Saturday, 9 July 2016

परिश्रम व्यर्थ हैं

कई लोग अक्सर कहते हैं कि मैं पिछले कई सालों से योग साधना कर रहा/रही हूँ पर वैसा कुछ अहसास अब तक नहीं हुआ जैसा कि सुनने में आता है। योग साधना आदी के पश्चात आत्मिक सुख की अनुभूति होती है, या फिर परम ज्योति के दर्शन होते हैं या किसी किसी को तो अपनी आत्मा का दर्शन तक हो जाता है, आदी- आदी।
मित्रों योग साधना केवल कुछ समय मौन अकेले बैठे रहने, कुछ हल्का संगीत सुनते हुये भगवान का नाम लेने, किसी विशेष बिन्दू या आकृति पर लगातार देखने अथवा दोनों भौहों के मध्य ध्यान केन्द्रित करने से नहीं होती है।
इस पेज़ के माध्यम से पहले भी इस बात को जिक्र हुआ है कि साधना का मतलब अपनी जिम्मेवारियों से भागना नहीं है, अपितु संसारिक जीवन में जो भी परिस्थितियाँ हैं उसमें अपना फर्ज निभाते हुऐ भगवान् का क्षण प्रति क्षण धन्वाद करते हुये अपने द्वारा जाने अनजाने की गई गलतियों की क्षमा माँगना है।
जैसे माता कैकयी के द्वारा वनवास दिये जाने पर श्री राम उन्हें कोस सकते थे, महल से बाहर निकाल सकते थे या फिर एक अलग राज्य की मांग कर सकते थे पर नहीं, उन्होंने वनवास को सारे दुःख तकलीफ जानते हुये भी न केवल, कबूला वरन् भोगा भी।
श्री राम किसी भी प्रकार से संसारिक जिम्मेवारियों से नहीं भागे बल्कि दृढ़ता से उन्हें पूरा किया, प्रति क्षण भगवान का स्मरण करते हुये जीवन के सुख दुःख भोगे।
श्री कृष्ण ने भी संसारिक जीवन जीते हुये बुराई पर जीत हासिल करने की शिक्षा गीता में व अपने आचरण से दी। वे चाहते तो स्वंय पाडवों को क्या कुछ नहीं दे सकते थे, ब्लकि वे स्वंय पांडवों के लिये केवल एक गांव मांगने शांति दूत बन कर दुर्योधन के पास गये थे, क्योंकि वे जानते थे कि कर्म केवल अपने परिश्रम से ही कट सकते हैं, और इसीलिये उन्होंने अर्जुन को युद्ध के लिये प्रेरित किया। जबकि सुदामा को घोर दाद्रिता से मुक्त करा क्योंकि सुदामा संसारिक कर्म करते हुये भी अपने कर्मों कि माफी मांगता हुआ हर पल भगवान् का धयान करता रहता था । किसी भी शास्त्र ने वन में भटकने या संसारिक जिम्मेवारियों से भागने को उचित नहीं ठहराया गया है।
अगर कौई हमारा बुरा कर रहा है, गाली दे रहा है या फिर धोखा दे रहा है तब भी कौई चिन्ता नहीं, बस प्रतिपल भगवान का ध्यान करते हुये अपने कार्य करतें रहें यही सच्ची साधना है। अगर हम बुरा करने वाले का जिक्र करते रहगें, कोसेगें कि हाय उसने कितना बुरा किया या फिर उसका बदला लेने की कोशिश करगें तो मन अशांत रहेगा, शरीर रोगी बनेगा और सारी दुनिया ही बुरी लगने लगेगी। इस अवस्था में अगर कुछ समय के लिये प्रति दिन योग साधना कर भी लें तो क्या फर्क पड़ेगा क्योंकि मन तो भिन्न- भिन्न चिन्ताओं से कुलषित ही था वह शांत कैसे होगा।
अतः अगर अपने जीवन में शांति पाना चाहते हो तो सबसे पहले अपने सभी दुश्मनों को माफ़ कर दें, दुःख तकलीफ़ को सहने की क्षमता पाने की प्रार्थना करें, क्यों कि कर्मों के फल स्वंय ही भोग कर समाप्त किये जा सकते हैं व आत्मिक सुख पाया जा सकता है। केवल एक शांत मन ही वास्तव में भगवान् का ध्यान कर सकता है। अन्यथा बाकी सब परिश्रम व्यर्थ हैं ।

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