मधुमक्खियों द्वारा 8 तरह का शहद तैयार किया जाता है। उनके नाम बनाने वाली मधुमक्खियों के आधार पर ही पड़े हैं।
*पीले रंग की बड़ी मक्खियों द्वारा बनाया गया तेल जैसे रंग का शहद- माक्षिक शहद कहलाता है। यह शहद आंखों के रोगों को दूर करने वाला, हल्का एवं पीलिया, बवासीर, क्षत , श्वास, क्षय और खांसी को दूर करता है।
*भौंरों के द्वारा बनाया गया और स्फटिक मणि जैसे निर्मल शहद भ्रामर शहद कहलाता है। यह शहद खून की गन्दगी को खत्म करता है, मूत्र में शीतलता लाने वाला, भारी, पाक में मीठा, रसवाही, नाड़ियों को रोकने वाला, अधिक चिकना और शीतल होता है।
*छोटी पिंगला मक्खियों द्वारा बनाया हुआ शहद क्षौद्र शहद कहलाता है। यह शहद पिंगल वर्ण का माक्षिक शहद के समान गुणों वाला और विशेषकर मधुमेह का नाश करने वाला है।
*मच्छर जैसी अत्यंत सूक्ष्म काली और दंश से अतिशय पीड़ा करने वाली मक्खियों द्वारा निर्मित घी जैसे रंग का शहद पौतिक शहद कहलाता है। यह शहद सूखा और गरम होता है। जलन, पित्त, रक्तविकार और वायुकारक, मूत्रकृच्छ और मधुमेह नाशक, गांठ एवं क्षत का नाशक है।
*पीले रंग की वरता नामक मक्खियां हिमालय के जंगलों में शहद के छत्राकर छत्ते बनाती हैं। यह शहद छात्र शहद कहलाता है। यह शहद पिंगल, चिकना, शीतल और भारी है एवं चर्म रोग, कीड़े, रक्तपित, मधुमेह, शंका, प्यास, मोह और जहर को दूर करने वाला होता है।
*भ्रमर के जैसी और तेज मुख वाली पीली मक्खियों का नाम अर्ध्य है। उनके द्वारा बनाया गया शहद आर्ध्यमधु कहलाता है। यह शहद आंखों के लिए लाभकारी, कफ तथा पित्त को नष्ट करने वाला, कषैला, तीखा, कटु और बल में पुष्टिदायक है।
*बाबी में रहने पिंगल वर्ण बारीक कीड़े पीले रंग का शहद बनाते हैं। वह शहद औद्दोलिक शहद कहलाता है। यह मीठा-रुचिकर, स्वर सुधारक, कोढ़ और जहर को मिटाने वाला कषैला, गरम खट्टा, पाक में तीखा और पित्तकारक है। यह शहद बहुत कठिनाई से मिलता है।
*फूलों से झड़कर पत्तों पर जमा हुआ मीठा, कषैला, और खट्टा, मकरन्द (फूल का रस) दाल शहद कहलाता है। यह शहद हल्का, जलन, कफ को तोड़ने वाला, रुचिकारक, कषैला, रूक्ष, उल्टी और मधुमेहनाशक, अत्यंत मीठा स्निग्ध, पुष्टिदायक और वजन में भारी है। यह शहद वृक्षोद्रव माना जाता है।
शहद पैदा करनें वाली मधुमक्खियों के भेद के अनुसार वनस्पतियों की विविधता के कारण शहद के गुण, स्वाद और रंग में अंतर पड़ता है। शहद पर प्रदेश, व काल का भी असर पड़ता है।
जैसे- हर्र, नीम तथा अन्य वृक्षों पर बने हुए शहद के छत्ते के शहद सम्बन्धित वृक्षों के गुण आते हैं। जिस समय शहद एकत्रित किया जाता है उस समय का असर भी शहद पर पड़ता है।
शीतकाल या बसंतऋतु में विकसित वनस्पति के रस में से बना हुआ शहद उत्तम होता है और गरमी या बरसात में एकत्रित किया हुआ शहद इतना अच्छा नही होता है। गांव या नगर में मुहल्लों में बने हुए शहद के छत्तों की तुलना में वनों में बनें हुए छत्तों का शहद अधिक उत्तम माना जाता है।
शहद दो तरह का माना जाता है।
पहला- मक्खिया शहद
