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हमने पढ़ा कि समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने पी लिया। रात को शिवजी की तबीयत खराब हो गई। गरमी चढ़ी तो शिवजी ने पार्वतजी से कहा पार्वती कुछ बेचैनी सी हो रही है।
एक काम करो मेरे ऊपर धतूरा चढ़ा दो, शंकरजी ने कहा- भांग का लेपन कर दो और मेरा जलाभिषेक कर दो, मैं शांत हो जाऊंगा। पार्वती ने वैसे ही किया। यही वजह है कि आज भी धतूरे, भांग एवं शीतल जल से शंकरजी की पूजा की जाती है।
याद रखिए कि जब मस्तिष्क का मंथन करेंगे तो सबसे पहले विष ही निकलेगा। विषपान की आदत डालिए, नीलकंठ बनिए।
समुद्र मंथन के दौरान आठवें नंबर पर निकली लक्ष्मीजी। जैसे ही लक्ष्मीजी निकलीं तो देवता और दैत्य चौंक गए। सबके सब देखने लग गए लक्ष्मी आई हैं। सबकी इच्छा थी कि हमें मिल जाए।
लक्ष्मीजी से कहा गया आपको स्वतंत्रता है आप इनमें से जिसे चाहें वरण कर लें। लक्ष्मी चलीं किसको वरण करूं। सबसे पहले उन्होंने निगाह डाली तो साधु-संत बैठे हुए थे वो खड़े हुए। हाथ जोड़कर बोले हमारे पास आ जाओ।
लक्ष्मी बोलीं- देखो तुम हो तो भले लोग, लेकिन तुमको सात्विक अहंकार होता है कि हम दुनिया से थोड़े ऊपर उठे हैं, भगवान के अधिक निकट हैं तो तुम्हारे पास तो नहीं आऊंगी। अहंकारी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं हैं।
साधु-संतों को छोड़कर आगे चली तो ब्रह्माजी नजर आ गए उन्होंने कहा-बाबा! आप तो बाप बराबर हो और मैं आपकी बेटी हूं। आगे चली गईं। देवता खड़े हो गए, इंद्र के नेतृत्व में हमारी हो जाओ, उन्होंने कहा-तुम्हारी तो नहीं होऊंगी। बोले क्यों?
तुम देवता बनते हो पुण्य से और पुण्य से कभी लक्ष्मी नहीं मिला करती। लक्ष्मी की एक ही पसंद है पुरुषार्थ और परिश्रम।
जब रावण ने वरदान में पार्वती को ही मांग लिया____
हमने पढ़ा कि समुद्रमंथन के दौरान जब लक्ष्मी निकली तो सभी उन्हें पाने के लिए लालायित हो उठे। शंकरजी ने कहा सभी इनको मांग रहे हैं तो हम भी लाइन में लग जाएं। लक्ष्मीजी ने शंकरजी को देखा बोलीं आपकी तो नहीं होऊंगी मैं! चाहे जिसको चाहे जब वरदान में दे देते है तो पता नहीं मुझे किसके पल्ले बांध दें?
क्योंकि शिवजी का इतिहास तो आप भी जानते होंगे कि रावण ने जब शिवजी की स्तुति की तो शिवजी इतने प्रसन्न हुए कि रावण को अपना भक्त बनाकर जो भी मांगा वो सब दे दिया और जैसे ही प्रणाम करके रावण उठा तो दुष्ट रावण ने देखा कि शिवजी के पास पार्वती खड़ी थी और सुंदर थी पार्वती।
सौंदर्य रावण की सबसे बड़ी कमजोरी थी। रावण ने कहा आपने सब दे तो दिया भोलेनाथ एक चीज और चाहिए। उन्होंने कहा मांग-मांग क्या मांगता है। रावण ने पार्वती मांग ली। अच्छा मांग ली, तो वो भी ठीक है ले जा। ऐसा कहते हैं कि रावण पार्वतीजी को लेकर चल भी दिया।
अब भोलेनाथ बड़े परेशान कि मैंने क्या कर दिया। इतने में नारदजी आए। नारदजी ने मार्ग में रावण को रोका और बोले इन्हें कहां ले जा रहा हो? रावण ने कहा-वरदान में भोलेनाथ ने दिया है।
नारद ने कहा तुझे पता है ये पार्वती नहीं है। ये तो पार्वती की प्रतिछाया है । पार्वती को तो पहले ही शिवजी ने पाताल में मय दानव के यहां छिपा रखा है। असली पार्वती चाहता है तो वहां जा।रावण भागा पाताल में और वहां ढूंढऩे लगा।
एक सुंदर स्त्री आती हुई दिखी तो रावण वहीं रूक गया। रावण बोला-आपका परिचय, तो वो बोली मैं मंदोदरी हूं मय दानव की बेटी। रावण ने कहा चल तू ही चलेगी। पार्वती को भूलकर मंदोदरी से ही विवाह कर लिया।【 इसका नाम रावण है जो सिर्फ स्त्रियों पर टिकता है रिश्तों पर नहीं टिकता।】
इसलिए विष्णु का वरण किया लक्ष्मी ने___
समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी निकली तो उन्हें कहा गया कि आप जिसे चाहें उसका वरण कर सकती हैं। लक्ष्मी बोलीं कि मैं उसके पास नहीं जाती जो मेरा निवेश करना नहीं जानता। मैं उसके पास जाती हूं जो मेरा निवेश करना जानता हो। फिर लक्ष्मीजी ने इधर-उधर देखा तो एक ऐसा भी है जो मेरी तरफ देख ही नहीं रहा है बाकी सब लाइन लगाकर खड़े हैं तो उनके पास गई।
लक्ष्मी ने जाकर देखा तो मुंह ओढ़कर लेटे हुए थे भगवान विष्णु। लक्ष्मी ने पैर पकड़े, चरण हिलाए। विष्णु बोले क्या बात है?
