जिस धरती पर हम रहते हैं, उसे चारों ओर से सैकड़ों मील की ऊंचाई तक हवा घेरे हुए है l इसी हवा के वातावरण में हम रहते हैं, खाते हैं, पिटे हैं, साँस लेते हैं और घूमते-फिरते है l साधारण रूप से हमें लगता हैं कि हवा का कोई भार नहीं है, लेकिन ऐसी बात नहीं है l यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि हवा में भार होता है और वह हमारे शरीर पर पड़ता है l
हवा में भार क्यों होता है ? इस बात को समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि हवा क्या है ? हवा नाइट्रोजन, आक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, धूल के हवा, जलवाष्प आदि का एक मिश्रण हैं l ये सभी गैसें अणुओं से मिलकर बनी हैं l
इसका मतलब यह हुआ कि हवा भी कई प्रकार के अणुओं का मिश्रण है l दुसरे शव्दों में हम यह कह सकते हैं कि वायु पदार्थ की एक गैसीय अवस्था है l हम यह भली-भांति जानते हैं कि अणुओं का अपना भार होता है, इसलिए हवा जो अणुओं का मिश्रण है, उसमें भी भार होता है l
हवा में भार होता है l इस बात को एक साधारण से प्रयोग व्दारा सिद्ध किया जा सकता है l फुटबाल का एक खाली ब्लैडर लो l इसके बांधने के लिए एक छोटा सा धागा भी लो l ब्लैडर और धागे को एक तराजू में टोल लो l अब ब्लैडर में हवा भरो और उसके मुंह को धागे से बांध दो l अब इसे फिर तराजू में तोलो l
तुम देखोगे कि इसका भार पहले से अधिक हो गया है l भार की यह वृद्धि ब्लैडर में भरी हवा के कारण ही हुई l इससे सिद्ध होता है कि हवा में भार होता है हवा के एक लिटर आयतन में लगभग 1.3 ग्राम भार होता है l
हवा के भार के कारण वायुमंडल का प्रत्येक वस्तु पर दबाव पड़ता है l यह दबाव लगभग 7 किलो प्रति वर्ग इंच के करीब होता है 17 किलो प्रति वर्ग इंच के हिसाब से हमारी 12 वर्ग इंच की हथेली पर लगभग 82 किलो का दबाव पड़ा रहा है l
यदि हम अपने शरीर पर पड़ने वाले भार की कल्पना करें, तो देखते हैं कि हमारे शरीर पर तीन हाथियों के वज़न से भी अधिक दबाव पड़ा रहा है l हमें यह भार महसूस क्यों नहीं होता l या हम इस से दबाव क्यों नहीं जाते l
इसका कारण है कि हमारे शरीर के अन्दर रक्त नलिकाएं (Blood Vessels) में रक्त प्रबाह का बेग इतना प्रबल होता है कि हवा के दबाव को रक्त का दबाव रोक लेता है और हमें बाहरी हवा का दबाव अनुभव करने का मौका नहीं मिलता l
जैसे-जैसे हम धरती से ऊपर की ओर जाते हैं, वैसे यह दबाव कम होता जाता है, परन्तु ऊंचाई पर शरीर में रक्त दबाव पहले जैसा ही रहता है l पहाड़ों की चोटी पर यह दबाव काफी कम हो जाता है l
पृथ्वी से 62 मी. की ऊंचाई पर यह दबाव लगभग न के बराबर रह जाता है l रक्त दबाव जब वायुमंडल के दबाव की तुलना में बहुत अधिक हो जाता है, तो कभी-कभी रक्त नाक या कान की त्वचा को फाड़कर बाहर बहने लगता है l
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