शिव महापुराण के अनुसार भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा माता पार्वती को कही है। एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। समाधि से उठने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने जब अपनी आंखें खोली तब उनके नेत्रों से अश्रु धारा पृथ्वी पर गिर पड़ी। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं। वे पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, सिद्धिदायक तथा भोग मोक्ष देने वाले हैं। कहा जाता है जितने छोटे रुद्राक्ष होंगे उतने ही अधिक फलप्रद हैं। वे अष्टि को दूर करके शांति देने वाले हैं। रुद्राक्ष की माला धारण करने से पाप और रोग नष्ट होते हैं। साथ ही सिद्धि मिलती है। भिन्न-भिन्न अंगों में भिन्न-भिन्न संख्या वाले रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होता है। शिव पुराण में इसका विस्तृत विवेचन है। भस्म, रुद्राक्ष धारण करके 'नमः शिवाय' मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है। भस्म रुद्राक्षधारी मनुष्य हो देखकर भूत प्रेत भाग जाते हैं, देवता पास में दौड़ आते हैं, उसके यहां लक्ष्मी और सरस्वती दोनों स्थायी निवास करती हैं, विष्णु आदि सब देवता प्रसन्न होते हैं। अतः सब शैव वैष्णवों को नियम से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
Saturday, 24 September 2016
रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा
शिव महापुराण के अनुसार भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा माता पार्वती को कही है। एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। समाधि से उठने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने जब अपनी आंखें खोली तब उनके नेत्रों से अश्रु धारा पृथ्वी पर गिर पड़ी। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं। वे पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, सिद्धिदायक तथा भोग मोक्ष देने वाले हैं। कहा जाता है जितने छोटे रुद्राक्ष होंगे उतने ही अधिक फलप्रद हैं। वे अष्टि को दूर करके शांति देने वाले हैं। रुद्राक्ष की माला धारण करने से पाप और रोग नष्ट होते हैं। साथ ही सिद्धि मिलती है। भिन्न-भिन्न अंगों में भिन्न-भिन्न संख्या वाले रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होता है। शिव पुराण में इसका विस्तृत विवेचन है। भस्म, रुद्राक्ष धारण करके 'नमः शिवाय' मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है। भस्म रुद्राक्षधारी मनुष्य हो देखकर भूत प्रेत भाग जाते हैं, देवता पास में दौड़ आते हैं, उसके यहां लक्ष्मी और सरस्वती दोनों स्थायी निवास करती हैं, विष्णु आदि सब देवता प्रसन्न होते हैं। अतः सब शैव वैष्णवों को नियम से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
गुरु की सीख
रामानुजाचार्य शठकोप स्वामी जी के शिष्य थे। स्वामी जी ने रामानुज जी को ईश्वर प्राप्ति का रहस्य बताया था। परंतु उसे किसी को न बताने का निर्देश दिया था, किंतु रामानुज जी ने अपने गुरु की इस आज्ञा को नहीं माना, उन्होंने ईश्वर प्राप्ति का जो मार्ग बताया था, उस पूर्ण ज्ञान को उन्होंने लोगों को देना प्रारंभ किया। यह ज्ञात होनेपर शठकोप स्वामी जी बहुत क्रोधित हुए। रामानुज जी को बुलाकर वे कहने लगे, ‘‘मेरी आज्ञा का उल्लंघन कर तू साधना का रहस्य प्रकट कर रहा है। यह अधर्म है, पाप है। इसका परिणाम क्या होगा तुझे ज्ञात है ?’’
रामानुज जी ने विनम्रता से कहा, ‘‘ हे गुरुदेव, गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करने से शिष्य को नरक में जाना पडता है।’’ शठकोप स्वामी जी ने पूछा, ‘‘ यह ज्ञात होते हुए भी तुमने जानबूझकर ऐसा क्यों किया ?’’