वह बोलीं मैं आपको वरण करना चाहती हूं। विष्णु ने कहा-स्वागत है। लक्ष्मी जानती थीं कि यही मेरी रक्षा करेंगे। तब से लक्ष्मी-नारायण एक हो गए। लक्ष्मी आती है तो छाती पर लात मारती है तो आदमी अहंकार में चौड़ा हो जाता है और जाती हैं तो एक लात पीठ पर मारती करती हैं तो आदमी औंधा हो जाता है। लक्ष्मी की रक्षा कीजिए। उसके सम्मान की रक्षा कीजिए। वो आपके लिए सतत् उपलब्ध है।
अब नवें नंबर पर वारूणी निकली। मदिरा जैसे ही निकली तो दैत्य लाइन में लग गए। भगवान ने कहा-ले जाओ। देवताओं को तो लेना भी नहीं था। इसके बाद और मंथन किया तो पारिजात निकला। पारिजात को अपनी जगह भेज दिया।
चंद्रमा निकले तो चंद्रमा को अपनी जगह भेज दिया। 12वें नंबर पर सारंगधनु निकला, विष्णुजी सारंगपाणि हैं, अपने धनुष को लेकर चले गए। अब सबसे अंत में निकला अमृत। इतनी देर बाद जीवन में अमृत मिलता है। तेरह सीढ़ी पार करेंगे तब मिलता है ऐसे ही नहीं मिल जाता।
लोग कहते हैं यह 14 का आंकड़ा क्या है? ये है पांच कमेन्द्रियां, पांच जनेन्द्रियां तथा अन्य चार हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। ये चौदह पार करने के बाद ही परमात्मा प्राप्त होते हैं।
हमने पढ़ा कि समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने पी लिया। रात को शिवजी की तबीयत खराब हो गई। गरमी चढ़ी तो शिवजी ने पार्वतजी से कहा पार्वती कुछ बेचैनी सी हो रही है।
एक काम करो मेरे ऊपर धतूरा चढ़ा दो, शंकरजी ने कहा- भांग का लेपन कर दो और मेरा जलाभिषेक कर दो, मैं शांत हो जाऊंगा। पार्वती ने वैसे ही किया। यही वजह है कि आज भी धतूरे, भांग एवं शीतल जल से शंकरजी की पूजा की जाती है।
याद रखिए कि जब मस्तिष्क का मंथन करेंगे तो सबसे पहले विष ही निकलेगा। विषपान की आदत डालिए, नीलकंठ बनिए।
समुद्र मंथन के दौरान आठवें नंबर पर निकली लक्ष्मीजी। जैसे ही लक्ष्मीजी निकलीं तो देवता और दैत्य चौंक गए। सबके सब देखने लग गए लक्ष्मी आई हैं। सबकी इच्छा थी कि हमें मिल जाए।
लक्ष्मीजी से कहा गया आपको स्वतंत्रता है आप इनमें से जिसे चाहें वरण कर लें। लक्ष्मी चलीं किसको वरण करूं। सबसे पहले उन्होंने निगाह डाली तो साधु-संत बैठे हुए थे वो खड़े हुए। हाथ जोड़कर बोले हमारे पास आ जाओ।
लक्ष्मी बोलीं- देखो तुम हो तो भले लोग, लेकिन तुमको सात्विक अहंकार होता है कि हम दुनिया से थोड़े ऊपर उठे हैं, भगवान के अधिक निकट हैं तो तुम्हारे पास तो नहीं आऊंगी। अहंकारी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं हैं।
साधु-संतों को छोड़कर आगे चली तो ब्रह्माजी नजर आ गए उन्होंने कहा-बाबा! आप तो बाप बराबर हो और मैं आपकी बेटी हूं। आगे चली गईं। देवता खड़े हो गए, इंद्र के नेतृत्व में हमारी हो जाओ, उन्होंने कहा-तुम्हारी तो नहीं होऊंगी। बोले क्यों?
