लोग कहते है मुरली भगवान शंकर है ठीक ही कहते है पर भगवान शंकर मुरली क्यो बने इसका तत्व किसिकों नहीं पता चलो हम बताते है
पुरानो के अनुसार जब हनुमान लंका दहन करके वापस आए श्री राम के पास माता सीता का कुशल मंगल बताने के लिए भगवान राम ने हनुमान से कहा
हनुमान तुम लंका जलाकर आए हो तुम थक गए हो मेरे मन मे इच्छा उतपन हो रही है की मै आप के चरण की सेवा करना चाहता हु... इसलिए मुझे अपने चरण दबाने की सेवा दीजिए और वैसे भी हनुमान मेरे ऊपर आपके अनंत उपकार है मै तूहरे एक एक उपकार से कभी उऋण नहीं हो सकता ।
हनुमान तुम लंका जलाकर आए हो तुम थक गए हो मेरे मन मे इच्छा उतपन हो रही है की मै आप के चरण की सेवा करना चाहता हु... इसलिए मुझे अपने चरण दबाने की सेवा दीजिए और वैसे भी हनुमान मेरे ऊपर आपके अनंत उपकार है मै तूहरे एक एक उपकार से कभी उऋण नहीं हो सकता ।
हनुमान ने कहा प्रभु आप स्वामी मै दास हु कैसे आप मेरे चरण दबाएँगे... लोग क्या कहेंगे दास होकर स्वामी से चरण दबवा रहा है॥ भगवान राम नहीं माने तो फिर हनुमानजी शंकर रूप मे भगवान राम को ये वरदान दिया की प्रभु इस अवतार मे रहने दीजिए अगले अवतार मे जब कृष्ण बनेंगे तो मै मुरली बानुगा उस मुरली मे छेद होंगे जिसे आप अपने कर कमलों से छेद को बंद करेंगे फिर खुला छोड़ देंगे इससे आप मेरी चरण दबाने का सौभाग्य प्राप्त कर लेंगे।
"शंकर स्वयं केशरीनंदन"
ये मुरली हनुमान जी है...... श्री कृष्ण सदा इस हनुमान रूपी मुरली के छेद को छेद छेद कर भगवान शिव के चरणों की सेवा करते है यही इसी मुरली के द्वारा अनंत गोपियो को भी अपनी प्रेम की ओर आकर्षित करते है इसी मुरली के प्रभाव से परमहंस समाधि भूल जाते है यही नहीं इसी मुरली के कारण राधा बावली हो जाती है मादनखय महाभाव की अवस्था से पीड़ित कर देती है॥
इसी तरह भगवान शिव लीला क्षेत्र मे शिवानी गोपी बनकर रास मे जाते है क्यूकी भगवान शिव अपनी इच्छा से रास मे नहीं जाते या भगवान शिव को कोई गरज नहीं है रास मे जाने की ये तो श्री कृष्ण को गरज है की वे भगवान शिव के दर्शन करेंगे। क्यूकी
भगवान शिव ही राधा कृष्ण भी है , भगवान शिव ही गौरी शंकर है सब कुछ है।
दोनों एक ही ही ही ही है
दोनों एक ही ही ही ही है
वेदो मे केवल मात्र भगवान शिव को ही """"तस्मात प्रेमाननदात """" के उपाधि से संबोधित किया है भगवान शिव का पर्याईवाची है प्रेमानन्द....
भगवान शिव की लीला दिव्य तमो गुण प्रधान ज्यादा हुई है इसलिए उनसे संबंधी जीतने पुराण है उन्हे दिव्य तमस पुराण कहा गया है जैसे की एक वैष्णव पुराण मे आया है ये जो तामस लीला भगवान शिव की होती ये दिव्य होती है माया से परे वाला ये दिव्य तमो गुण है
भगवान शिव के भीतर केवल दिव्य सत्व गुण है
.... इस दिव्य तमो गुण लीलाओ के द्वारा जिन जिन राक्षस को भगवान शिव ने मारा वे सब भगवान शिव के नित्या धाम महा कैलाश मे गए। सदा को आनंद मए बन गए।
अगर मायिक तामस होता तो भगवान शिव किसी भी राक्षस को मारते तो उसे भगवान शिव का धाम नहीं मिलता॥ मायिक तामस के द्वारा जो लोग मारे जाते है उन्हे 84 लाख प्रकार की योनिया प्राप्त होती है।
इसी तरह भगवान कृष्ण दिव्य सत्व गुण धरण करके अपनी अवतार लीला करते है
इसी तरह ब्रह्मा भी दिव्य रजो गुण धरण करके सृष्टि प्रगट करते है॥
एक बात सदा स्मरण रखिए जहा श्री कृष्ण होंगे वह भगवान शिव अवश्य होंगे और जहा भगवान शिव होंगे वह श्री कृष्ण अवश्य होंगे।
भगवान शिव अनंत कोटी ब्रह्मांड के स्वामी है भगवान शिव के स्वयं सृष्टि का कोई भी कार्य करते यह सब उनके अवतार करते है ब्रह्मा , विष्णु , रुद्र आदि
भगवान शिव के अनंत नाम है, अनंत रूप है, अनंत अवतार है, अनंत धाम है, असंख्य भक्त भी है जिसमे (शांत भाव, दास्य भाव, सख्या भाव, वात्सल्य भाव, माधुर्य भाव भी समाहित है)
भगवान शिव अपने भक्तो के साथ लीला करते है बस भगवान शिव की आयु नित्य 16 वर्ष की होती है इसी तरह माता पार्वती भी नित्य 16 वर्ष किशोरी होती है अपने महा कैलाश धाम मे...
भगवान शिव मे अनंत माधुर्य रस भरा पड़ा है किसी को भगवान शिव के माधुर्य रस पर अगर संदेह है तो साधना करके भगवान शिव के दर्शन कर ले संदेह अपने आप समाप्त हो जाएगा।
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शिव अथवा कृष्ण।
भगवान शिव और भगवान श्री कृष्ण दोनों एक तत्व है , एक ही परातपर तत्व है या भगवान शिव का पर्याईवाची नाम श्री कृष्ण या यू कह लो श्री कृष्ण का पर्याईवाची नाम शिव है।
1) एक ही परातपर ब्रह्म के तीन रूप है ब्रह्मा ने दिव्य रजो गुण के द्वारा सृष्टि को प्रगट करते है। (सृष्टि सृज विसरगे धातु से बना है जिसका अरथ है प्रगट करना जन्म देना नहीं)
2)विष्णु अथवा महाविष्णु दिव्य सत्व गुण के द्वारा सृष्टि का पालन करते है
3) रुद्र बनकर दिव्य तमो गुण के द्वारा सृष्टि का प्रलय करते है।
पर इन तीनों स्वरूप से भिन्न परा शिव है जो तीनों मायिक गुण + दिव्य सत्व (vishnu), दिव्य रज(ब्रह्मा), दिव्य तमो(रुद्र) से परे है।
लीला क्षेत्र मे यह सब नाटक करते है एक दूसरे की भक्ति करते है॥
लीला का अर्थ है नाटक तमाशा ड्रामा वास्तविकता नहीं है।
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