इसपर रामानुजजी कहने लगे, ‘‘वृक्ष अपना सब कुछ लोगों को देता है। क्या उसे कभी इसका पश्चात्ताप प्रतीत होता है ? मैंने जो कुछ किया, उसके पीछे लोगों का कल्याण हो, लोगों को भी ईश्वर प्राप्ति का आनंद प्राप्त हो, यही हेतु है। इसके लिए यदि मुझे नरक में भी जाना पडे, तो मुझे उसका तनिक भी दुख नहीं होगा।’’
रामानुज जी की, समाज को ईश्वर प्राप्ति की साधना बताने की, लालसा को देखकर स्वामी जी प्रसन्न हुए। उन्होंने रामानुज जी को अपने निकट लिया, उनको उत्तमोत्तम आशीर्वाद दिया तथा उन्हें समाज में सत्य के ज्ञान का प्रचार करने हेतु नियुक्त किया।
Wednesday, 21 September 2016
राजा सुरथ एवं समाधि वैश्य को देवी-दर्शन
प्राचीन समय की बात हैं। स्वारोचिष मन्वन्तर में सुरथ नामके एक परम धार्मिक राजा थे।वे परम उदार थे तथा प्रजाका पुत्रवत पालन करते थे। दुर्योगवश उनके मन्त्री शत्रुओं से मिल गये और शत्रुओं ने उन्हें पराजित करके उनका राज्य छीन लिया। निराश होकर राजा सुरथ वन में चले गये। एक दिन भूख-प्यास से व्याकुल अवस्था में परम तपस्वी सुमेधा मुनिके आश्रम में पहुँचे। मुनिके पूछने पर उन्होंने अपनी सम्पूर्ण कथा बतायी। दयालु मुनि ने उनका यथोचित सत्कार किया और उन्हें आश्रम में आश्रय प्रदान किया।
एक दिन महाराज सुरथ एक वृक्ष के नीचे बैठकर अपने खोये हुए राज्य एवं परिवार के विषय में चिन्तन कर रहे थे। इतने में वहां एक वैश्य पहुंचा। उसका नाम समाधि था। उसके पुत्रो ने उसकी सम्पत्ति छीन लिया था और उसे घर से निकाल दिया था। परस्पर समान दुःख से दुःखी होने के कारण थोड़ी ही देर में राजा और वैश्य में प्रगाढ़ मैत्री हो गयी। फिर दोनों अपने शोक- निवारण का उपाय पूछनेके लिये सुमेधा मुनिके पास गये और अपने कल्याण का उपाय पूछा।
सुमेधा मुनि ने कहा- वत्स! कल्याण चाहने वाले पुरुषों को चाहिये कि मन, वचन और कर्म से भगवती महामाया की आराधना करें। भगवती की कृपा से सुख, ज्ञान और मोक्ष सब कुछ सहज ही सुलभ हो जाता है। भगवती की प्रसन्नता के लिये नवरात्र-व्रत, भगवती का पूजन, नवार्ण- मन्त्रका जप तथा हवन करना चाहिये। नवरात्र-व्रत सम्पूर्ण व्रतों में श्रेष्ठ हैं। भगवती की कृपा से तुम्हारी विघ्न-बाधाएँ दूर हो जायँगी।
इस प्रकार सुमेधा मुनि से उपदेश प्राप्त करके राजा सुरथ और वैश्य एक श्रेष्ठ नदी के तट पर गये, वहां उन्होंने एक निर्जन स्थान पर बैठकर भगवती के मन्त्र का जप और ध्यान करना प्रारम्भ कर दिया।तपस्या करते हुए एक वर्ष का समय पूरा हो गया। दूसरे वर्ष उन लोगों ने सुखे पत्ते खाकर तपस्या की। तीसरे वर्ष की तपस्या में उन्होने सूखे पत्तों जलका भी त्याग कर दिया ।कठिन तप से प्रसन्न होकर महामाया भगवती ने उन्हें साक्षात दर्शन दिया और कहा- तुम दोनों की तपस्या से मैं संतुष्ट हो गयी हूँ हे भक्तो! वर माँगो।