तुम देवता बनते हो पुण्य से और पुण्य से कभी लक्ष्मी नहीं मिला करती। लक्ष्मी की एक ही पसंद है पुरुषार्थ और परिश्रम।
जब रावण ने वरदान में पार्वती को ही मांग लिया____
हमने पढ़ा कि समुद्रमंथन के दौरान जब लक्ष्मी निकली तो सभी उन्हें पाने के लिए लालायित हो उठे। शंकरजी ने कहा सभी इनको मांग रहे हैं तो हम भी लाइन में लग जाएं। लक्ष्मीजी ने शंकरजी को देखा बोलीं आपकी तो नहीं होऊंगी मैं! चाहे जिसको चाहे जब वरदान में दे देते है तो पता नहीं मुझे किसके पल्ले बांध दें?
क्योंकि शिवजी का इतिहास तो आप भी जानते होंगे कि रावण ने जब शिवजी की स्तुति की तो शिवजी इतने प्रसन्न हुए कि रावण को अपना भक्त बनाकर जो भी मांगा वो सब दे दिया और जैसे ही प्रणाम करके रावण उठा तो दुष्ट रावण ने देखा कि शिवजी के पास पार्वती खड़ी थी और सुंदर थी पार्वती।
सौंदर्य रावण की सबसे बड़ी कमजोरी थी। रावण ने कहा आपने सब दे तो दिया भोलेनाथ एक चीज और चाहिए। उन्होंने कहा मांग-मांग क्या मांगता है। रावण ने पार्वती मांग ली। अच्छा मांग ली, तो वो भी ठीक है ले जा। ऐसा कहते हैं कि रावण पार्वतीजी को लेकर चल भी दिया।
अब भोलेनाथ बड़े परेशान कि मैंने क्या कर दिया। इतने में नारदजी आए। नारदजी ने मार्ग में रावण को रोका और बोले इन्हें कहां ले जा रहा हो? रावण ने कहा-वरदान में भोलेनाथ ने दिया है।
नारद ने कहा तुझे पता है ये पार्वती नहीं है। ये तो पार्वती की प्रतिछाया है । पार्वती को तो पहले ही शिवजी ने पाताल में मय दानव के यहां छिपा रखा है। असली पार्वती चाहता है तो वहां जा।रावण भागा पाताल में और वहां ढूंढऩे लगा।
एक सुंदर स्त्री आती हुई दिखी तो रावण वहीं रूक गया। रावण बोला-आपका परिचय, तो वो बोली मैं मंदोदरी हूं मय दानव की बेटी। रावण ने कहा चल तू ही चलेगी। पार्वती को भूलकर मंदोदरी से ही विवाह कर लिया।【 इसका नाम रावण है जो सिर्फ स्त्रियों पर टिकता है रिश्तों पर नहीं टिकता।】
इसलिए विष्णु का वरण किया लक्ष्मी ने___
समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी निकली तो उन्हें कहा गया कि आप जिसे चाहें उसका वरण कर सकती हैं। लक्ष्मी बोलीं कि मैं उसके पास नहीं जाती जो मेरा निवेश करना नहीं जानता। मैं उसके पास जाती हूं जो मेरा निवेश करना जानता हो। फिर लक्ष्मीजी ने इधर-उधर देखा तो एक ऐसा भी है जो मेरी तरफ देख ही नहीं रहा है बाकी सब लाइन लगाकर खड़े हैं तो उनके पास गई।
लक्ष्मी ने जाकर देखा तो मुंह ओढ़कर लेटे हुए थे भगवान विष्णु। लक्ष्मी ने पैर पकड़े, चरण हिलाए। विष्णु बोले क्या बात है?
वह बोलीं मैं आपको वरण करना चाहती हूं। विष्णु ने कहा-स्वागत है। लक्ष्मी जानती थीं कि यही मेरी रक्षा करेंगे। तब से लक्ष्मी-नारायण एक हो गए। लक्ष्मी आती है तो छाती पर लात मारती है तो आदमी अहंकार में चौड़ा हो जाता है और जाती हैं तो एक लात पीठ पर मारती करती हैं तो आदमी औंधा हो जाता है। लक्ष्मी की रक्षा कीजिए। उसके सम्मान की रक्षा कीजिए। वो आपके लिए सतत् उपलब्ध है।
अब नवें नंबर पर वारूणी निकली। मदिरा जैसे ही निकली तो दैत्य लाइन में लग गए। भगवान ने कहा-ले जाओ। देवताओं को तो लेना भी नहीं था। इसके बाद और मंथन किया तो पारिजात निकला। पारिजात को अपनी जगह भेज दिया।
चंद्रमा निकले तो चंद्रमा को अपनी जगह भेज दिया। 12वें नंबर पर सारंगधनु निकला, विष्णुजी सारंगपाणि हैं, अपने धनुष को लेकर चले गए। अब सबसे अंत में निकला अमृत। इतनी देर बाद जीवन में अमृत मिलता है। तेरह सीढ़ी पार करेंगे तब मिलता है ऐसे ही नहीं मिल जाता।
लोग कहते हैं यह 14 का आंकड़ा क्या है? ये है पांच कमेन्द्रियां, पांच जनेन्द्रियां तथा अन्य चार हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। ये चौदह पार करने के बाद ही परमात्मा प्राप्त होते हैं।
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