Tuesday, 26 July 2016

संगीत वेदों की देन है .

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ओम परमात्मा से ४ वेदों का प्रकाश ऋषियों पर हुआ। उन्ही चार वेदों में से सामवेद से संगीत की उत्पति मानी जाती है ...वैदिक ऋषियों ने वेदों पर अनुसंधान से ७ स्वर खोजे और उन्हें मंत्रो के गायन के लिए प्रयुक्त किया कि इस स्वर में यह छंद का गायन करना चाहिए ..इसी कारण वेद मंत्रो में देवता ,ऋषि ,छंद ,के साथ स्वर षडज ,गांधार आदि उल्लेखित है।
इन सात स्वरों का विवरण पिंगलाचार्य अपने छंद शास्त्र में देते है -
स्वरा: षडजर्षभगान्धारमध्यमपञ्चमधेवता: निषादों (३.६४)
अर्थात ..
षडज - सा
ऋषभ -रे
गांधार -गा
मध्यम- मा
पंचम -पा
धैवत -धा
निषाद -नी ....
ये साथ गान विद्या के स्वर है।..इन्हें षड्ज आदि प्रकार के ये सात [प्रकार है लेकिन ७ अन्य प्रकार भी है उदात्तादि चुकी आज कल के गानों में केवल ७ स्वरों सा .रे ,गा ,मा,पा ,धा,नी से ही स्वर लय बनाई जाती है इससे पता चलता है कि ये सारा संगीत राग ,रागनी ,ताल वेदों से प्रकट हुई है ....
इन सबके बारे में विस्तृत जानकारी नारद संहिता आदि गान्धर्व वेद के ग्रंथो में है।
अत: जो भी संगीत प्रेमी है राग ,स्वर आदि गायन करते है उन्हें पाकिस्तानी गायकों और BOLLYWOD के गायकों ,हनी सिंह आदि के फैन होने की जगह सामवेद ,वैदिक ऋषियों आदि का सम्मान करना चाहिए ..
जिसमे शास्त्रीय संगीतकार को वेदों ,गांधर्ववेद ,वैदिक ऋषियों ,छंद शास्त्रों का सम्मान अवश्य ही करना चाहिए ,,वेद न होते तो उनका उपवेद न होता और उपवेद न होता तो संगीत के स्वर न होते और संगीत के स्वर न होते तो संगीत न होता और संगीत न होता तो संगीतकार न होते ..संगीतकार न होते तो दुनिया सुनी होती मनोरंजन आदि न होते ,खुशियाँ न होती ...

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