Wednesday 21 September 2016

देश की खातिर नेताजी ने ठुकराई नौकरी


नेताजी सुभाषचंद्र बोस कट्टर राष्ट्रभक्त थे और उन्हें अपने देश के खिलाफ कुछ भी सुनना कतई पसंद नहीं था। उनकी राष्ट्रभक्ति को दर्शाती एक घटना है। विदेश से उच्च शिक्षा हासिल करने और आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें ज्ञात हुआ कि उन्हें नौकरी तभी प्राप्त हो पाएगी, जब वह एक और लिखित परीक्षा उत्तीर्ण कर लेंगे। नेताजी ने लिखित परीक्षा की तैयारी आरंभ कर दी।
परीक्षा के दिन नेताजी तयशुदा समय पर परीक्षा हॉल में पहुंच गए। जब प्रश्नपत्र उनके हाथ में आया तो उन्होंने उसे ध्यान से पढ़ा। उसमें एक प्रश्न ऐसा था, जिसे देखकर नेताजी की त्यौरियां चढ़ गई। वस्तुत: वह एक अंश था, जिसका सभी को अपनी-अपनी मातृभाषा में अनुवाद करना था। इस अंश में कहा गया था, ‘इंजियन सोल्यर्स आर जनरली डिसऑनैस्ट’, अर्थात भारतीय सैनिक प्राय: ईमानदार नही होते नेता जी ने निरीक्षक से उन प्रश्न को हटा देने का आग्रह किया। निरीक्षक ने कहा- इसे काटा नहीं जाएगा। यह विशेष रूप से रखा गया है। यदि आप इसे हल नहीं करेंगे तो आपको नौकरी से वंचित होना पड़ेगा। इतना सुनना था कि नेताजी तमतमाकर उठे और प्रश्नपत्र के टुकड़े करते हुए बोले- ये रही तुम्हारी नौकरी। अपने वतन के लोगों पर कलंक सहने से भूखा मर जाना ज्यादा अच्छा है।
कहानी का सार - राष्ट्र के सम्मान की खातिर आजीविका को भी ठुकराने वाले सुभाषचंद्र बोस के ये उच्च विचार राष्ट्रभक्ति का महान संदेश देते हैं। वही व्यक्ति सच्चा राष्ट्रभक्त है, जिसके विचार और कर्म का केंद्र बिंदु राष्ट्र होता है, न कि निजी हित।g

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