फिर कृष्ण की प्रेरणा से इंद्र को जम्हाई आ गयी और वो तन्द्रा के अधीन हो गया। उसी स्थिति में इंद्र ने देखा उसके सब और कृष्ण हैं। सब द्विभुज हैं और सब पीताम्बरधारी हैं। सब मनोहर श्याम विग्रह वाले हैं और सब चन्दन से चर्चित हैं और सबके हाथ में बांसुरी हैं। इंद्र से सब ओर कृष्ण को देखा। सब मुस्कुरा रहे थे और सभी भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए लालायित दीखते थे। सारे संसार को कृष्णमय देख कर इंद्र मूर्छित हो गया और अपनी मूर्छा में गुरुमंत्र का जाप करने लगा।
फिर इंद्र ने अपने हृदय में सहस्त्रदल कमल पर प्रकाशित तेजपुंज को देखा और उस तेजपुंज के स्रोत और सबके ह्रदय में विशेषरूप से रहने वाले शीरोदक शयी विष्णु(कृष्ण) को देखा। वो अत्यन्त सुन्दर रत्नमय सिंहासन पर विराजमान थे और रत्नमय मकराकृति के कुंडल और दिव्य तेजमय मुकुट धारण किये थे। उनके वक्षस्थल पर कौस्तुभ मणि और श्रीवास्त शोभा पा रहे थे और वो नाना अलंकारों से सुसज्जित थे। इस तरह इंद्र ने बहार और भीतर समान रूप से कृष्ण को स्थित देखा। और जब उसने नेत्र खोले तो वृन्दावनवासियों को सुख देने वाले कृष्ण गोवर्धन धारण किये खड़े थे।
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