दूसरा- कृतिया शहद।
जिस शहद की मक्खियों को उड़ाने की कोशिश करने पर वे चिढ़ कर डंक मारती हो वह `मक्खिया शहद´ कहलाता है।
जिस छते पर पत्थर फेंकने पर मक्खियां उड़कर डंक नही मारती उसे `कृतिया शहद´ कहते हैं।
दोनों तरह के शहद के गुणों और स्वाद में भी थोड़ा-सा अंतर होता है। कृतिया शहद की मक्खियां बहुत छोटी होती हैं और वे यथाशक्ति पेड़ के पोले(खाली जगह) हिस्से में शहद का छत्ता बनाती है।
भौरों की मादाओं के शहद की तुलना मक्खियों का शहद उत्तम माना जाता है। शहद के छतों में से वर्ष में दो बार शहद लेने का उचित समय एक चैत-बैसाख और दुसरा कार्तिक मास के शुक्लपक्ष में हैं।
बरसात के मौसम शीतल होने के कारण शहद पतला और खट्टा होता है। शहद में मौजूद लौह आदि क्षार रक्त को प्रतिअम्ल बनाते हैं। वह खून के लाल कणों को बढ़ाता है।
शहद शरीर को गर्मी व ताकत प्रदान करता है। शहद का खट्टापन श्वास, खांसी, हिचकी आदि श्वसनतंत्र सम्बन्धी रोगों में लाभदायक होता है। गरम चीजों के साथ शहद का सेवन नहीं करना चाहिए।
शहद सेवन करने के बाद गरम पानी भी नहीं पीना चाहिए। गरमी से पीड़ित व्यक्ति को गरम ऋतु में दिया हुआ शहद जहर की तरह कार्य करता है। शहद गर्मियों में प्राप्त किया जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार : शहद में 42 प्रतिशत शर्करा, 35 प्रतिशत द्राक्षशर्करा होती है। बाकी ग्लूकोज की मात्रा होती है। ग्लूकोज खून में जल्दी ही मिलकर पच जाता है। उसे पचाने के लिए शरीर के अन्य अवयवों को मेहनत करनी नहीं पड़ती।
शहद की शर्करा पचने में ज्यादा हल्की, जलन पैदा करने वाली, उत्तेजक, पोषक, बलदायक है। इसलिए जठराग्नि की मंदता, बुखार, वमन, तृषा, मधुमेह, अम्लपित्त, जहर, थकावट, हृदय की कमजोरी आदि में शहद ज्यादा ही लाभदायक सिद्ध होता है।
मधुशर्करा में सोमल, एन्टिमनी, क्लोरोफोर्म, कार्बनटेट्राक्लोराइड, आदि जहरीले द्रव्यों का असर खत्म करने की शक्ति भी होती है। शहद की अम्लता में सेब का मौलिक एसिड और संतरे में साइट्रिक एसिड होता है। यह अम्लता जठर को उत्तेजित करती है और पाचन में सहायक बनती है।
शहद की अम्लता और एन्जाइम के कारण आंतों की आकुन्चन गति से वेग मिलता है। आंतों की कैपीसिटी (क्षमता) बढ़ती है, मल चिकना बनता है और आसानी से बाहर निकलता है। शहद मात्रा से ज्यादा नहीं खाना चाहिए। बच्चे बीस से पच्चीस ग्राम और बड़े चालीस से पचास ग्राम से अधिक शहद एक बार में न सेवन करें।
लम्बे समय तक अधिक मात्रा में शहद का सेवन न करें। चढ़ते हुए बुखार में दूध, घी, शहद का सेवन जहर के तरह है।
यदि किसी व्यक्ति ने जहर या विषाक्त पदार्थ का सेवन कर लिया हो उसे शहद खिलाने से जहर का प्रकोप एक-दम बढ़कर मौत तक हो सकती है।
शहद की विकृति या उसका कुप्रभाव कच्चा धनिया और अनार खाने से दूर होता है।
यदि शहद के सेवन से कोई कठिनाई हो तो 1 ग्राम धनिया का चूर्ण सेवन करके ऊपर से बीस ग्राम अनार का सिरका पी लेना चाहिए
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