पञ्चमुखी शिव के पाँच रूप (मुख) ही पञ्चब्रह्म (ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव, सद्योजात) हैं तथा यहाँ उपस्थित पाँच मंत्र भगवान विष्णु ने ज्योतिर्मय महलिङ्ग से प्राप्त करके जप करना आरम्भ किया था। ये मंत्र शिव पूजा के लिए अत्यंत प्रभावशाली हैं।
१. ॐकार से उत्पन्न, पांच कलाओं से युक्त, बुद्धि विवर्धक तथा सभी धर्म-अर्थ को सिद्ध करने वाला शुद्ध स्फटिक तुल्य अत्यंत शुभ्र तथा अड़तीस शुभ अक्षरों वाला पवित्र मंत्र
“ईशान सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रह्मादिपति ब्रह्मणोऽधिपतिर्। ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम्॥”
२. गायत्री से उत्पन्न, चार कलाओं वाला, चौबीस अक्षरों से युक्त तथा वश्यकारक हरित वर्ण अत्युत्तम मंत्र
“तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥”
३. अथर्ववेद से उत्पन्न, आठ कलाओं से युक्त, तैंतीस शुभ अक्षर वाला कृष्णवर्ण तथा अत्यंत अभिचारिक अघोर मंत्र
“अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो अघोरघोरेतरेभ्यः। सर्वेभ्यो सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्र रूपेभ्यः॥”
४. यजुर्वेद से प्रादुर्भूत, आठ कलाओं वाला, श्वेतवर्ण वाला, शान्तिकारक पैंतीस अक्षरों से युक्त पवित्र सद्योजात मंत्र
“सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः। भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः॥”
५. सामवेद से उत्पन्न, रक्तवर्ण, बाल आदि तेरह कलाओं से युक्त, जगत का आदि स्वरुप तथा वृद्धि-संहारका कारण रूप छाछठ अक्षरों वाला उत्तम मंत्र
“वामदेवायनमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः। कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः। सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः॥”
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