जब-जब संसार में पाप बढ़ता है तथा धर्म की हानि होती है, तब-तब सर्वशक्तिमान श्रीहरि का अवतार होता है। वे अवतार लेकर धर्म की स्थापना करते हैं, साधुओं को निर्भय करते हैं, दुष्टों का विनाश करते हैं तथा अपने भक्तों को सुख देते हैं। उनके अलावा उनके जन्म-कर्म के वास्तविक रहस्य को कोई नहीं जानता उनकी माया का खेल ही जीव के जन्म,जीवन और मृत्यु का कारण है।
जब असुर राजाओं का वेश धारण करके पृथ्वी को रौंदने लगे तब पृथ्वी का भार उतारने के लिये द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में अवतार लिया। उन्होंने ऐसी- ऐसी लीलाएँ की, जिनके वर्णन में बड़े-बड़े देवता श्रृषि-मुनि भी असमर्थ हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी का भार उतारने के साथ अपने पवित्र यश का विस्तार किया, जिसका गान और श्रवण करने से दुःख, शोक और अज्ञान सब नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने अपनी प्रेम भरी मुस्कान और मधुर चितवन से मनुष्य लोक को आनन्द से सराबोर कर दिया।
भगवान श्रीकृष्ण का श्यामल शरीर अत्यन्त सुन्दर था। उनके मुखकमल की शोभा तो निराली ही थी। उनके कान सुन्दर कुण्डलों से सुशोभित थे। उनकी एक-एक मुस्कान पर सभी नर-नारी न्योछावर हो जाते थे।
लीलापुरुष भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार तो लिया वसुदेव के घर, परन्तु नन्द बाबा तथा ग्वाल-बालों को अपनी बाल लीला का सुख देने के लिये वहाँ से नन्द के घर चले आये। उनकी बाल लीला तथा सुन्दर चितवन से गोप-गोपिकाएं धन्य हो गयीं। बचपन से ही प्रभु श्रीकृष्ण ने लीला मात्र से कंस के द्वारा भेजे गये राक्षसों के वध करना शुरु कर दिया, छठी के दिन ही उनके वध के लिये आयी पूतना का उन्होंने देखते-ही-देखते संहार कर दिया। तृणा वर्त, केशी, अरिष्टा सुर, बका सुर, प्रलम्बासुर,धेनुकासुर-जैसे महाबलवान राक्षस श्रीकृष्ण के द्वारा यमलोक सिधार गये। उन्होंने कालियनाग को नाथकर उसके सहस्त्र फणों पर नृत्य किया तथा यमुना के पवित्र जल को कालियनाग के विष के मुक्त कर दिया। गोवर्धन धारण श्रीकृष्ण ने इन्द्र के गर्व को चूर-चूर कर डाला। व्रज की गोपिकाओं को उन्होंने रास नृत्य के द्वारा आनन्दित किया।
भगवान श्रीकृष्ण गोकुल में अपनी लीला का प्रयोजन पूरा कर मथुरा लौट आये। यहां उन्होंने कंस तथा उसके क्रूर सहयोगियों का संहार कर अपने माता-पिता का कारागार से उद्धार किया, उग्रसेन को पुनः राजा बनाया, कंस के सम्बन्धी बड़े-बड़े असुर राजाओं का सेना सहित संहार किया। भगवान श्रीकृष्ण ने जब जरासंध की तेईस अक्षौहिणि सेना पर सहज ही विजय प्राप्त कर ली,उस समय बड़े-बड़े देवताओं ने उनपर नन्दनवन के फूलं की वर्षा के साथ उनके इस महान कार्य की प्रशंसा की। उन्होंने अपनी योगमाया के द्वारा सोते हुए अपने सम्बन्धियों तथा पुरवासियों को द्वारका पहुँचा दिया, मुचुकचन्द के द्वारा क्षणमात्र में कालयवन को भस्म करा दिया तथा उन्हें अपना दर्शन देकर कृतार्थ किया। द्वारका में रह कर उन्होंने अपना विवाह किया तथा हजारों पुत्र उत्पन्न किये। कौरव और पाण्डव के परस्पर कल हमें उन्होंने पृथ्वी का बहुत-सा भार हल्का कर दिया तथा संसार में अर्जुन के विजय का डंका बजवा दिया। उद्धव को आत्मज्ञान के उपदेश करने के बाद उन्होंने सहज भाव से अत्याचारी बने यदुवंश का भी संहार करवा दिया। इसके बाद वे महायोगी भगवान् श्रीकृष्ण अपने परम धाम पधारे।
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