देवी की बात सुनकर उन्होंने भगवती से अपने शत्रुओं के विनाश के साथ निष्कंलक राज्य की याचना की। भगवती ने कहा-राजन! अब तुम घर लौट जाओ। तुम्हारे शत्रु तुम्हारा राज्य छोड़कर लौट जायेगे। दस हजार वर्षो तक अखिल भूमण्डल का राज्य करने के बाद अगले जन्म में तुम सूर्य के यहाँ जन्म लेकर मनु के पद को प्राप्त करोगे।
भगवती ने तथास्तु कहकर वैश्य को भी तृप्त कर दिया । इस प्रकार सुरथ भगवती के कृपा प्रसाद से समुद्रपर्यन्त समस्त पृथ्वी का राज्य भोगने लगे और समाधि वैश्य ज्ञान प्राप्त करके मुक्ति पथ के पथिक बने। भगवती के पावन कृपा के इस प्रसंग को पढ़ने और मनन करने से ज्ञान, मोक्ष, यक्ष, सुख- सभी उपलब्ध हो जाते हैं इसमें कुछ भी संशय नही है।
महाभारत की कथाएं - लक्ष्य के प्रति एकनिष्ठ होना जरुरी
महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ। कौरव तो सभी युद्ध में मारे जा चुके थे। पाण्डव भी कुछ समय तक राज्य करके हिमालय पर चले गये। वहाँ पर एक, एक करके सभी भाई गिर गये। अकेले युधिष्ठिर अपने एक मात्र साथी कुत्ते के साथ बचे रहे और वे स्वर्ग गये।
कहते हैं युधिष्ठिर जीवित ही स्वर्ग में गये थे। वहाँ उन्होंने स्वर्ग और नरक दोनों को देखा। स्वर्ग में प्रवेश करते ही दुर्योधन दिखाई दिए। अपने भाइयों से भी उनका सामना हुआ। रास्ते में अन्य भाइयों को गिरते समय प्रश्न करने वाले भीम के मन में यहाँ भी जिज्ञासा उठी पूछा “भैया! दुर्योधन तो आजीवन अनीति का ही पक्ष लेते रहे। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कोई धर्म कार्य नहीं किया जिसके पुण्य से उसे स्वर्ग मिला हो। ईश्वर की ये कैसी लीला है।
नहीं भीम! ईश्वरीय विधान के अनुसार प्रत्येक पुण्य का परिणाम चाहे किंचित ही क्यों न हो, स्वर्ग मिलता है। सभी बुराइयों के होते हुए भी दुर्योधन में एक सद्गुण था जिसके प्रसाद स्वरूप उसे स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ है।
वह क्या- भीम ने पूछा। वह अपने संस्कारों के कारण जीवन को सही दिशा भले ही न दे सका हो परंतु उसका मार्ग अवश्य सही था। वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने लिये तन्मयतापूर्वक जुटा रहा। ध्येय के प्रति एकनिष्ठ रहना बहुत बड़ा सद्गुण है। इस सद्गुण के पुण्य के परिणाम स्वरूप कुछ समय के लिए उसे स्वर्ग में स्थान मिलना उचित था।
शबरी की प्रेमभक्ति
भगवान श्रीराम के अनन्य भक्तों में एक भील जाति की कन्या भी थी श्रमणा। जिसे बाद में शबरी के नाम से जाना गयाl उसे जब भी समय मिलता, वह भगवान की पूजा- अर्चना करती। बड़ी होने पर जब उसका विवाह होने वाला था तो अगले दिन भोजन के लिए काफी बकरियों की बलि दी जानी थी। यह पता लगते ही उसने अपनी माता से इस जीव हत्या का विरोध किया पर उसकी माता ने बताया कि वे भील हैं और यह उनके यहां का नियम है कि बारात का स्वागत इसी भोजन से होता है! वह यह बात सह नहीं कर सकी और चुप चाप रात के समय घर छोड़ कर जंगलों की और निकल पड़ी!
