Friday 15 July 2016

माखन लेने की अनोखी रीति



एक दिन माता यशोदा दही मथकर माखन निकाल रहीं थीं। अचानक मां को आनन्द देने के लिए बलराम और श्याम उनके निकट पहुंच गए। कन्हैया ने मां की चोटी पकड़ ली और बलराम ने मोतियों की माला- दोनों मां को अपनी तरफ खींचने का प्रयास करने लगे। बलराम कहते थे, मां तुम पहले मेरी सुनों!  और कन्हैया कहते थे कि नहीं, मां तुम्हे पहले मेरी सुननी पड़ेगी। मैया! मुझे भूख लगी है। भूख से मेरा बुरा हाल है। चलो ना जल्दी से मुझे माखन रोटी दे दो।
यशोदा जी ने कहा- बेटा, दूध पी लो या घर में अनेक प्रकार के पकवान बने है जो तुम्हारी इच्छा हो खा लो।
कन्हैया ने कहा- नहीं, मै तो केवल माखन रोटी ही खाऊंगा। मेवा पकवान मुझे अच्छे नहीं लगते। जब तक तुम मुझे माखन नहीं दे दोगी तब तक मै तुम्हारी चोटी खीचता ही रहूंगा।
मां ने कहा- कन्हैया अगर तू माखन खायेगा तो तेरी यह चोटी छोटी रह जाएगी, कभी नहीं बढ़ेगी।
कन्हैया ने कहा- मां, तुम दाऊ भैया को तो कभी मना नहीं करती , वह जब भी मांगते है तुम उन्हे माखन रोटी दे देती हो। मुझे क्यों नहीं दे रहीं हो?
मां ने कहा- कान्हा देखो, पहले मै दाउ को भी माखन रोटी नहीं देती थी, वह भी मेवा पकवान खाता था और दूध पीता था, तभी तो उसकी चोटी लंबी- चौड़ी है। यदि तुम भी दूध पीओगे तो तुम्हारी भी चोटी लंबी हो जाएगी। जाओ मेरे लाल अच्छे बच्चे जिद नहीं करते।
कान्हा ने कहा- मां तुम झूठ बोलती हो, कितनी बार मैने दूध पिया है पर मेरी चोटी अब तक नहीं बढ़ी। आज तुम्हारा बहाना नहीं चल सकता। तुम्हें मुझे माखन रोटी देनी ही पड़ेगी।
मैया ने कहा- कान्हा दाउ अब बड़ा हो गया है।  इसने तुमसे अधिक दिनों तक दूध पिया है। इसलिए दाउ की चोटी बढ़ गयी, जब तुम भी उतने ही दिनों तक दूध पी लोगे तब तुम्हारी भी चोटी बढ़ जाएगी।
कन्हैया ने कहा- मैया मै यह सब नहीं सुनूंगा। तुम साफ-साफ बताओ मुझे माखन रोटी देती हो कि नहीं, यदि तुम मुझे माखन रोटी नहीं दोगी तो, जाओं मै तुमसे बात नहीं करूंगा। ना ही तुम्हारी गोदी में आऊंगा। अब दाऊ भैया ही तुम्हारे पुत्र है, मै भला तुम्हारा क्या लगता हूं।
माता यशोदा ने कहा- कान्हा तू तो मेरा प्राण है मै भला तेरे बिना कैसे रह सकती हूं। मेरे नन्हे लाल मै तेरी बलैया लेती हूं। तनिक रूको। मुझे माखन तो निकाल लेने दो, फिर तुम्हे जितना माखन चाहिए ले लेना।
इस प्रकार माता यशोदा की आंखों से प्रेमाश्रु छलक पड़े। यशोदा मैया धन्य हैं। त्रिभुवन का भरण पोषण करने वाले प्रभु माखन के लिए बार-बार उनके आगे हाथ फैलाते है। यशोदा मैया से बड़ा सौभाग्य भला किसका होगा।

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