महाभारत धर्म ,अर्थ , काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष है। इस ग्रन्थ के मुख्य विषय तथा इस महायुद्ध के महानायक भगवान श्रीकृष्ण हैं। निःशस्त्र होते हुए भी भगवान श्रीकृष्ण ही महाभारत के प्रधान योद्धा हैं। इसलिये सम्पूर्ण महाभारत भगवान वासुदेव के ही नाम, रुप, लीला और धामका संकीर्तन है। नारायण के नाम से इस ग्रन्थ के मङ्गलाचरण में व्यास जी ने सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण की वन्दना की हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम दर्शन द्रौपदी-स्वयंवर के अवसर पर होता है। जब अर्जुन के लक्ष्यवेध करने पर द्रौपदी उनके गले में जयमाला डालती है तब कौरव पक्ष के लोग तथा अन्य राजा मिलकर द्रौपदी को पाने के लिये युद्ध की योजना बनाते हैं । उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने उनको समझाते हुए कहा कि इन लोगो ने द्रौपदी को धर्मपूर्वक प्राप्त किया है , अतःआप लोगो को अकारण उत्तेजित नहीं होना चाहिये। भगवान श्रीकृष्ण को धर्म का पक्ष लेते हुए देखकर सभी लोग शान्त हो गये और द्रौपदी के साथ पाण्डव सकुशल अपने निवास पर चले गये।
पाण्डवों के एकमात्र रक्षक तो भगवान श्रीकृष्ण ही थे, उन्कीं की कृपा और युक्ति से ही भीम सेन के द्वारा जरासन्ध मारा गया और युधिष्ठिर का राजसूययज्ञ सम्पन्न हुआ। घूत में पराजित हुए पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी जब भरी सभा में दुःशासन के द्वारा नग्न की जा रही थी , तब उसकी करुण पुकार सुनकर उस वनमाली ने वस्त्रावतार धारण किया। शाक का एक पत्ता खाकर भत्तभयहारी भगवान ने दुर्वासा के कोप से पाण्वों की रक्षा की।
युद्ध को रोकने के लिये श्रीकृष्ण शान्तिदूत बने , किंतु दुर्योधन के अहंकारके कारण युद्धारम्भ हुआ और राजसूययज्ञ के अग्रपूज्य भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि बने। संग्रामभूमि में उन्हों ने अर्जुन के माध्यम से विश्व को गीता रुपी दुर्लभ रत्न प्रदान किया। भीष्म, द्रोण, कर्ण और अश्वत्थामा जैसे महारथियों के दिव्यास्त्रों से उन्होंने पाण्डवोंकी रक्षा की। युद्ध का अन्त हुआ और युधिष्ठिर का धर्मराज्य स्थापित हुआ। पाण्डवों का एकमात्र वंशधर उत्तराका पुत्र परीक्षित अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से मृत उत्पन्न हुआ , किंतु भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से ही उसे जीवनदान मिला। अन्त में गान्धारी के शाप को स्वीकार करके महाभारत के महानायक भगवान श्रीकृष्ण ने उद्दण्ड यादवकुल के परस्पर गृहयुद्ध में संहार के साथ अपनी मानवी लीला का संवरण किया।
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