जंगल में वह ऋषि-मुनियों की कुटिया पर गयी पर भील जाति की होने के कारण सबने उसे दुत्कार दिया! आखिर में मतंग ऋषि ने उसे अपने आश्रम में रहने के लिए आश्रय दिया। शबरी अपने व्यवहार और कार्य−कुशलता से शीघ्र ही आश्रमवासियों की प्रिय बन गई। मतंग ऋषि ने अपनी देह त्याग के समय उसे बताया कि भगवान राम एक दिन उसकी कुटिया में आएंगे! वह उनकी प्रतिक्षा करे ! वही तुम्हारा उद्धार करेंगे l दिन बीतते रहे। शबरी रोज सारे मार्ग की और कुटिया की सफाई करती और प्रभु राम की प्रतीक्षा करती! ऐसे करते वह बूढी हो चली, पर प्रतिक्षा नही छोडी क्यूंकि गुरु के वचन जो थे !
अंत मे शबरी की प्रतिक्षा की खत्म हुई और भगवान श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता की खोज करते हु्ए मतंग ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे। शबरी ने उन्हें पहचान लिया। उन्होंने दोनों भाईयों का यथायोग्य सत्कार किया। शबरी भागकर कंद−मूल लेने गई। कुछ क्षण बाद वह लौटी। कंद−मूलों के साथ वह कुछ जंगली बेर भी लाई थी। कंद−मूलों को उसने भगवान को अर्पण कर दिया। पर बेरों को देने का साहस नहीं कर पा रही थी। कहीं बेर ख़राब और खट्टे न निकलें, इस बात का उसे भय था। उसने बेरों को चखना आरंभ कर दिया। अच्छे और मीठे बेर वह बिना किसी संकोच के श्रीराम को देने लगी। श्रीराम उसकी सरलता पर मुग्ध थे। उन्होंने बड़े प्रेम से जूठे बेर खाए। श्रीराम की कृपा से शबरी का उसी समय उद्धार हो गया ।
कर्ण की धर्मनिष्ठता
कर्ण कौरवों की सेना में होते हुए भी महान धर्मनिष्ठ योद्धा थे। भगवान श्रीकृष्ण तक उनकी प्रशंसा करते थे। महाभारत युद्ध में कर्ण ने अर्जुन को मारने की प्रतिज्ञा की थी। उसे सफल बनाने के लिए खांडव वन के महासर्प अश्वसेन ने इसे उपयुक्त अवसर समझा। अर्जुन से वह शत्रुता तो रखता था, पर काटने का अवसर नहीं मिलता था। वह बाण बनकर कर्ण के तरकस में जा घुसा, ताकि जब उसे धनुष पर रखकर अर्जुन तक पहुँचाया जाए, तो अर्जुन को काटकर प्राण हर ले।
कर्ण के बाण चले। अश्वसेन वाला बाण भी चला, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने वस्तुस्थिति को समझा और रथ-घोड़े जमीन पर बिठा दिए। बाण मुकुट काटता हुआ ऊपर से निकल गया।
असफलता पर क्षुब्ध अश्वसेन प्रकट हुआ और कर्ण से बोला, "अबकी बार अधिक सावधानी से बाण चलाना, साधारण तीरों की तरह मुझे न चलाना। इस बार अर्जुन वध होना ही चाहिए। मेरा विष उसे जीवित रहने न देगा।"
इस पर कर्ण को भारी आश्चर्य हुआ। उसने उस कालसर्प से पूछा, "आप कौन हैं और अर्जुन को मारने में इतनी रूचि क्यों रखते हैं?"
