॥जय गौर हरि ॥
क्रमशः से आगे ..............
प्रतिदिन की तरह मीरा पूजा समपन्न कर श्याम कुन्ज में बैठी भजन गा रही थी ।माँ , वीरकुँ वरी जी आई तो ठाकुर जी को प्रणाम करके बैठ गई ।मीरा ने भजन पूरा होने पर तानपुरा रखते समय माँ को देखा तो चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया ।माँ ने जब बेटी का अश्रुसिक्त मुख देखा तो पीठ पर स्नेह से हाथ रखते हुए बोली ," मीरा ! क्या भजन गा गा कर ही आयु पूरी करनी है बेटी ? जहाँ विवाह होगा , वह लोग क्या भजन सुनने के लिए तुझे ले जायेंगे ?"
"जिसका ससुराल और पीहर एक ही ठौर हो भाबू ! उसे चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है ?"
"जिसका ससुराल और पीहर एक ही ठौर हो भाबू ! उसे चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है ?"
" मैं समझी नहीं बेटी !"माँ ने कहा ।
" महलों में मेरा पीहर है और श्याम कुन्ज ससुराल ।" मीरा ने सरलता से कहा।
" तुझे कब समझ आयेगी बेटी ! कुछ तो जगत व्यवहार सीख ।बड़े बड़े घरों में तुम्हारे सम्बन्ध की चर्चा चल रही है ।इधर रनिवास में हम लोगों का चिन्ता के मारे बुरा हाल है ।यह रात दिन गाना -बजाना ,पूजा-पाठ और रोना-धोना इन सबसे संसार नहीं चलता ।ससुराल में सास-ननद का मन रखना पड़ता है, पति को परमेश्वर मानकर उसकी सेवा टहल करनी पड़ती है ।मीरा ! सारा परिवार तुम्हारे लिए चिन्तित है ।"
"भाबू ! पति परमेश्वर है, इस बात को तो आप सबके व्यवहार को देखकर मैं समझ गई हूँ ।ये गिरधर गोपाल मेरे पति ही तो हैं और मैं इन्हीं की सेवा में लगी रहती हूँ, फिर आप ऐसा क्यों फरमाती है ?"
" अरे पागल लड़की ! पीतल की मूरत भी क्या किसी का पति हो सकती है ? मैं तो थक गई हूँ ।भगवान ने एक बेटी दी वह भी आधी पागल ।"
" तुझे कब समझ आयेगी बेटी ! कुछ तो जगत व्यवहार सीख ।बड़े बड़े घरों में तुम्हारे सम्बन्ध की चर्चा चल रही है ।इधर रनिवास में हम लोगों का चिन्ता के मारे बुरा हाल है ।यह रात दिन गाना -बजाना ,पूजा-पाठ और रोना-धोना इन सबसे संसार नहीं चलता ।ससुराल में सास-ननद का मन रखना पड़ता है, पति को परमेश्वर मानकर उसकी सेवा टहल करनी पड़ती है ।मीरा ! सारा परिवार तुम्हारे लिए चिन्तित है ।"
"भाबू ! पति परमेश्वर है, इस बात को तो आप सबके व्यवहार को देखकर मैं समझ गई हूँ ।ये गिरधर गोपाल मेरे पति ही तो हैं और मैं इन्हीं की सेवा में लगी रहती हूँ, फिर आप ऐसा क्यों फरमाती है ?"
