Sunday, 7 February 2016

अजस्र शक्ति का स्त्रोत है सूर्य "

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भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष देव कहा जाता है। वेदों के मुताबिक वे स्थावर, जंगात्मक तथा समस्त संसार की आत्मा हैं। भारतीय संस्कृत साहित्य की सनातन परंपरा में भगवान भास्कर का सर्वोच्च स्थान है। सभी वेद, स्मृति, पुराण, रामायण, महाभारत आदि शास्त्र भगवान सूर्य के बखान से परिपूर्ण हैं। वैदिक संस्कृति में सूर्य आराधना से लेकर उसकी समीपता तक की विशेषताओं का भरपूर फायदा उठाने के लिए कहा गया है। ऋषि युग के व्यक्ति कटि वस्त्र तथा उत्तरीय सरीखे हल्के तथा न्यूनतम वस्त्र धारण करते थे, जिससे काया को ज्यादातर खुली हवा और सौर ऊर्जा का फायदा पाने के लिए खुला रखते थे। व्याधि से छुटकारा पाने में सूर्य चिकित्सा के कैसे लाभ उठाया जा सकता है, इसकी विधि व्यवस्था भी उन दिनों सर्वविदित थी, उनके दीर्घ जीवन और सुदृढ़ स्वास्थ्य के कारणों में सूर्य किरण का उपयोग भी अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। वेदों में सूर्य उपयोग के फायदों पर जहाँ-तहाँ उपयोगी सुझाव दिया गया है। ऋग्वेद का कथन है कि सूर्य ही अपने तेज से सबको प्रकाशित करते हैं। यजुर्वेद में कहा गया है कि सूर्य समस्त भुवन को उज्जीवित करते हैं। अर्थववेद में उल्लिखित है कि सूर्य देव ह्दय की कमजोरी, ह्दय की व्याधि एवं खांसी समाप्त करते हैं। वेदों में आयुर्वेद की चर्चा है, वहीं आयुर्वेद के अंतर्गत उपचार की तमाम प्रणालियों में सूर्य चिकित्सा आदि की भी विवेचना मिलती है। सुबह की आदित्य रश्मियों से तमाम रोगों का शमन होता है। इस बारे में सुश्रुत का कहना है कि सूर्य किरणों के दैनिक उपयोग से मनुष्य कफ, पित्त तथा वायु विकारों से होने वाले रोगों से छुटकारा पाकर 100 वर्ष तक जीवित रह सकता है।

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