सभी महीनों की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी गणेश संकष्ट चतुर्थी कहलाती है। इसे वक्रतुंडी चतुर्थी, माही चौथ, तिल अथवा तिलकूट चतुर्थी व्रत भी कहते हैं। मंगलमूर्ति और प्रथम पूज्य भगवान गणेश को संकटहरण भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस चतुर्थी के दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से जहां सभी कष्ट दूर हो जाते हैं वहीं इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति भी होती है।
महत्त्व
पुराणों में संकष्ट चतुर्थी का विशेष महत्त्व बताया गया है। भगवान गणेश की अर्चना के साथ चंद्रोदय के समय अर्घ्य दिया जाता है। खासकर महिलाओं के लिए इस व्रत को उपयोगी माना गया है। इस दिन तिल दान करने का महत्त्व होता है। इस दिन गणेशजी को तिल के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं में सर्वोच्च स्थान रखने वाले विघ्न विनाशक भगवान गणेश की पूजा-अर्चना जो लोग नियमित रूप से करते हैं, उनकी सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है।
पूजनविधि
मंगलमूर्ति को पंचामृत से स्नान के बाद फल, लाल फूल, अक्षत, रोली, मौली अर्पित करना चाहिए। तिल से बनी वस्तुओं अथवा तिल-गुड़ से बने लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। गणपति अथर्वशीर्ष के पाठ के साथ गणेश मंत्र - 'ॐ गणेशाय नमः' का जाप 108 बार करना चाहिए।
गणेश संकष्ट चतुर्थी #व्रतकथा
पौराणिक गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेशजी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा। भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। परंतु गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा। तब गणेश ने कहा, माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी।
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