" अरे पागल लड़की ! पीतल की मूरत भी क्या किसी का पति हो सकती है ? मैं तो थक गई हूँ ।भगवान ने एक बेटी दी वह भी आधी पागल ।"
"माँ ! आप क्यों अपना जी जलाती है सोच सोच कर ।बाबोसा ने मुझे बताया है कि मेरा विवाह हो गया है ।अब दूसरा विवाह नहीं होगा ।
" कब हुआ तेरा विवाह ? हमने न देखा , न सुना ।कब हल्दी चढ़ी , कब बारात आई, कब विवाह -विदाई हुई ? न ही किसने कन्यादान किया ? यह तुझे बाबोसा ने ही सिर चढ़ाया है ।"
"यदि आपको लगता है कि विवाह नहीं हुआ तो अभी कर दीजिए ।न तो वर को कहीं से आना है न कन्या को ।दोनों आपके सम्मुख है दूसरी तैयारी ये लोग कर देंगी ।दो जनी जाकर पुरोहित जी और कुवँर सा (पिता जी ) को बुला लायेगीं ।"मीरा ने कहा ।
" कब हुआ तेरा विवाह ? हमने न देखा , न सुना ।कब हल्दी चढ़ी , कब बारात आई, कब विवाह -विदाई हुई ? न ही किसने कन्यादान किया ? यह तुझे बाबोसा ने ही सिर चढ़ाया है ।"
"यदि आपको लगता है कि विवाह नहीं हुआ तो अभी कर दीजिए ।न तो वर को कहीं से आना है न कन्या को ।दोनों आपके सम्मुख है दूसरी तैयारी ये लोग कर देंगी ।दो जनी जाकर पुरोहित जी और कुवँर सा (पिता जी ) को बुला लायेगीं ।"मीरा ने कहा ।
"हे भगवान ! अब मैं क्या करूँ ? रनिवास में सब मुझे ही दोषी ठहराते है कि बेटी को समझाती नहीं और यहाँ यह हाल है कि इस लड़की के मस्तिष्क में मेरी एक बात भी नहीं घुसती ।"
फिर थोड़ा शांत हो कर प्यार से वीरकुवंरी जी मनाते हुए कहने लगी ," बेटा नारी का सच्चा गुरु पति होता है ।"
फिर थोड़ा शांत हो कर प्यार से वीरकुवंरी जी मनाते हुए कहने लगी ," बेटा नारी का सच्चा गुरु पति होता है ।"
"पर भाबू ! आप मुझे गिरधर से विमुख क्यों करती है ? ये तो आपके सुझाये हुये मेरे पति है न ?"
"अहा ! जिस विधाता ने इतना सुन्दर रूप दिया उसे इतनी भी बुद्धि नहीं दी कि यह सजीव मनुष्य में और पीतल की मूरत में अन्तर ही नहीं समझती ।वह तो उस समय तू ज़िद कर रही थी, इसलिए तुझे बहलाने के लिए कह दिया था ।"
"अहा ! जिस विधाता ने इतना सुन्दर रूप दिया उसे इतनी भी बुद्धि नहीं दी कि यह सजीव मनुष्य में और पीतल की मूरत में अन्तर ही नहीं समझती ।वह तो उस समय तू ज़िद कर रही थी, इसलिए तुझे बहलाने के लिए कह दिया था ।"
"आप ही तो कहती है कि कच्ची हाँडी पर खींची रेखा मिटती नहीं और पकी हाँडी पर गारा ठहरता नहीं ।उस समय मेरे कच्ची बुद्धि में बिठा दिया कि गिरधर तेरे पति है और अब दस वर्ष की होने पर कहती हैं कि वह बात तो बहलाने के लिया कही थी ।भाबू ! पर सब संत यही कहते है कि मनुष्य शरीर भगवत्प्राप्ति के लिए मिला है इसे व्यर्थ कार्यों में नहीं लगाना चाहिए ।"
वीरकुवंरी जी उठकर चल दी ।सोचती जाती थी- ये शास्त्र ही आज बैरी हो गये- मेरी सुकुमार बेटी को यह बाबाओं वाला पथ कैसे पकड़ा दिया ।उनकी आँखों में चिन्ता से आँसू आ गये ।
वीरकुवंरी जी उठकर चल दी ।सोचती जाती थी- ये शास्त्र ही आज बैरी हो गये- मेरी सुकुमार बेटी को यह बाबाओं वाला पथ कैसे पकड़ा दिया ।उनकी आँखों में चिन्ता से आँसू आ गये ।
मीरा माँ की बाते सोचते हुए कुछ देर एकटक गिरधर की ओर निहारती रही ।फिर रैदास जी का इकतारा उठाया और गाने लगी .......
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई ।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई ॥
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई ।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई ॥
कोई कहे कालो , कोई कहे गोरो
लियो है मैं आँख्याँ खोल ।
कोई कहे हलको, कोई कहे भारो
लियो है तराजू तोल ॥
लियो है मैं आँख्याँ खोल ।
कोई कहे हलको, कोई कहे भारो
लियो है तराजू तोल ॥
कोई कहे छाने, कोई कहे चवड़े
लियो है बंजता ढोल ।
तनका गहणा मैं सब कुछ दीनाँ
दियो है बाजूबँद खोल ॥
लियो है बंजता ढोल ।
तनका गहणा मैं सब कुछ दीनाँ
दियो है बाजूबँद खोल ॥
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर,
पूरब जनम को है कौल॥
पूरब जनम को है कौल॥
क्रमशः ..................
॥श्री राधारमणाय समर्पणं ॥
॥श्री राधारमणाय समर्पणं ॥
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