Sunday, 14 August 2016

कृष्ण, एक अस्खलित ब्रह्मचारी


अविद्यावादी और भौतिकवादी कृष्ण को कभी नहीं जान सकते। चाहे वो महाभारत के कृष्ण हों या फिर महारास के कृष्ण, कृष्ण हर रूप में अज्ञानियों की बुद्धि के परे ही रहेंगे। महाभारत के २९ उपपर्व में कृष्ण के जीवन का संक्षिप्त विवरण है जिसमें उनका कंस के वध से लेकर नरकासुर को मारकर 16108 विवाह करने का उल्लेख किया गया है। कुछ भौतिकवादियों को भ्रम रहता है कि कृष्ण की महाभारत में केवल एक पत्नी का नाम बताया गया है। महाभारत में कृष्ण की अष्टभार्या(आठ पटरानियाँ) का विवरण है जिनमें पहली रुक्मिणी और आठवीं लक्ष्मणा हैं।
महाभारत के १३०वें उपपर्व में कृष्ण की सत्यभामा के साथ जाकर नरकासुर(भौमासुर) को मारने और १६१०८ राजकुमारियों को बचाने की और फिर उनसे एक ही मंडप में विवाह करने की कहानी है। कृष्ण की आठों पत्नियों के 10- 10 पुत्र थे और एक एक पुत्री थी। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी महाभारत में ही कृष्ण को अस्खलित ब्रह्मचारी(ऐसा पुरुष जिसने कभी किसी से प्राकृतिक सम्भोग न किया हो) कहा गया है।
ये प्रसंग परीक्षित के जन्म के सन्दर्भ में बताया गया है। उस समय कृष्ण पच्यान्वे साल के थे और उनकी १६१०८ पत्नियाँ और अनेक पुत्र थे। जब परीक्षित अश्व्थामा की शक्ति लगने से जन्म से पहले ही मारने वाला था। तब सभी ने कृष्ण से गर्भस्थ शिशु की रक्षा करने की प्रार्थना की। कृष्ण ने कहा, "अगर कोई नित्य ब्रह्मचारी(जिसने कभी स्त्री से किसी प्रकार का प्रकृतिक प्रसंग न किया हो) शिशु का स्पर्श करेगा तो वो जीवित हो जायेगा। उस समय के सभी ब्रह्मचारी, यहाँ तक की सुकदेव भी शंकित हो उठे। तब स्वयं कृष्ण ने परीक्षित को स्पर्श किया और कहा, "मैं हूँ नित्य (अस्खलित) ब्रह्मचारी।" ऐसा कहते ही परीक्षित साँसें लेने लगा था।
कृष्ण तो सर्वेश्वर हैं, वेद भी उन्हें पूरा नहीं जान सकते। ये वही कृष्ण हैं जिसने गीता में कहा है, "पहले हो चुके और आगे होने वाले सभी प्राणियों को मैं जानता हूँ, लेकिन मुझे कोई(पूर्ण रूप से) नहीं जानता।" इंद्रियों के भोग का विभाग प्राणियों के लिए है, कृष्ण के लिए नहीं। कृष्ण में देह और देही(आत्मा) का अंतर नहीं है। उनमें इंद्रियों का विभाग भी नहीं है। उनके दो सुन्दर नेत्र हैं, लेकिन वो बिना नेत्रों के देख सकते हैं, कान बंद करके सुन सकते हैं, बिना हाथों के तरह तरह के कर्म कर सकते हैं और बिना पैरों के भ्रमण कर सकते हैं।( बिनु पग चलहि, सुनहि बिनु काना। बिन कर कर्म करहि विधि नाना। इसी तरह वो बिना मन(इंद्री) के मनन करते हैं, बिना बुद्धि के विचार करते हैं, त्वचा के बिना उन्हें स्पर्श का अनुभव होता है। यद्यपि उनमें ये सारी इन्द्रियाँ दिखती हैं, लेकिन वो इन इंद्रियों के वश में नहीं हैं क्योंकि के प्राकृतिक इन्द्रियाँ नहीं हैं(परमात्मिक हैं)।
उनकी प्रजनन आदि इंद्रियों के लिए भी ये बात उतनी ही सत्य है।

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