Thursday, 10 September 2015

ईश्वर की रचना

मलिक मोहम्मद जायसी के बारे में एक बात बड़ी प्रसिद्ध है. उन्होंने पद्मावत नाम का बड़ा सुन्दर काव्य लिखा है. वे बड़े ही कुरुप थे. एक बार वे राजा की सभा में गए, तो उन्हें देखकर सभा के लोगों के होंठों पर हँसी खेल गई. प्रत्यक्ष रूप से तो वे लोग नहीं हँसे, पर मुँह दबाकर हँसने लगे. जायसी ने देख लिया और वे स्वयं भी हँसने लगे. वे तो विष पचाना जानते थे. जो लोग उनकी कुरूपता पर हँस रहे थे, उनसे उन्होंने तुरंत पुछा -"आप लोग मुँह दबाकर क्यों हँस रहे हो ?" अब कौन कहे कि आपकी शक्ल देखकर हँस रहे हैं. किसी को साहस नहीं हुआ कुछ कहने का. तब उन्होंने स्वयं ही उलटकर कह दिया - "मैं समझ गया कि आप लोग मुझी पर हँस रहे हैं. लेकिन मैं आप लोगों से पुछता हूँ कि - मुझ पर हँस रहे हैं कि कुम्हार पर. घड़ा अगर टेढ़ा हो जाय तो घड़े का दोष है कि कुम्हार का ? अगर मैं ईश्वर की रचना हूँ तो कुम्हार ने मुझे जैसा बनाया, वैसा मैं बन गया. आप लोगों को हँसना है तो ईश्वर पर हँसें, घड़े पर क्यों हँस रहे हैं 

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