सर्प ने कहा "अर्जुन ने एक बार खण्डव वन में आग लगाकर मेरे परिवार को मार दिया था, इसलिए उसी का प्रतिशोध लेने के लिए मैं व्याकुल रहता हूँ। उस तक पहुँचने का अवसर न मिलने पर आपके तरकस में बाण के रूप में आया हूँ। आपके माध्यम से अपना आक्रोश पूरा करूँगा।"
कर्ण ने उसकी सहायता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए वापस लौट जाने के लिए कहा, "भद्र, मुझे अपने ही पुरुषार्थ से नीति युद्ध लड़ने दीजिए। आपकी अनीतियुक्त सहायता लेकर जीतने से तो हारना अच्छा है।"
कालसर्प कर्ण की नीति-निष्ठा को सराहता हुआ वापस लौट गया। उसने कहा, "कर्ण तुम्हारी यह धर्मनिष्ठा ही सत्य है, जिसमे अनीतियुक्त पूर्वाग्रह को छद्म की कहीं स्थान नहीं।"
जानिए किन चार तरह के व्यक्तियों को नींद नहीं आती
‘महाभारत’ की कथा के महत्वपूर्ण पात्र विदुर को कौरव-वंश की गाथा में विशेष स्थान प्राप्त है। विदुर हस्तिनापुर राज्य के शीर्ष स्तंभों में से एक अत्यंत नीतिपूर्ण, न्यायोचित सलाह देने वाले माने गए है।
वे जो सलाह देते थे, उसमें संपूर्ण मनुष्य जाति का भला छिपा होता था। उनकी इन सलाहों को विदुर नीति के नाम से जाना जाता है...।
विदुर का कहना था, कोई भी व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष दोनों के जीवन में ये चार बातें होती हैं, तब उसकी नींद उड़ जाती है और मन अशांत हो जाता है। ये चार बातें कौन-कौन सी हैं, आईये जानते हैं।
➡ जब किसी स्त्री या पुरुष की शत्रुता उससे अधिक बलवान व्यक्ति से हो जाती है तो भी उसकी नींद उड़ जाती है। निर्बल और साधनहीन व्यक्ति हर पल बलवान शत्रु से बचने के उपाय सोचता रहता है क्यूंकि उसे हमेशा यह भय सताता है कि कहीं बलवान शत्रु की वजह से कोई अनहोनी न हो जाए।
➡ विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा कि यदि किसी व्यक्ति के मन में कामभाव जाग गया हो तो उसकी नींदें उड़ जाती है और जब तक उस व्यक्ति की काम भावना तृप्त नहीं हो जाती तब तक वह सो नहीं सकता है।
➡ यदि किसी व्यक्ति का सब कुछ छीन लिया गया हो तो उसकी रातों की नींद उड़ जाती है। ऐसा इंसान न तो चैन से जी पाता है और ना ही सो पाता है। इस परिस्थिति में व्यक्ति हर पल छीनी हुई वस्तुओं को पुन: पाने की योजनाएं बनाता रहता है और जब तक वह अपनी वस्तुएं पुन: पा नहीं लेता है, तब तक उसे नींद नहीं आती है।
➡ यदि किसी व्यक्ति की प्रवृत्ति चोरी की है या जो चोरी करके ही अपने उदर की पूर्ति करता है, जिसे चोरी करने की आदत पड़ गई है, जो दूसरों का धन चुराने की योजनाएं बनाते रहता है, उसे भी नींद नहीं आती है। चोर हमेशा रात में चोरी करता है और दिन में इस बात से डरता है कि कहीं उसकी चोरी पकड़ी ना जाए। इस वजह से उसकी नींद भी उड़ी रहती है।
ये चारों बातें व्यवहारिक और हर युग में सटीक मालूम पड़ती हैं, उम्मीद करते हैं कि महात्मा विदुर की बातों से आप भी अपनी सीख लेंगे और दूसरों को भी प्रेरित करेंगे
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