा और ठीक भी हो गया, लेकिन अब वह पूर्व की तरह सामान्य दिखाई देने वाला बच्चा नहीं रह गया था। वह बेहद कुरूप और अपंग हो गया था। उसके दोनों पैर लकड़ी की तरह सूख चुके थे। पहिएदार कूर्सी पर बैठकर जब वह घर लौटा तो उसकी मां फफक-फफककर रो पड़ी। पिता भी निराशा के गहन अंधकार में डूबे थे।
किसी को आशा नहीं थी कि वह फिर चल सकेगा, किंतु उस बच्चे ने हिम्मत नहीं छोड़ी। वह अपने वर्तमान से अधिक बेहतर स्थिति पाने के लिए निरंतर प्रयास करता रहा। खिन्न होने के स्थान पर उसने प्रतिकूलताओं को चुनौती के रूप में लिया और उसे अनुकूलता में बदलने के लिए अपनी बुद्धि, पौरुष और कौशल को दांव पर लगा दिया।
उसने बैसाखी के सहारे न केवल चलने में बल्कि दौडऩे में भी सफलता पाई और अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किए। अपना अध्ययन जारी रखते हुए एम.ए. और पी.एच.डी. उत्तीर्ण की और विश्वविद्यालय के निदेशक पद पर आसीन हुआ। साहस की अद्भूत बानगी पेश करते हुए द्वितीय विश्वयुद्ध में मोर्चे पर भी गया।
जब वह निदेशक पद से निवृत्त हुआ, तो अपनी जमापूंजी से अपंगों को स्वावलंबन देने वाली एक संस्था खोली, जिसमें हजारों अपंगों के रहने, पढऩे और कमाने का सुव्यवस्थित प्रबंध था।
ऐसे दृढ़ संकल्पवान पुरुष का नाम था- ग्रेट कनिंघम, जिन्हें अमेरिका में देवता की भांति पूजा जाता है।कथा संदेश देती है कि व्यक्ति की सभी मुश्किलों का हल एक मात्र आत्मबल होता है। कितनी भी विकट परिस्थिति हो, किंतु आत्मबल दृढ़ होने पर उस पर आसानी से विजय प्राप्त कर लक्ष्य की उपलब्धि की जा सकती है।
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