__
कामकाजी महिलाओं को जितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है उतना पुरुषों को नहीं करना पड़ता यह तो तय है।
एक पुरानी कहावत है, ‘औरत घर से निकली समझो हाथ से निकली।’ यहां दो बातें हैं- हाथ और घर। कहावत बनाने वाला घर को स्त्री के लिए सबसे सुरक्षित स्थान मानता होगा।
हाथ का मतलब है नियंत्रण। इसी हाथ के नियंत्रण ने पुरुष को शोषक बनाया और स्त्री शोषित होती रहे ऐसी व्यवस्था दी।
शिक्षा का विस्तार हुआ और महिलाएं कामकाज के लिए घर से निकलने लगीं तब उनके जीवन में कुछ कलह के केंद्र बने।
वैसे तो संसार की सबसे पहली कामकाजी महिला सीताजी थीं। वे पहली बार पति राम के साथ घर से निकली थीं। यदि वे घर से निकलीं तो क्या हाथ से निकल गईं, निरंकुश हो गईं?
बस यही बात समझनी है। स्त्री का काम करना केवल आर्थिक दृष्टिकोण से न देखें। इसमें मूल्य और परंपरा बहुत गहराई से जुड़े हैं।
पहले कलह के केंद्र परिवार और खासकर सास-बहू हुआ करते थे, लेकिन अब कलह का केंद्र बदल गया है।
ससुराल वालों ने अनुमति दी और माता-पिता ने भी बेटियों को काम करने से नहीं रोका तो कलह का केंद्र हो गए पति-पत्नी।
दोनों का कामकाजी होना दोनों के धैर्य को खा रहा है, इसलिए कामकाजी महिलाएं उन तमाम सेवानिवृत्त महिलाओं से जानें कि कामकाजी दौर में उन्होंने परेशानियों से कैसे पार पाया।
वे अच्छे से जानती हैं कि उनके कामकाजी होने का क्या फायदा और क्या नुकसान रहा। ये बात यदि आज की महिलाएं उनसे शेयर करें तो हो सकता है उन्हें पति-पत्नी का कलह दूर करने में सुविधा होगी।
यदि ऐसा नहीं किया तो यह कलह का केंद्र एक दिन माता-पिता और बच्चों में उतरेगा और उस दिन स्त्री का कामकाजी होना बच्चों के लिए महंगा साबित हो सकता है।
कामकाजी महिलाओं को जितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है उतना पुरुषों को नहीं करना पड़ता यह तो तय है।
एक पुरानी कहावत है, ‘औरत घर से निकली समझो हाथ से निकली।’ यहां दो बातें हैं- हाथ और घर। कहावत बनाने वाला घर को स्त्री के लिए सबसे सुरक्षित स्थान मानता होगा।
हाथ का मतलब है नियंत्रण। इसी हाथ के नियंत्रण ने पुरुष को शोषक बनाया और स्त्री शोषित होती रहे ऐसी व्यवस्था दी।
शिक्षा का विस्तार हुआ और महिलाएं कामकाज के लिए घर से निकलने लगीं तब उनके जीवन में कुछ कलह के केंद्र बने।
वैसे तो संसार की सबसे पहली कामकाजी महिला सीताजी थीं। वे पहली बार पति राम के साथ घर से निकली थीं। यदि वे घर से निकलीं तो क्या हाथ से निकल गईं, निरंकुश हो गईं?
बस यही बात समझनी है। स्त्री का काम करना केवल आर्थिक दृष्टिकोण से न देखें। इसमें मूल्य और परंपरा बहुत गहराई से जुड़े हैं।
पहले कलह के केंद्र परिवार और खासकर सास-बहू हुआ करते थे, लेकिन अब कलह का केंद्र बदल गया है।
ससुराल वालों ने अनुमति दी और माता-पिता ने भी बेटियों को काम करने से नहीं रोका तो कलह का केंद्र हो गए पति-पत्नी।
दोनों का कामकाजी होना दोनों के धैर्य को खा रहा है, इसलिए कामकाजी महिलाएं उन तमाम सेवानिवृत्त महिलाओं से जानें कि कामकाजी दौर में उन्होंने परेशानियों से कैसे पार पाया।
वे अच्छे से जानती हैं कि उनके कामकाजी होने का क्या फायदा और क्या नुकसान रहा। ये बात यदि आज की महिलाएं उनसे शेयर करें तो हो सकता है उन्हें पति-पत्नी का कलह दूर करने में सुविधा होगी।
यदि ऐसा नहीं किया तो यह कलह का केंद्र एक दिन माता-पिता और बच्चों में उतरेगा और उस दिन स्त्री का कामकाजी होना बच्चों के लिए महंगा साबित हो सकता है।
No comments:
Post a Comment